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अब कब्र पर लगेंगे मेले

१३ जनवरी २०११

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में अब सैकड़ों साल पुराने कब्रिस्तान देशी-विदेशी पर्यटकों को लुभाएंगे. यह सुनने में आश्चचर्यजनक लग सकता है. लेकिन है सच. राज्य सरकार पुराने कब्रिस्तानों को आकर्षक बनाने जा रही है.

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तस्वीर: AP

पश्चिम बंगाल सरकार की इस नई योजना में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बने कब्रिस्तानों को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित किया जा रहा है. सत्यजित राय के उपन्यासों के ताजा किरदार फेलूदा सीरीज की नई फिल्म गोरस्थाने सावधान की शूटिंग के बाद स्थानीय लोगों में भी इन कब्रिस्तानों के प्रति आकर्षण बढ़ा है. यह फिल्म सत्यजित के बेटे संदीप ने बनाई है. फेलूदा सत्यजित राय के उपन्यासों और बाद में बनी उनकी फिल्मों का एक ऐसा जासूस किरदार है जो बंगाल ही नहीं, देश के बाकी राज्यों और विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है. इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग महानगर की पार्क स्ट्रीट सेमिट्री में हुई है. इसमें लगभग दो हजार कब्रें हैं. हाल में ये फिल्म बनने के बाद लोगों में उस जगह के प्रति आकर्षण पैदा हुआ है जहां इसकी ज्यादातर शूटिंग हुई है. 1772 से 1911 तक ब्रिटिश शासकों की राजधानी रहे कोलकाता शहर के बीचोबीच कई पुराने कब्रिस्तान हैं. देख-रेख की अभाव में इनमें से कुछ बदहाली के शिकार हैं. लेकिन सरकार ने अब इनकी मरम्मत और पुनरुद्धार की योजना बनाई है.

कैसे आया विचार

आखिर सरकार को कब्रिस्तानों को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित करने का विचार कैसे आया ? पर्यटन मंत्री मानव मुखर्जी बताते हैं, ‘ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और आयरलैंड से अपने पूर्वजों की कब्र तलाशने के लिए यहां आने वाले पर्यटकों की तादाद में लगातार वृद्धि ही सरकार के इस फैसले की प्रमुख वजह है.' मुखर्जी कहते हैं कि कब्रिस्तानों के पर्यटन केंद्र बनने की बात अनूठी लग सकती है. लेकिन हम राज्य के हेरिटेज टूरिज्म सर्किल में सदियों पुराने इन कब्रिस्तानों को भी शामिल करना चाहते हैं. सरकार लंदन के हाईगेट सेमिट्री और पेरिस के पेरे-लेकाइसे सेमिट्री के तौर पर कोलकाता के कब्रिस्तानों को भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाना चाहती है. पेरिस के पेरे लेकाइसे सेमिट्री में लेखक ऑस्कर विल्डे, गायक जेम्स मॉरिसन, ओपेरा लेखक रोसिनी और कवि बाल्जाक की कब्र है. इसी तह वाशिंगटन की अर्लिंगटन सेमिट्री है जहां जॉन एफ केनेडी को दफनाया गया. न्यूयॉर्क की कब्रगाह भी खासी चर्चित है.

कितने पुराने कब्रिस्तान

कोलाकाता के पार्क स्ट्रीट में बने दो कब्रिस्तान तो लगभग ढाई सौ साल पुराने हैं. इनमें दफनाए गए लोगों के रिकार्ड को डिजिटल रूप में संरक्षित करने का काम भी शुरू हो गया है. यह काम पूरा होने पर लोग दफनाने की तारीख के आधार पर अपने पुरखों की कब्र तलाश सकते हैं. महानगर में चार प्रमुख कब्रिस्तानों का संचालन करने वाले क्रिश्चियन बरियल बोर्ड (सीबीबी) ने दो सौ साल पहले इनमें दफनाए गए लोगों का रिकार्ड एक कंप्यूटर में फीड करने का काम शुरू कर दिया है. इनमें ज्यादातर ब्रिटिश नागरिक थे.सीबीबी के रणजय बसु बताते हैं, 'लगभग 20 हजार कब्रों और दफनाए गए एक लाख लोगों से संबंधित आंकड़ों को कंप्यूटर में फीड करने की जटिल प्रक्रिया शुरू हो गई है. यह काम पूरा हो जाने पर अपने पुरखों की तलाश में महानगर आने वाले ब्रिटेन. स्कॉटलैंड और आयरलैंड के लोगों की तलाश कंप्यूटर पर क्लिक करते ही पूरी हो जाएगी.'

महान लोगों की कब्र

पार्क स्ट्रीट सेमिट्री में जिन लोगों की कब्रें हैं उनमें एशियाटिक सोसायटी की स्थापना करने वाले मशहूर शिक्षाविद् विलियम जोंस और कवि हेनरी लुइस विवियन डिरोजियो भी शामिल हैं. पुराने मामलों में लोग कंप्यूटर में दफनाने की तारीख डाल कर अपने पुरखों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं. जो मामले ज्यादा पुराने नहीं हैं, उनमें नाम के सहारे ही ब्यौरा तलाशा जा सकता है.तमाम आंकड़ों को डिजिटल स्वरूप देने का काम फिलहाल चल रहा है और यह जल्दी ही पूरा हो जाएगा. बसु बताते हैं कि रोजाना कोई दो दर्जन विदेशी अपने पुरखों की कब्र तलाशने महानगर के विभिन्न कब्रिस्तानों में आते हैं. लेकिन कोई सिलसिलेवार रिकार्ड नहीं होने की वजह से उनको दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

पर्यटन मंत्री कहते हैं कि यह काम पूरा हो जाने पर विदेशी पर्यटकों को पहले की तरह पूर्वजों की कब्र तलाशने के लिए यहां इन कब्रिस्तानों में नहीं भटकना होगा. अब वह लोग अपने देश में ही इंटरनेट के जरिए इसका पता लगा कर कोलकाता आ सकते हैं. इससे उनकी परेशानी भी कम हो जाएगी और समय भी बचेगा. वह कहते हैं कि इन पर्यटकों के यहां आने पर राज्य सरकार को उनसे विदेशी मुद्रा भी मिलेगी. यानी सैकड़ों साल से कब्र में पड़े मुर्दे भी अब विदेशी मुद्रा की आय का जरिया बनेंगे.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः एन रंजन

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