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समाज

अरुणाचल में स्कूल चला रही है बाप-बेटी की यह जोड़ी

५ जुलाई २०१८

माइक लिबेकी अपनी 14 साल की बेटी लिलियाना के साथ अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के एक गांव में रहते हैं. तमाम परेशानियों के बीच बाप-बेटी की यह जोड़ी इलाके के बच्चों को कंप्यूटर सिखा रही है.

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Mike und Liliyana Lebeki
तस्वीर: IANS

नेशनल ज्योग्राफिक के रिसर्चर माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई देशों की यात्राएं की. लेकिन अरुणाचल की यात्रा बाप-बेटी की इस जोड़ी के लिए काफी अलग रही. अब अरुणाचल के तवांग में यह जोड़ी बच्चों को कंप्यूटर सिखा रही है. तवांग जिले में एक कम्युनिटी स्कूल चलता है, जिसमें 90 छोटे-छोटे बच्चों से लेकर किशोर उम्र के छात्र पढ़ने आते हैं.

इनके द्वारा चलाए जा रहे 'झमत्से गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी' सेंटर में बच्चों के पालन-पोषण से लेकर पढ़ाई तक की व्यवस्था की गई है. इन बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जा रहा है. बाप-बेटी की जोड़ी को इस काम में आईटी कंपनी डेल भी मदद दे रही है. कंपनी के कई कर्मचारी यहां इनके साथ काम कर रहे हैं.

Mike und Liliyana Lebeki
तस्वीर: IANS

इस केंद्र में 20 नए लैपटॉप, नए प्रिंटर, इंटरनेट की सुविधा दी गई है. तवांग के बच्चों और टीचर्स को कंप्यूटर का ज्ञान दिया जा रहा है. कंप्यूटर केंद्र और कम्युनिटी की अन्य इमारतों में बिजली के लिए सौर ऊर्जा पैनल और सौर जनरेटर भी लगाए गए हैं. माइक लिबेकी इस बारे में कहते हैं, "हम कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस केंद्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे या तो अनाथ हैं या पारिवारिक समस्याओं के कारण यहां रहने आए हैं. ये ऐसे बच्चे हैं, जिनके परिवार में कभी किसी बच्चे को पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला और ये शिक्षा पाने वाले अपने परिवार की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं."

उन्होंने आगे कहा, "हमने यहां अनाथ बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के मकसद से सौर ऊर्जा की व्यवस्था और कंप्यूटर लैब व इंटरनेट की सुविधा दी गई है. समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे कॉलेज जाएं. कंप्यूटर और इंटरनेट के बगैर वे पीछे रह जाएंगे और अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे. आज हम जिस दौर में रह रहे हैं, वहां प्रौद्योगिकी प्रगति की जरूरत है."

कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी के बिना प्रगति संभव नहीं है. माइक ने बताया कि तवांग में सभी उपकरण अमेरिका से मंगाए गए हैं और डेल के कर्मचारियों ने यहां इन उपकरणों की संस्थापना में मदद की है. उन्होंने कहा, "सिर्फ कंप्यूटर स्थापित करना काफी नहीं था. हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि बच्चे इनका इस्तेमाल करने में सक्षम हो पाएं. इसलिए उनको समुचित ढंग से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जब कभी कोई समस्या हो, तो उन्हें तकनीशियनों से मदद मिले. हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित हों क्योंकि इस तरह के दूरदराज के इलाकों में प्राय: बिजली नहीं होती है."

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जब उन्होंने काम शुरू किया तो अच्छे नतीजे देखने को मिले और अनुभव संतोषजनक रहा. गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी सेंटर के बच्चों ने पहली बार कंप्यूटर देखा था. माइक बताते हैं, "छोटे-छोट बच्चों ने जब लिलियाना को कंप्यूटर चलाते और इंटरनेट का इस्तेमाल करते देखा तो उनके चेहरे खिल गए." लिलियाना 14 साल की उम्र में 26 देशों की यात्राएं कर चुकी है और उसने यहां कंप्यूटर लगाने में अपने पिता की मदद की. उसे कंप्यूटर चलाते देख बच्चे ही नहीं, यहां के शिक्षक और अन्य कर्मी भी रोमांचित थे. उनमें सीखने की लालसा बढ़ गई.

माइक आगे कहते हैं, "हर समय हम समुदाय से जुड़ते हैं और हमें उनसे जो मिलता है, उसके एवज में उन्हें कुछ वापस करने की कोशिश करते हैं क्योंकि हम उनको जो देते हैं, उससे ज्यादा हमें मिलता है. हमारे पास जो अवसर हैं, वे उनके पास नहीं हैं और उनकी जिंदगी में थोड़ा बदलाव लाकर सचमुच हमें बड़ी तसल्ली मिलती है. हम उनको कंप्यूटर और इंटरनेट प्रदान कर रहे हैं."

माइक का कहना है कि वे इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रहे हैं, "ये बच्चे भी अन्य लोगों की तरह ही कॉलेज जाना चाहते हैं. तो फिर इन सुदूर इलाके के बच्चों को भी हमारी तरह अवसर क्यों न मिले? इसी दिशा में हम अपना काम कर रहे हैं." वे कहते हैं कि अगर वे अपने योगदान से एक समुदाय के जीवन में बदलाव लाते हैं, तो उससे हजारों लोगों के जीवन में बदलाव आ सकता है क्योंकि इस तरह की पहलों का प्रभाव दूर तक जाता है, "जो आज इस प्रयास से लाभ उठा रहे हैं, उनको जब कभी मौका मिलेगा, वे दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करेंगे."

आईएएनएस/एए