अब भी पहचाने जा रहे हैं 9/11 के पीड़ित
१० सितम्बर २०१८तकनीक के विकास ने उनकी मदद की है. दिन गुजरता जाता है लेकिन वो हर रोज उसी प्रक्रिया को दर्जनों बार दुहराते हैं. पहले वो ट्विन टावर्स के मलबे से मिली हड्डियों के टुकड़े की जांच करते हैं. उन्हें अभी भी डीएनए से मैच कराया जाना है. इसके लिए अवशेषों को काट और पीस कर महीन चूर्ण में तब्दील कर दिया जाता है. इसके बाद इनमें दो रसायन मिलाए जाते हैं जो डीएनए को बाहर निकाल सकते हैं. हालांकि इतने पर भी सफलता की गारंटी नहीं होती. न्यूयॉर्क के चीफ मेडिकल एग्जामिनर ऑफिस में फोरेंसिक बायोलॉजी के सहायक निदेशक मार्क डिजायर बताते हैं, "काम करने के लिहाज से हड्डी सबसे सख्त जैविक पदार्थ है." सिर्फ इतना ही नहीं डिजायर का कहना है, "ऊपर से यह ग्राउंड जीरो पर मौजूद बैक्टीरिया, आग, सूरज की रोशनी, विमान के ईंधन और फफूंद जैसी चीजों में मिल गई. यह सब डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में आपके पास ऐसे नमूने हैं जिनमें डीएनए की बेहद कम मात्रा है."
हमले वाली जगह से मानव अवशेषों के 22 हजार टुकड़े मिले थे. इनमें से सबकी जांच हो चुकी है, कईयों की तो 10 से 15 बार भी. हमले में कुल 2,753 लोगों की मौत हुई जिनमें से अब तक सिर्फ 1,642 लोगों की पहचान हुई है. अब भी 1,111 लोग ऐसे हैं जिनकी पहचान बाकी है. साल दर साल बीतते जा रहे हैं और इनमें से कई ऐसे हैं जब कोई नाम सामने नहीं आता लेकिन कोई भी इस काम को बंद करने के लिए तैयार नहीं है. डिजायर ने इस काम के बजट के बारे में तो जानकारी नहीं दी लेकिन यह उत्तरी अमेरिका का सबसे कुशल और आधुनिक लैब है.
पिछली शिनाख्त के करीब एक साल बाद इस साल जुलाई में लैब ने पीड़ितों की सूची में स्कॉट माइकल जॉन्सन का नाम जोड़ा. 26 साल के फाइनेंशियल एनालिस्ट साउथ टावर की 89वीं मंजिल पर काम कर रहे थे. टीम में शामिल अपराध विशेषज्ञ वेरोनिका कानो कहती हैं, "मुझे सचमुच इस बारे में बहुत अच्छा लगा. हमें ट्रेनिंग दी गई है कि हम इससे प्रभावित नहीं हों लेकिन कुछ चीजें हैं जो सब पर एक तरह से ही असर डालती हैं. हालांकि मैं कोशिश करती हूं कि पेशेवर रहूं."
लैब का कुछ ही हिस्सा 11 सितंबर के पीड़ितों के गायब होने या मौत के मामलों की जांच परख में जुटा है. इसके लिए अलग टीम है जो ग्राउंड जीरो से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक अलग दफ्तर में काम करती है. पीड़ितों के परिजन कई बार लैब के पास आ कर ठहर जाते हैं. डीएनए का मिलान करने के काम में परिजनों की भूमिका भी बेहद अहम है. परिवार से मिले नमूनों से ही मिलान करा कर पीड़ितों की पहचान की जाती है. फोरेंसिक जांच करने वाले विभाग के पास 17000 सैम्पल हैं लेकिन करीब 100 पीड़ित ऐसे हैं जिनका कोई नमूना नहीं है ऐसे में उनकी पहचान की कोशिश अधर में है. पीड़ितों के परिजनों को कैसे इस बात की जानकारी दी जानी है इसके लिए भी एक प्रक्रिया के तहत फैसला किया जाता है. न्यूयॉर्क का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर जब ध्वस्त हुआ तो उनमें मैरी फेचेट का 24 साल का बेटा भी था वो कहती हैं, "जब आपको बताया जाता है तो आप वापस उसी दिन में पहुंच जाते हैं, वो भयानक दिन जब उन लोगों की मौत हुई. हालांकि इससे आपको थोड़ी सांत्वना भी मिलती है कि आप कम से कम उनका सही तरीके से अंतिम संस्कार तो कर सकते हैं." फेचेट ने एक संस्था भी शुरू की है जो 11 सितंबर और ऐसे हादसे से प्रभावित लोगों की मदद करती है.
मैनहटन की फोरेंसिक टीम में मार्क डिजायर अब अकेले ऐसे शख्स बचे हैं जो अब भी इस प्रोजेक्ट में काम कर हे हैं. वो कहते हैं, "इसने मेरा भविष्य तय कर दिया." अब जो लोग यहां काम कर रहे हैं वो हादसे के वक्त प्राइमरी स्कूलों में पढ़ा करते थे. तकनीक के विकास ने इन लोगों की काफी मदद की है और अब दुनिया भर के फोरेंसिक विशेषज्ञ यहां इन लोगों से सीखने आते हैं.
एनआर/एमजे (एएफपी)