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अमेरिका में रिसर्च के लिए मासूम जानवरों की बलि

७ फ़रवरी २०२०

पशु अधिकारों के लिए सक्रिय संस्था पेटा का कहना है कि अमेरिकी रिसर्च सेंटरों में इस्तेमाल होने वाले जानवरों की देखभाल में लापरवाही बरती जा रही है. इससे बहुत से जानवर दम तोड़ रहे हैं.

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BdTD USA Laborratte steuert "RatCar"
तस्वीर: AFP/University of Richmond

लैब का हीटिंग सिस्टम खराब हो जाने से चूहे की मौत हो जाती है या फिर रिसर्चर पिंजरे में एक हफ्ते तक खाना या पानी देना भूल जाते हैं जिससे चूहे मर जाते हैं और कोई ध्यान नहीं देता. या फिर जानवर पांच महीनों तक 24 घंटे लाइट में रहने को छोड़ दिए जाते हैं क्योंकि लैब मैनेजर का कहना है कि उस पर काम का बहुत बोझ है.

एक वैटनरी डॉक्टर ने मादा उल्लू बंदर का ध्यान नहीं रखा, जिसे प्रयोग में प्रजनन के लिए इस्तेमाल किया गया था. ऐसे में वह बीमार हो गई और उसका वजन लगातार कम होता गया. आखिर में दिल का दौरा पड़ने से उसने दम तोड़ दिया.

ये कुछ मामले हैं जो अमेरिका में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) की प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल होने वाले जानवरों की दुर्दशा को दिखाते हैं. जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था पेटा की तरफ से मांगी गई जानकारी के तहत कुल ऐसे 31 मामले सामने आए हैं. इसके बारे में जानकारी समाचार एजेंसी एएफपी के साथ साझा की गई है.

बिना खाने- पीने के मर रहे हैं जानवर

ये मामले अमेरिका के मौंटाना और मैरीलैंड राज्य में चल रही प्रयोगशालाओं से जुड़े हैं जहां डायबिटीज, बच्चों के स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर रिसर्च हो रही है. एनआईएच का कहना है कि नियमों के उल्लंघन के मामलों को गंभीरता से लिया जा रहा है और उसने खुद इन ऐसे मामलों की पूरी जांच कराई है. पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे जानवरों पर दवाइयों के प्रयोग तो कर रहे हैं लेकिन उनका खयाल नहीं रखा जा रहा है.

जानवरों को कब मिलेगा इंसान के प्रयोगों से छुटकारा

कई पशु अधिकार संस्थाएं सैद्धांतिक रूप से पशु परीक्षण का विरोध नहीं करतीं, बल्कि वे जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार और कानूनों के उल्लंघन का विरोध कर रही हैं. एनिमल वेलफेयर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता एरिक क्लेमन कहते हैं, "नियम और कानून पशुओं की पीड़ा और तनाव को कम करने के लिए हैं और जब उन न्यूनतम मानकों पर ध्यान नहीं दिया जाता या उनका पालन नहीं किया जाता है तो आपको पीड़ा होती है."

क्लेमन कहते हैं, "पशुओं को प्रशिक्षण, चिकित्सा देखभाल, भोजन और पानी देना प्राथमिकता होनी चाहिए. अगर आप उन्हें ये भी नहीं दे सकते तो आप जानवरों को रखने लायक नहीं हैं." लेकिन जानवरों पर परीक्षण उनकी देखभाल को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए. इसमें पिंजरों के आकार, कमरे का तापमान और जानवरों की सामाजिक जरूरतों के साथ-साथ पशुपालकों के दौरे और सर्जरी और पोस्ट-सर्जरी के बाद की साफ सफाई और देखभाल जरूरी है.

जानवरों की प्रयोगशालाओं में जरूरत

कुत्तों पर किए प्रयोगों से ही डायबिटीज की दवा इंसुलिन की खोज हो पाई. जैनेटिकली मॉडिफाइड चूहों पर किए प्रयोग से ही इबोला का उपचार खोजा गया. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि पशुओं पर शोध अनुसंधान और चिकित्सा के क्षेत्र के लिए जरूरी हैं. सरकारी अनुसंधान प्रयोगशालाएं जन स्वास्थ्य सेवा नीति के अधीन होती हैं.

Dicke und dünne Mäuse
तस्वीर: AP

प्रयोगशाओं की जांच के मामलों से जुड़ी अल्का चंदना कहती हैं कि एक कुत्ते की त्वचा तब जल गई, जब लैब में ठंड से बचने के लिए उसने इलेक्ट्रिक कंबल ओढ़ ली लेकिन वहां मौजूद कर्मचारी उसकी निगरानी या जरूरत का ख्याल रखने में विफल रहे. वहीं हीटिंग सिस्टम के फेल हो जाने से 13 चूहों की जलकर मौत हो गई. जुलाई 2018 में प्रयोग को मंजूरी ना मिलने के बावजूद प्रयोगकर्ता ने 15 जेब्राफिश को नमक के घोल में डाल दिया. इसकी वजह से चार जेब्राफिश की तुरंत मौत हो गई. तीन सप्ताह बाद 18 मछलियों पर यही प्रयोग किया गया. सभी मछलियों की मौत हो गई.

जानवरों की प्रयोग के लिए कई बार सर्जरी की जाती है, सड़न की चिंता किए बगैर. इसकी वजह से उनकी मौत हो जाती है. क्लेमन कहते हैं कि शोधकर्ता इस पर ध्यान नहीं देते कि क्या गलत हुआ है. वे देखते हैं कि "प्रयोग कितना सही हुआ है."

वहीं शोधकर्ताओं का बड़ा हिस्सा जानवरों पर किए जा रहे प्रयोगों को सही ठहराता है. अमेरिकंस फॉर मेडिकल प्रोग्रेस की कार्यकारी निदेशक पाउला क्लिफोर्ड कहती हैं, "एनआईएच एक बड़ी संस्था है लेकिन जो मामले सामने आए हैं वो बेहद कम हैं. यह घटनाएं दुर्लभ हैं. चिकित्सा अनुसंधान में शामिल हजारों जानवरों का यह एक प्रतिशत भी नहीं है." एनआईएच ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "कानून के मुताबिक इन सभी मामलो की जांच की गई है. जहां भी कुछ गलत हुआ है वहां मूल्यांकन किया गया है ताकि भविष्य में गलतियों को सुधारा जा सके."

एसबी/एके( एएफपी)

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