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ईरान की उम्मीदों को कितना पूरा करेगा यूरोप?

९ जुलाई २०१८

तेहरान में इन दिनों चिंता, तकलीफ, महंगाई और डर के बादल नजर आ रहे हैं. राजनीतिक खेमों से दूर ईरान के आम लोग अमेरिका के परमाणु समझौते से बाहर होने के चलते परेशान हैं. लेकिन अब उनकी उम्मीदें यूरोप पर टिकी हैं.

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Iran Bildergalerie Basar in Teheran
तस्वीर: Mahsa R.S

ईरान की राजधानी में रहने वाली 51 साल की अजम के दिलो-दिमाग में जहां गुस्सा भरा हुआ है, तो वहीं उसे कहीं न कहीं डर भी सता रहा है. अजम को अपने 75 साल के पिता की सेहत परेशान कर रही है. दरअसल उसके पिता एक तरह की दिल की बीमारी के मरीज हैं, जिसके लिए उन्हें वारफ्रिन नाम की दवा देनी पड़ती है. लेकिन पिछले कुछ समय से तेहरान में यह मिल ही नहीं रही है. अजम बताती हैं, "पिछले कुछ हफ्तों से यह दवाई ड्रग स्टोर्स में नहीं मिल रही है. इस दवाई को खरीदना बहुत ही मुश्किल हो गया है."

यह कहानी सिर्फ अजम और उनके पिता की ही नहीं है, बल्कि ईरान के सैकड़ों आम लोग रोजमर्रा की इन समस्याओं से जूझ रहे हैं. क्योंकि उनका मुल्क अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. ईरान में वारफ्रिन जैसी दवा नहीं बनाई जाती, बल्कि इसका आयात किया जाता है. इसलिए अब देश में दवाइयां कम पहुंच रही हैं. साथ ही दवा की कीमतों में तेजी आ गई है.  

टूटती मुद्रा

प्रतिबंधों के बीच ईरान आर्थिक संकट से भी गुजर रहा है. जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर निकलने की बात कही है, तब से ईरान की मुद्रा लगातार गिर रही है. वर्तमान में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत तकरीबन 43 हजार ईरानी रियाल के लगभग है. लेकिन यह कीमत पिछले साल तक 32 हजार रियाल हुआ करती थी.

वहीं काले बाजार में ईरानियों को एक अमेरिकी डॉलर हासिल करने के लिए 85 हजार रियाल देने पड़ रहे हैं. परमाणु समझौते से पीछे हटने के बाद अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी उन विदेशी कंपनियों को भी दी है जो ईरान के साथ कारोबार में शामिल हैं. इसका असर यहां आम लोगों पर पड़ रहा है. अमेरिका के इन कदमों से ये तो साफ है कि अमेरिका ईरान को आर्थिक रूप से तोड़ना चाहता है.

कारोबार पर असर

अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान का बैंकिंग सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इन कदमों का मकसद ईरान के वित्तीय संस्थानों को वैश्विक पूंजी बाजार से दूर करना है. ये वहीं पूंजी बाजार हैं जिनमें ईरान को परमाणु समझौते के बाद कुछ जगह मिली थी. जून 2018 के अंत तक, अधिकतर यूरोपीय बैंकों ने ईरान के साथ अपने वित्तीय लेन-देन बंद कर दिए थे. नतीजतन, यूरोपीय कंपनियों को भी ईरान के साथ आयात-निर्यात के अपने सौदों का हिसाब करने में मुश्किलें आ रही हैं. तेहरान के कारोबारी मानते हैं कि ये कदम उनके कारोबार को चौपट कर रहे हैं. 38 साल के कारोबारी इस्माइल कहते हैं, "हमने हसन रोहानी को राष्ट्रपति चुना क्योंकि वह पश्चिमी देशों के साथ सामंजस्य बनाना चाहते थे, साथ ही हम भी अंतरराष्ट्रीय समझौते को लेकर प्रतिबद्ध थे. लेकिन अब हमें अचानक किस बात की सजा मिल रही है? अमेरिका में सरकार बदल गई, क्या इसलिए हमें सजा मिल रही है?"

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पिछले साल इस्माइल दो बार जर्मनी की यात्रा पर आए. अपनी यात्राओं में उन्होंने कई कारोबारी मेलों को देखा और कई जर्मन फूड पैकेजिंग मशीनों के आयात की इचछा जताई, जिस पर वे काम भी कर रहे थे. लेकिन अब राजनीतिक मंच पर आए इस बदलाव ने उनकी कारोबारी योजनाओं को तहस-नहस कर दिया है. इस्माइल कहते हैं, "यूरोप हमें समर्थन दे सकता है, सहयोग भी दे सकता है. ईरान मध्य एशिया का बड़ा और एक स्थिर देश है. यूरोप को ईरान की बर्बादी से क्या मिलेगा?"

अमेरिका की नीति

ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी प्रशासन अपने सभी साथियों से उसके साथ रिश्ते तोड़ने के लिए कह रहा है. साथ ही अमेरिका ने भारत समेत कई देशों को ईरान के साथ तेल आयात रोकेने के लिए 4 नवंबर, 2018 तक की मोहलत भी दी है. अमेरिका के करीबी देश दक्षिण कोरिया ने तो साफ भी कर दिया है कि वह जुलाई से ईरान का तेल नहीं लेगा. ईरान को तेल से बड़ी कमाई होती रही है.

तेहरान में रहने वाले 19 साल के सईद को उम्मीद है कि एक दिन ईरान स्वतंत्र और लोकतांत्रिक मुल्क बनेगा. लेकिन सईद वर्तमान अमेरिकी नीतियों को गलत मानते हैं. उन्होंने कहा, "अमेरिका का अन्य मुल्कों पर दबाव बनाना कि वे हमारी मदद न करें, गलत है क्योंकि आर्थिक संकट साधारण लोगों को चोट पहुंचाता है. उससे मेरे मां-बाप जैसे लोग प्रभावित होते हैं. उन्हें महंगाई की चिंता है, साथ ही डर भी कि कहीं युद्ध न हो जाए."

रोहानी की यूरोप यात्रा

ईरान के राष्ट्रपति रोहानी की हालिया यूरोप यात्रा भी कोई खास नहीं रही. रोहानी अपनी यात्रा के दौरान स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया में बड़े नेताओं और अधिकारियों से मिले. लेकिन रोहानी को इससे कोई उम्मीद नहीं है. अपनी इस यात्रा के बाद रोहानी ने कहा था कि समाधान का जो पैकेज यूरोपीय संघ ने सुझाया, वह ठोस और व्यावहारिक नहीं है. एक आधिकारिक बेवसाइट के मुताबिक, रोहानी ने जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के टेलीफोन पर हुई बातचीत में कहा, "यूरोप के प्रस्ताव में सहयोग जारी रखने की जो कार्य योजना पेश की गई थी, वह अस्पष्ट थी"

एक ईरानी पत्रकार ने कहा, "जब अमेरिका-ईरान समझौता हुआ था, तब हम खुश थे. हम रुहानी और उनकी नीतियों को अपना समर्थन दे रहे थे. लेकिन अचानक अमेरिका का ऐसे समझौते से निकल जाना ईरानी लोगों पर हमला है. यूरोपीय संघ को कम से कम हमारी शांति की इच्छा का समर्थन करना चाहिए."

शबनम फॉन हाइन/एए