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अरुणाचल के सौ बांधों पर बवाल

१५ जुलाई २०१०

पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में पनबिजली उत्पादन के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले बड़े बांध अब पड़ोसी असम में एक बड़ा मुद्दा बनते जा रहे हैं. अरुणाचल में सौ से भी ज्यादा बांध बनाने का फैसला हुआ है.

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बांधों के खिलाफ उठ रही है आवाजतस्वीर: Bdnews24.com

इनसे अगले सात वर्षों में 12 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा. लेकिन अब इन बांधों के विरोध में असम में आंदोलन जोर पकड़ रहा है.

राजधानी गुवाहाटी में हाल में पर्यावरणविदों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की बैठक में यह बात खुल कर सामने आई कि इन बांधों का ब्रह्मपुत्र घाटी यानी असम के ज्यादातर इलाकों पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ेगा. उसके बाद से ही बांधों के खिलाफ आंदोलन जोर पकड़ने लगा है. असम के जाने-माने पर्यावरणविद् नीरेन गोहांई कहते हैं कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को इन बांधों के प्रतिकूल असर के बारे में कोई चिंता नहीं है. परियोजनाओं को मंजूरी पहले दी जाती है और इनके असर का अध्ययन बाद में किया जाता है.

केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री मंत्री जयराम रमेश भी मानते हैं कि अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने का तरीका सही नहीं है. यह काम और बेहतर तरीके से किया जा सकता है.

जयराम रमेश कहते हैं कि अरुणाचल प्रदेश की दिवांग घाटी में कई बांध बनाए जाने हैं. इसका पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. हमें इसके अध्ययन के बाद ही आगे बढ़ना होगा.

लेकिन मंत्री का यह भरोसा खोखला ही है. अभी बीती फरवरी में ही बिना किसी विस्तृत अध्ययन के 1750 मेगावाट क्षमता वाली डेनली लोअर परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की ओर से हरी झंडी दिखा दी गई. जयराम रमेश दलील देते हैं कि देश को पनबिजली ऊर्जा की जरूरत है.

जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भी इन बांधों के विरोध में बुधवार को गुवाहाटी में एक रैली में हिस्सा लिया. इस आंदोलन की अगुआई कर रहे संगठन 'कृषक मुक्ति संग्राम समिति' के नेता अखिल गोगोई आरोप लगाते हैं कि ये बांध असम के लोगों का भविष्य बर्बाद कर देंगे.

दरअसल, इन बांधों का निर्माण पूरा होने पर गर्मी के सीजन में असम में जहां पानी की भारी किल्लत हो जाएगी, वहीं बरसात में ब्रह्मपुत्र घाटी में बसे इलाके डूब जाएंगे. इससे विश्वप्रसिद्ध काजीरंगा नेशनल पार्क का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा.

पर्यावरणविदों का कहना है कि बिना सोचे-समझे बनने वाले ये बांध असम का अभिशाप बन सकते हैं. यही वजह है कि इनके विरोध के स्वर लगातार तेज हो रहे हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः वी कुमार