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अब असम की 'मूल' मुस्लिम आबादी का सर्वेक्षण करेगी सरकार

प्रभाकर मणि तिवारी
१० फ़रवरी २०२०

नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) की प्रामाणिकता पर छाए संशय के बादल अभी छंटे भी नहीं हैं कि इसी बीच असम सरकार ने राज्य में रहने वाली देशी मुस्लिम आबादी की शिनाख्त के लिए एक सर्वेक्षण करने का फैसला किया है.

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तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

असम सरकार का कहना है कि राज्य में मुस्लिम आबादी 1.30 करोड़ है जिसमें से 90 लाख बांग्लादेशी मूल के हैं. बाकी 40 लाख लोग मुख्य रूप से चार जनजातियों में बंटे हैं. उनकी शिनाख्त के लिए ही सर्वेक्षण किया जाएगा. सरकार की दलील है कि सही तरीके से शिनाख्त नहीं होने की वजह से स्थानीय मुसलमानों को सरकार की विभिन्न कल्याण योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी और नागरिकता (संशोधन) कानून, सीएए से राज्य की मुस्लिम आबादी में फैली भ्रम की स्थिति दूर करने के लिए ही सरकार ने ऐसा सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है.

कैसे होगा सर्वेक्षण

असम में चाय बागानों में काम करने वाली चार जनजातियां मुस्लिम तबके में शामिल हैं. इनको क्रमशः गोरिया, मोरिया, देसी और जोला के नाम से जाना जाता है. इनकी सही तरीके से शिनाख्त के लिए ही अब नए सिरे से सर्वेक्षण का फैसला किया गया है. राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रंजीत दत्त ने सर्वेक्षण के तौर-तरीकों और समयसीमा पर विचार करने के लिए मंगलवार को राजधानी गुवाहाटी में एक बैठक बुलाई है.

उक्त बैठक में चारों जनजातियों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों के अलावा उनके कल्याण से जुड़े संगठन के लोग भी शामिल होंगे. असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड ते अध्यक्ष मुमीनुल ओवाल कहते हैं, "असम में मुस्लिमों की आबादी 1.30 करोड़ है. इसमें से 90 लाख लोग तो बांग्लादेशी मूल के हैं. बाकी 40 लाख विभिन्न जनजातियों के हैं और उनकी पहचान जरूरी है.” मुमीनुल का दावा है कि समुचित पहचान के अभाव में मुस्लिम तबके के मूल बाशिंदों तक सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता.

असम में मुस्लिम आबादी लंबे अरसे से विवाद की वजह रही है. असम आंदोलन हो या बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ, यह मामला अकसर सुर्खियों में रहता है. दिलचस्प बात यह है कि जब भी राज्य में मुस्लिम आबादी का जिक्र होता है तो अंगुलियां बांग्लादेशी मूल के लोगों की ओर ही उठती हैं. लेकिन यह पहला मौका है जब राज्य सरकार ने असम के मूल मुस्लिम बाशिंदों के सर्वेक्षण का फैसला किया है.

अचानक शिनाख्त क्यों

आखिर अचानक इस तबके के लोगों के सर्वेक्षण की जरूरत क्यों पड़ी? इस पर ओवाल का कहना है, "इस पूरी कवायद का मकसद राज्य के मूल बाशिंदों को जनसंख्या के आधार पर होने वाले बदलावों से बचाना है.” वह कहते हैं कि एनआरसी में भारी तादाद में बांग्लादेशी मूल के लोगों के नाम होने की वजह से उस पर भरोसा करना मुश्किल है. उनका कहना है, "अगर हमने फौरन इस दिशा में कदम नहीं उठाया तो एक दिन तमाम मूल जनजातियां असम से गायब हो जाएंगी. स्वदेशी जनजातियों को अधिकृत तौर पर मान्यता मिलने के बाद उन लोगों के विकास के लिए काम करना आसान हो जाएगा.”

ओवाल बताते हैं कि प्रस्तावित सर्वेक्षण के लिए असम सरकार से भारत के महापंजीयक (आरजीआई) की अनुमति लेने का अनुरोध किया जाएगा. आरजीआई की मंजूरी के बिना ऐसे किसी सर्वेक्षण के नतीजे को कानून मान्यता नहीं मिलेगी.

इसमें शंका कैसी

दूसरी ओर, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी और उसके बाद सीएए को लेकर उपजे तनाव और भ्रम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही राज्य की बीजेपी सरकार ने स्वदेशी मुस्लिमों को लुभाने के लिए सर्वेक्षण का फैसला किया है. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उसमें अपनी कुर्सी बचाना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती होगी. इसलिए उसने अभी से स्वदेशी मुस्लिमों में पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी है.

एक पर्यवेक्षक सुनील डेका कहते हैं, "असम की कुछ जनजातियां पहले से ही ऐसा सर्वेक्षण कराने की मांग उठाती रही हैं. लेकिन अपने तय एजेंडे पर आगे बढ़ रही सरकार ने इसके लिए अब चुनाव से ठीक पहले का समय चुना है.” उनका कहना है कि इस मामले में फिलहाल कुछ साफ नहीं है. यह सर्वेक्षण कैसे होगा, इसमें कौन लोग होंगे और इसे कितने दिनों में पूरा किया जाएगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिन पर इस सर्वेक्षण का भविष्य टिका है.

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