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पर्यावरण प्रेमियों के लिए ऐतिहासिक खबरें

विवेक कुमार
२८ मई २०२१

अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया, दुनिया के तीन अलग-अलग हिस्सों से इस हफ्ते ऐसी खबरें एक साथ आईं कि पर्यावरण प्रेमियों के दिल खिल गए. ये तीनों खबरें ऐतिहासिक हैं और जलवायु परिवर्तन की दिशा में नए रास्ते खोल सकती हैं.

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Fridays For Future | Köln
तस्वीर: Lukas Schulze/Getty Images

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आईं तीन खबरों ने गुरुवार को पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को काफी राहत पहुंचाई है. ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड्स की अदालतों ने पर्यावरण परिवर्तन पर ऐतिहासिक फैसले दिए हैं जबकि दो तेल कंपनियों को अपने ही निवेशकों से डांट पड़ी है. पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक बड़ी खबर अमेरिका से आई जहां दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों के निवेशकों को ग्लोबल वॉर्मिंग पर जरूरी कदम न उठाने के लिए हार का मुंह देखना पड़ा.

ये कंपनियां हैं एक्सॉन मोबिल और शेवरॉन. एक्सॉन मोबिल के बोर्ड में कम से कम दो सीटें पर्यावरण कार्यकर्ताओँ के हेज फंड इंजिन नंबर वन के पास चली गईं. एक्सॉन के शेयरधारकों ने इंजिन नंबर वन से दो निदेशक चुने हैं और कार्यकर्ताओं का फंड एक और सीट जीत सकता है. बैठक के बाद कंपनी के सीईओ डैरन वुड्स ने कहा कि कंपनी अपने निवेशकों की मांग पर ध्यान देगी.

चर्च ऑफ इंग्लैंड के इन्वेस्टमेंट फंड को संभालने वाले चर्च फॉर कमिशनर्स के बेस जोफ ने ने कहा कि यह बड़ी तेल कंपनियों के लिए एक गंभीर चेतावनी वाला दिन था. उधर शेवरॉन के दो तिहाई से ज्यादा निवेशकों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में और ज्यादा कमी करने के प्रस्ताव का समर्थन किया. शेवरॉन ने 2050 तक उत्सर्जन कम करने का वादा तो किया है लेकिन इसके बारे में कोई योजना पेश नहीं की है.

USA New York | Klimaaktivisten protestieren gegen Exxonmobile vor dem Obersten Gericht
तेल कंपनियों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और कदम उठाने के लिए कहा जा रहा हैतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Weiss

नीदरलैंड्स की कोर्ट का फैसला

द हेग में भी अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें तेल कंपनी और इसके सप्लायर्स को 2030 तक उत्सर्जन के स्तर में 2019 के स्तर से 45 फीसदी कमी लाने की आदेश दिया गया. कोर्ट ने कहा कि शेल का 20 प्रतिशत की कमी का मौजूदा लक्ष्य नाकाफी है. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि पैरिस समझौते के तहत लक्ष्य तय किया गया है कि इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 1.5 फीसदी से ज्यादा ना बढ़े लेकिन शेल कंपनी का 20 प्रतिशत कमी की प्रतिबद्धता काफी नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि शेल को वैश्विक समझौते का पालन करना चाहिए और तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए 2030 तक इसके उत्सर्जन स्तर में 45 प्रतिशत की कमी आवश्यक है. जज ने कहा, "यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है.” फैसला तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था पैरंट्स फॉर फ्यूचर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्विटर पर कहा, "इसका अर्थ है कि उन्हें जीवाश्म ईंधनों का आज से ही दोहन बंद करना होगा.”

नीदरलैंड्स की कोर्ट का यह फैसला बड़ी तेल कंपनियों के खिलाफ नए मुकदमों का एक रास्ता खोल सकता है. यह फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार किसी सरकार को नहीं बल्कि एक कंपनी को पैरिस समझौते का पालन करने का आदेश दिया गया है.

USA Deer Park | Shell Deer Park | Ölraffinerie
कई अदालतें तेल कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए भी कह रही हैंतस्वीर: picture alliance / ASSOCIATED PRESS

ऑस्ट्रेलिया में अदालत बच्चों के साथ

ऑस्ट्रेलिया की फेडरल कोर्ट ने आठ किशोरों द्वारा सरकार पर किए एक मुकदमे में कहा है कि सरकार की यह कानूनी जिम्मेदारी बनती है कि खनन परियोजनाओं को अनुमति देते समय इस बात ख्याल रखे कि पर्यावरण परिवर्तन युवाओं को नुकसान न पहुंचाए. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित फेडरल कोर्ट सिविल मामलों में संघीय कानून के तहत आने वाले मुकदमों की सुनवाई करती है.

आठ किशोरों ने तमाम ऑस्ट्रेलियाई युवाओं की ओर से पिछले साल सितंबर में सराकर पर मुकदमा किया था. अपनी अपील में उन्होंने कहा था कि युवाओं की देखभाल सरकार की जिम्मेदारी है. इस आधार पर इन युवाओं ने सरकार से एक कोयला खदान को मिलने वाली मंजूरी रोकने का आग्रह किया था. फेडरल कोर्ट के न्यायाधीश मोर्डेसाई ब्रोमबर्ग ने इस बात पर सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन से युवाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की बनती है

उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण में हो रहे बदलाव युवाओं के लिए भयावह होंगे. अदालत ने यह भी माना कि कोयला खदान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगी. लेकिन मंत्री को खनन की मंजूरी देने से रोकने की अपील को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया. कोर्ट ने हालांकि दोनों पक्षों से और इस बारे में एक रिपोर्ट देने को कहा है कि कानून जिम्मेदारी होने के नाते कोयला खदान के मामले में सरकार क्या अलग कर सकती है.

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