अब स्कूलों में ऐप से पढ़ाई
७ मार्च २०१४स्वीडन के एक प्रीस्कूल का नजारा. दो साल की मिया अपनी उंगली से टैबलेट कंप्यूटर की टच स्क्रीन पर एक अक्षर बनाती है और कंप्यूटर उसे शाबाशी देते हुए कहता है "वंडरफुल". अक्षर सही तरह से बनाने पर कंप्यूटर से तालियों की आवाज भी आती है. टैंटो इंटरनेशनल स्कूल में अब यह नजारा आम हो रहा है. हर दो बच्चों के लिए यहां एक आईपैड है.
पढ़ाई का यह तरीका अनोखा है. क्लास में खूब शोर भी मचता है पर टीचर मानते हैं कि इस तरह बच्चे पढ़ाई में ज्यादा रुचि लेते हैं. यहां पढ़ाने वाली हेलेना बेर्गश्ट्रांड बताती हैं, "बच्चों को इस ऐप से खेलने में बहुत मजा आता है. उच्चारण सीखने के लिए तो यह बेहतरीन है." बच्चों को ऐप सिखाते हुए वह कहती हैं, "आईपैड बच्चों को अपनी तरफ खींचता है, उन्हें यह बहुत पसंद आता है और यह काफी इंटरएक्टिव भी है."
उपसाला यूनिवर्सिटी की पेट्रा पेटरसन इसी विषय पर शोध कर रही हैं. उन्होंने कई स्कूलों में जा कर बच्चों के व्यवहार और तकनीक से उनके जुड़ाव की जांच पड़ताल की है. वह बताती हैं, "मैं जिन भी स्कूलों में गयी, वहां मैंने पाया कि (आईपैड के कारण) बच्चे एक साथ एक ग्रुप में बैठते हैं और एक दूसरे के साथ मिल जुल कर काम करते हैं. वे आपस में खूब बातचीत भी करते हैं और सहयोग से सीखते हैं." उनका कहना है कि टैबलेट पीसी बच्चों को इसलिए इतना आकर्षित करते हैं क्योंकि उनमें बहुत से रंग और तरह तरह की आवाजें होती हैं जो बच्चों को काफी पसंद आती हैं, "पढ़ाई का एक बड़ा हिस्सा है मौज मस्ती और इन टैबलेट पीसी के इस्तेमाल में उन्हें बहुत मजा आता है."
कितना जरूरी
अक्सर बच्चे स्कूल जाने से पहले ही स्मार्टफोन और टैबलेट के संपर्क में आ जाते हैं और इन पर गेम्स खेलना शुरू कर देते हैं. माता पिता के लिए यह चिंता का सबब भी बना रहता है. लेकिन आईटी एक्सपर्ट बच्चों को तकनीक से जोड़ने के आइडिया का स्वागत करते हैं. स्वीडन की नेशनल एजुकेशन एजेंसी के पेटर कार्लबर्ग का कहना है, "इन दिनों स्कूलों में इस बात का ख्याल रखा जा रहा है कि बच्चों को पढ़ाई के दौरान भी वैसा ही माहौल दिया जाए जिसमें वे जी रहे हैं."
वहीं वीडियो गेम्स पर शोध करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबुर्ग के योनास लिंडेरॉथ कहते हैं, "आज से तीन साल पहले तक इस तरह की तकनीक उपलब्ध नहीं थी और अब हाल यह है कि इस बात पर बहस चल रही है कि प्रीस्कूल बिना टैबलेट कंप्यूटर के चल ही नहीं सकते. तीन साल के एक बच्चे की जिंदगी वैसे ही मुश्किल होती है. उसे इतना कुछ सीखना होता है. क्या अब ऐप्स के इस्तेमाल से उसे और मुश्किल बनाना जरूरी है?"
टीचर की जगह आईपैड
स्वीडन की नेशनल मीडिया काउंसिल का कहना है कि देश में दो से चार साल की उम्र वाले 70 फीसदी बच्चे वीडियो गेम्स खेलना जानते हैं. दो साल के कम से कम 45 प्रतिशत बच्चे इंटरनेट भी इस्तेमाल कर चुके हैं. लेकिन बच्चों की इस तेज रफ्तार से टीचरों पर दबाव बनता दिख रहा है. अधिकतर टीचरों का कहना है कि आईपैड की मदद से पढ़ाने के लिए उन्हें खास ट्रेनिंग की जरूरत है. साथ ही ज्यादा उम्र के टीचरों को पढ़ाई का यह नया तरीका खल रहा है. उनका मानना है कि वीडियो गेम्स का पढ़ाई लिखाई से कोई नाता नहीं हो सकता और क्लासरूम में उनके लिए जगह नहीं होनी चाहिए. साथ ही कई आलोचकों का यह भी कहना है कि इस तरह के तरीकों से टीचरों की अहमियत कम होने लगेगी.
इस बीच मिया अक्षरों का खेल खत्म कर अपने आईपैड पर एक गुड़िया बनाने लगी है. उसकी टीचर मदद करती है और स्क्रीन पर मिया का ही चेहरा दिखने लगता है. मिया अपनी तस्वीर ले कर उसे गुड़िया के शरीर के साथ जोड़ देती है. टीचर बेर्गश्ट्रांड और मिया दोनों गुड़िया को देख कर मुस्कुराते हैं और बेर्गश्ट्रांड कहती हैं, "प्रीस्कूल में बच्चे खेलने आते हैं और आईपैड उन्हें पसंद आते हैं. इन्हें इस्तेमाल ना करना बेवकूफी होगी. ये कभी टीचर की जगह नहीं ले सकते, लेकिन ये हमारी बहुत मदद कर सकते हैं."
आईबी/एमजे (एएफपी)