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अफगानिस्तान में जारी है बच्चाबाजी प्रथा

२७ जून २०१७

मेकअप किए, नकली स्तन लगाए और पैरों में घुंघरू बाधें लड़के. ये अफगानिस्तान के सरदारों और कमांडरों के अगवा किये हुए वो बच्चे हैं जो उनके यौन दास हैं. इस भयानक सिलसिले का नाम है अफगानिस्तान की बच्चाबाजी प्रथा.

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Afghanistan - Afghanischer Junge der als Sex-Sklave Missbraucht wurde
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Karimi

जावेद (बदला हुआ नाम) जब 14 साल का था जब उसे काबुल के उत्तर से एक जिहादी कमांडर ने अगवा कर लिया था. जावेद उन तीन बच्चों में से है जो बच्चाबाजों की गिरफ्त से भागने में कामयाब रहा. तीनों बच्चों की कहानियां उन लोगों की जिंदगियों के बारे में विस्तार से बताती हैं जिन्हें अगवा कर यौन दास बना लिया जाता है. ज्यादातर मामलों में इन बच्चों के परिवार वाले उन्हें शर्म की तरह देखते हैं और घर से बाहर निकाल देते हैं. इस तरह बच्चाबाजी में फंसे ये बच्चे एक नये दुष्चक्र में फंस जाते हैं.

जावेद को अगवा किये जाने के 4 साल बाद जावेद के कमांडर ने एक नया यौन दास रख लिया और उसे एक सरदार को "तोहफे" में दे दिया. जावेद ने बताया कि उसका कमांडर उसे एक शादी में नाचने के लिए ले गया था लेकिन उस रात वहां गोलीबारी हो गयी, बंदूकें चल गयीं और मौके का फायदा उठाकर जावेद वहां से भाग निकला. लेकिन भागने के बाद अब उसके सामने नयी मुश्किलें हैं. अफगानिस्तान का कानून बच्चाबाजी के पीड़ितों को किसी तरह की सुरक्षा नहीं देता. जावेद की पढ़ाई नहीं हुई है और उसे जीवन यापन के लिए नाचने के अलावा और कोई दूसरा काम नहीं आता.

Afghanistan - Aktivist der als Kind als Sex-Sklave Missbraucht wurde
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Kohsar

जावेद बताता है कि वह रईसों की पार्टियों में नाचता है. जावेद आजाद है और उसे किसी ने गुलाम नहीं बनाया हुआ है तब भी उसके साथ जबरदस्ती की जाती है. पार्टियों के बाद अक्सर इस बात पर लड़ाई होती है कि कौन उसे अपने साथ घर लेकर जायेगा.

अफगानिस्तान के समाज में बच्चाबाजी की प्रथा को समलैंगिकता में नहीं गिना जाता क्योंकि इस्लाम में समलैंगिता हराम है. इसे सत्ता और अधिकार से जोड़कर देखा जाने लगा और यह सांस्कृतिक प्रथा के तौर पर अफगान समाज में शामिल हो गया.

15 वर्षीय गुल ने दो बार भागने की असफल कोशिश की और आखिर में हर बार उसके साथ भयानक मारपीट हुई. तीन महीने की कैद के बाद एक दिन वह नंगे पांव ही वहां से भाग निकला. लेकिन उसके भागने का कोई फायदा नहीं है. वह लगातार अपनी जगह बदलता रहता है. उसे लगातार इस बात का डर लगा रहता है कि उसे फिर से अगवा कर लिया जाएगा. इस बीच उसके घरवाले भी इस डर से घर छोड़कर चले गये कि कमांडर वहां आकर गुल को तलाश करेगा. पुलिस भी पीड़ित बच्चों की मदद नहीं करती, उल्टा अक्सर बच्चों के मिलने पर उसे फिर से कमांडर और सरदारों को सौंप देती है.

गुल ने बताया कि सरदार और कमांडर एक दूसरे से तुलना करते हैं. 'मेरा बच्चा तुम्हारे वाले से ज्यादा हैंडसम है या मेरा बच्चा बेहतर डांस करता है.' बच्चा बाजी में फंसे बच्चों के लिए दूसरा विकल्प तालिबान है. बदले की आग में जल रहे इन बच्चों को तालिबान अपनी फौज में शामिल कर लेता है. हालांकि, बाकी बच्चों से अलग गुल किस्मत वाला रहा कि उसका परिवार उसे स्वीकार करने के लिए राजी हो गया.

अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में बच्चाबाजी के पीड़ितों के लिए काम कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों के परिवार के सामने बहुत मुश्किलें होती हैं. कई बार माता-पिता आकर कहते हैं बच्चे की आंत में परेशानी है. लेकिन ध्यान से जांच करने पर मालूम चलता है कि बच्चे का बलात्कार किया गया था और उसे टांके लगाने की जरूरत है. परिवार सदमे में बस इतना ही कह पाते हैं कि हमें किसी तरह का प्रचार नहीं चाहिए. आप किसी को मत बचाइए. बस बच्चे को बचा लीजिए.

एक बच्चाबाज कमांडर से आजादी पाने के बाद ऐमाल सामाजिक कार्यकर्ता बन गया. ऐमाल के मुताबिक ज्यादातर पीड़ित बाद में खुद भी बच्चाबाज बन जाते हैं. और वो वैसा नहीं बनना चाहता. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस साल दंड संहिता में संशोधन कर पहली बार बच्चाबाजी को सजा वाला अपराध घोषित किया है. लेकिन बच्चों को जल्द राहत मिलने के आसार नहीं हैं क्योंकि सरकार ने इस कानून को लागू करने की कोई समय सीमा तय नहीं की है.

एसएस/एमजे (एएफपी)

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