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अमीरी में जल्दी आती है मौत

९ अक्टूबर २०१३

अगर अच्छा वक्त आ जाए तो हम सब जवानी में ही मर जाएंगे. यकीन नहीं आता न, लेकिन विकसित देशों में 50 साल के आंकड़ों पर हुई एक रिसर्च के नतीजे यही कह रहे हैं. अर्थव्यवस्था जब ऊंचाई पर थी तो बुजुर्गों की मृत्यु दर भी बढ़ गई.

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तस्वीर: picture alliance/zb

रिसर्च करने वाले खुद इन नतीजों से हैरान हैं. नीदरलैंड्स की लेडेन एकेडमी ऑन वाइटलिटी एंड एजिंग से जुड़े हर्बर्ट रोल्डेन ने कहा कि नतीजा "एकदम अनापेक्षित" रहा. लंबे दौर में आर्थिक समृद्धि हो तो सभी उम्र वर्ग की मृत्यु दर में कमी आती है. इसकी वजह मुख्य रूप से यह है कि बुढ़ापे में होने वाली मौत की दर में कमी आती है. जब आप थोड़े समय की आर्थिक उठापटक को देखें तो यह तस्वीर बिल्कुल बदल जाती है. जरनल ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड कम्युनिटी हेल्थ में छपे इस रिसर्च के नतीजे तो यही कह रहे हैं.

रिसर्च के मुताबिक देश की जीडीपी में हरेक प्रतिशत अंक के इजाफे के साथ 70-74 वर्ष की उम्र के बुजुर्गों की मृत्यु दर 0.36 फीसदी बढ़ गई. इसी उम्र की महिलाओं में यह बढ़ोतरी 0.18 फीसदी की रही. 40-45 साल के लोगों के बीच मृत्यु दर में इजाफा पुरुषों के लिए 0.38 फीसदी रहा जबकि महिलाओं के लिए 0.16 फीसदी. रिसर्च में 1950 से 2008 यानी करीब 58 साल के बीच 19 विकसित देशों के आर्थिक विकास और मृत्यु दर के आंकड़ों का अध्ययन किया गया. इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, अमेरिका और यूरोप के कई देश शामिल हैं.

रिसर्च में कहा गया है, "कई विकसित देशों में फिलहाल मंदी चल रही है, तो ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि इससे बुजुर्ग लोगों के अस्तित्व पर बुरा असर होगा. हालांकि यह पता चला है कि बेरोजगारी में सालाना बढ़ोतरी और जीडीपी में कमी का सीधा संबंध कम मृत्यु दर से है." इस तरह का चलन युवा लोगों के बारे में पहले ही सामने आ चुका है. उस वक्त यह माना गया कि आर्थिक विकास के दौर में नौकरियां ज्यादा होती हैं. नौकरी ज्यादा होने से ज्यादा काम, ज्यादा तनाव और ज्यादा सड़क हादसे होते हैं इसलिए युवाओं की मृत्यु दर बढ़ जाती है. रोल्डेन का कहना है कि बुजुर्गों के लिए यह बात सही नहीं बैठ रही. वहां तो मामला उल्टा साबित हो रहा है. उन्होंने माना, "हम वास्तव में अब भी अंधेरे में है कि सचमुच इसकी व्याख्या कैसे हो."

इसका कारण यह हो सकता है कि सामाजिक ढांचे में बदलाव के कारण युवा रिश्तेदार, और दोस्त ज्यादा देर तक काम करते हैं और उनके पास बुजुर्गों का ध्यान रखने के लिए कम वक्त होता है. हालांकि अभी इस सिद्धांत को परखा नहीं गया है. एक और सोच इसकी जिम्मेदारी वायु प्रदूषण पर डालती है. आर्थिक विकास के दौर में प्रदूषण बढ़ता है और संभव है कि इसका असर कमजोर बुजुर्गों पर ज्यादा होता हो. टीम ने इस बारे में और रिसर्च करने की अपील की है. इस रहस्य के खुलने से हो सकता है कि कई फायदे हों.

एनआर/एएम (एएफपी)

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