"अफ्रीका को साथी मानता है भारत"
२६ जून २०१३पूर्वी अफ्रीका पर जर्मन राजधानी बर्लिन में हुए सम्मेलन में भारत और चीन को खास तवज्जो दी गई. भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरण का कहना है, "हम ओईसीडी देशों (आर्थिक साझीदारी और विकास संगठन) की तरह सीधे सामुदायिक और गैरसरकारी संगठनों से संपर्क नहीं साधते, बल्कि हम अफ्रीकी देशों की सरकारों को भरोसे में लेकर चलने की कोशिश करते हैं और उनके माध्यम से ही अपना काम बढ़ाना चाहते हैं." पेरिस स्थित ओईसीडी विकसित और अमीर देशों का संगठन है, जो विकासशील देशों को आर्थिक मदद मुहैया कराता है.
सरण के मुताबिक यह काम जरा "धैर्य भरा" है लेकिन लंबे वक्त में इसका सकारात्मक परिणाम निकलेगा. हाल के सालों में अमेरिका और चीन सहित दुनिया भर के देशों ने अफ्रीका की ओर रुख किया है, जहां दुनिया भर का 40 फीसदी प्राकृतिक संसाधन माना जाता है. चीन अपनी तेल जरूरतों का एक तिहाई, जबकि भारत 20 फीसदी अफ्रीका से ही हासिल करता है.
कैसे हों साझीदार
हालांकि कई अफ्रीकी देशों में जबरदस्त राजनीतिक अस्थिरता है. सोमालिया और सूडान जैसे अफ्रीकी देशों में आतंकवादी मिलीशिया का बोलबाला है और राजनीतिक समाधान में मदद के नाम पर कई देश यहां के संसाधनों पर नजरें डाले हुए हैं. वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन भारत और चीन को इससे बचने की सलाह देते हैं, "अफ्रीका यह आखिरी चीज चाहेगा कि दो और देश, भारत और चीन वहां आएं और अमेरिका या फ्रांस या ब्रिटेन की तरह बर्ताव करें. अफ्रीका एक सच्चा साझीदार चाहता है."
भारत और चीन अफ्रीका के सबसे बड़े साझीदार बन कर उभरे हैं. साल 2000 में दोनों पक्षों में तीन अरब डॉलर का कारोबार होता था, जो बढ़ कर 60 अरब पार कर गया है. इसे 2015 तक बढ़ा कर 90 अरब करने का लक्ष्य है. पिछले दशक में भारत और चीन दोनों का अफ्रीका के साथ कारोबार लगभग 25 फीसदी बढ़ा है. यूरोप का सुपर पावर जर्मनी भी अफ्रीका में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है और साथ ही वहां भारत और चीन की बढ़ती अहमियत को समझता है.
विकास का तरीका
जर्मन विदेश मंत्रालय में राज्य सचिव एमिली हेबर अफ्रीका को "शानदार भूगोल लेकिन कड़वी सच्चाई" वाला इलाका बताते हुए कहती हैं कि सिर्फ दो ही रास्ते हैं, "संघर्ष का या फिर सहयोग का." भारत, चीन और जर्मनी को अफ्रीका के विकास के लिए खास तिकड़ी बताते हुए वरदराजन की राय है कि इन्हें अपने काम के हिस्से भी बांट लेने चाहिए, "भारत मानव संसाधन और ट्रेनिंग में शानदार भूमिका निभा सकता है, चीन आधारभूत संरचनाओं में और जर्मनी बेमिसाल तकनीक में."
चीन की बीजिंग यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर अफ्रीकन स्टडीज के प्रमुख प्रोफेसर ली अनशान की राय है कि बाहरी देशों को अफ्रीका में बहुत ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए, "उन्हें नियम बनाने दीजिए और उन्हीं के हिसाब से काम कीजिए."
हालांकि सम्मेलन में यह बात भी उठी कि दुनिया भर के लोग अफ्रीका के लिए फैसले कर रहे हैं, खुद अफ्रीका क्या चाहता है, क्या "वह चाहता भी है कि दूसरे उसके लिए फैसला करें." यूगांडा के विदेश मंत्रालय में स्थायी सचिव जेम्स मागुमे का कहना है कि यह निर्भर करता है कि हमें "विन विन सिचुएशन" हासिल हो, जो भारत, चीन और यूरोप के साथ व्यापार से हो सकता है. मुगामे के मुताबिक सड़क, रेल और बिजली जैसी जरूरतें सबसे बड़ी हैं और "भारत और चीन को हमारी संरचनाओं की जरूरत के बारे में पता है."
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ, बर्लिन
संपादनः महेश झा