अफगानिस्तान में हिम तेंदुए को बचाने की कोशिश
२३ अगस्त २०११सालों से अफगानिस्तान के पहाड़ों में पाए जाने वाले हिम तेंदुओं की संख्या तेजी से घट रही है. वन्यजीव संरक्षकों का कहना है कि प्रशासन को प्रवासी प्रजातियों को बचाने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों में शामिल होना चाहिए. शोधकर्ताओं ने हाल में वखान कॉरीडोर में हिम तेंदुए को देखा था. कैमरों की मदद से इस जंगली जानवार की तस्वीरें ली गईं.
आम तौर पर हिम तेंदुए या बर्फीले तेंदुए मध्य और दक्षिण एशिया की बीहड़ पहाड़ियों में पाए जाते हैं. बर्फीले तेंदुए 12 देशों में पाए जाते हैं. अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान में हिम तेंदुए पाए जाते हैं.
प्रवासी प्रजाति के जंगली जानवरों का संरक्षण करने वाली संस्था (सीएमएस) हिम तेंदुए को बचाने के काम में जुटी हुई है. आम तौर पर हिम तेंदुए अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास पाए जाते हैं. कई सीमाओं के विवादों में रहने के चलते उन तेंदुओं तक आम इंसान नहीं पहुंच सकता है. एक और परेशानी यह है कि तेंदुए की गिनती विवादित सीमा में कर पाना आसान नहीं है.
हिम सारस भी आते हैं अफगानिस्तान
हिम सारस या साइबेरियाई सारस अक्सर भारत या चीन जाते वक्त अफगानिस्तान में भी पड़ाव डालते हैं. लेकिन इसकी भी संख्या नाटकीय रूप से घटती जा रही है. पश्चिम एशिया के लिए सीएमएस की कंसल्टेंट क्रिश्टियाने रौएटगर के मुताबिक गैरकानूनी शिकार, पोचिंग और जानवरों के प्राकृतिक वास का बर्बाद होना घटती संख्या के लिए जिम्मेदार है. रौएटगर कहती हैं, "कुछ शिकारी सीमा पार कर शिकार करते हैं और फिर वापस लौट आते हैं, इस वजह से विवाद पैदा होता है."
रौएटगर का कहना है कि शिकारियों का पीछा सीमा तक नहीं किया जा सकता है, इस वजह से अक्सर संरक्षण के प्रयास "सीमा पर खत्म हो जाते हैं." अफगानिस्तान वन्यजीव संरक्षण संस्था सीएमएस का सदस्य नहीं है. वहां करीब 80 प्रवासी प्रजातियों पाईं जाती हैं. बुखारा हिरन और मार्को पोलो भेड़ के अलावा कई पक्षियां वहां जाते हैं.
40 साल पहले अफगानिस्तान में 80 के करीब हिम सारस थे. यह सारस खास है क्योंकि यह साइबेरिया में पैदा होते हैं और भारत या चीन जाते समय अफगानिस्तान में रुक जाते हैं. 2002 में वहां दो साइबेरियाई सारस को देखा गया था.
जागरुकता की कमी
वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के जलमई मोहेब के मुताबिक आम लोगों में जागरुकता की बेहद कमी है. यह सोसायटी अफगानिस्तान में 2006 से सक्रिय है. मोहेब के मुताबिक संरक्षण लोगों के लिए नया है. लोगों के अंदर संरक्षण की अवधारणा नहीं है और यह भी नहीं जानते कि अवैध रूप से शिकार करने के क्या परिणाम हो सकते हैं. रौएटगर कहती हैं कि जानवरों का संरक्षण सीमा पर बंद नहीं होना चाहिए क्योंकि जानवर सीमा पार करते हैं.
रिपोर्ट: वसालत हसरत नजीमी/आमिर अंसारी
संपादन: महेश झा