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समाज

अफगानिस्तान की बामियान घाटी पर जलवायु परिवर्तन की मार

१७ जनवरी २०२०

बामियान घाटी एक नई चुनौती से जूझ रही है. यह चुनौती ना तालिबान से है और ना ही जिहादियों से बल्कि जलवायु परिवर्तन से है. गुफाओं और सांस्कृतिक विरासतों पर भूमि कटाव का खतरा बढ़ गया है.

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Die leere Höhle der berühmten Buddha-Staue von Bamiyan, Afghanistan
तस्वीर: Getty Images/AFP/Shefayee

अफगानिस्तान के बामियान प्रांत के पुरातात्त्विक खजाने को पहले जिहादियों ने बम से उड़ाया और उसके बाद बची कुछ अहम चीजें चोर चुरा ले गए. अब यह नई चुनौती का सामने कर रहे हैं और वह है जलवायु परिवर्तन. लंबे समय तक युद्ध झेल चुके अफगानिस्तान के पास इतने पैसे नहीं है कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत काम कर पाए. ऐतिहासिक विरासत को बचाना उसके लिए बड़ी चुनौती है.

सन 2001 में बामियान प्रांत में पहाड़ियों में उकेरी गईं बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को तालिबान ने तबाह कर दिया था. बुतपरस्ती को मिटाने के नाम पर 2001 में तालिबान शासन की ओर से टैंकों, रॉकेटों और डायनामाइट से विशाल मूर्तियों पर हमला किया गया. हिन्दूकुश पर्वतमाला के बीच में बसी बामियान घाटी में दशकों और सदियों पुरानी बुद्ध की मूर्तियां तबाह होने के बाद आज भी कई गुफाओं में मंदिर, मठ और बुद्ध की पेंटिंग मौजूद हैं.

Three paintings of Buddha which were dam
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Hossaini

विशेषज्ञों का कहना है कि पहले सूखा और उसके बाद भारी बारिश और वसंत के मौसम में बर्फ का अत्याधिक पिघलना ऐतिहासिक कला और वास्तुकला के लिए विनाशकारी जोखिम पैदा कर रहे हैं. 2016 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में अफगान अधिकारियों को ढांचे के "गिरने और उसके गंभीर कटाव" को लेकर चेतावनी दी गई थी. रिपोर्ट में इसे सीधे जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया था.

अफगानिस्तान में फ्रांसीसी पुरातात्त्विक प्रतिनिधिमंडल के निदेशक फिलिप मार्की के मुताबिक, "कटाव की प्रक्रिया बहुत तेज है. बारिश अधिक विनाशकारी है और हवा से होने वाला कटाव शक्तिशाली होता है. जिस वजह से स्थल को बहुत नुकसान हो रहा है." मार्की ने इस क्षेत्र में दशकों तक काम किया है और उन्हें क्षेत्र के बारे में बहुत अनुभव है. वह बताते हैं कि अफगानिस्तान भूविज्ञान के लिहाज से बहुत नाजुक है, खासतौर पर पेड़ों की कटाई के कारण वनस्पति का क्षेत्र कम हुआ है. फ्रांस की इमेजिंग कंपनी इकोनेम का कहना है कि कटाव के कारण शार-ए-जोहक की हालत बहुत ही नाजुक है और पिछले तीस सालों में स्थिति और खराब हुई है.

उत्तरी बामियान के साइखंड जिले के 21 साल के बाकी गुलामी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन इलाके के लोगों के लिए एक हकीकत है जिसका सामना वह लंबे समय से कर रहे हैं. गुलामी कहते हैं, "मौसम बदल रहा है. गर्मी के दिन बहुत गर्म होते हैं और सर्दी बहुत पड़ती है." इसी इलाके में कभी बुद्ध की दो विशाल मूर्तियां हुआ करती थी. तालिबान ने मूर्ति को नष्ट करने का कारण उनका गैर इस्लामी होना बताया था. इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए ये प्रतिमाएं बरसों तक उनकी जिंदगी का हिस्सा रहीं. इलाके के लोग समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए उसके इतिहास से खुद को जोड़ते हुए गर्व करते हैं.

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बुद्ध की क्षतिग्रस्त पेंटिंग.तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Hossaini

गुम होती एक विरासत

खाली गुफाओं से पर्यटक सांस्कृतिक केंद्र देख सकते हैं, जिसका निर्माण 2015 में शुरू हुआ था, लेकिन अभी तक वह पूरा नहीं हो पाया है. केंद्र का उद्देश्य पर्यटकों को क्षेत्र की विरासत को संरक्षित करने की तत्काल जरूरत के बारे में बताना है. बामियान यूनिवर्सिटी में पुरातत्व विभाग के निदेशक अली रजा मुश्फिक कहते हैं, "अगर लोग बिना जानकारी के साइट देखते हैं तो इसका कोई लाभ नहीं है." साथ ही वह शिकायत करते हैं कि फंड की कमी के कारण कई लोग अंधकार में हैं जिनमें उनके छात्र भी शामिल हैं, जिनके पास किताबें तक नहीं है. पुरातत्त्वविद भी मानते हैं कि "कटाव बढ़ रहा है" लेकिन उनके मुताबिक असली खतरा "साइट पर मानव प्रभाव" से हो रहा है जिनमें लूट की घटनाएं भी शामिल हैं जो अफगानिस्तान में बहुत हो रही है.

इन सब घटनाओं से निपटने के लिए शार-ए घोलघोला किले और अन्य अहम साइटों पर सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं. इलाके से बारूदी सुरंगों के हटाए जाने के कारण हाल के सालों में कई हजारों लोग यहां आए लेकिन पर्यटकों की संख्या बढ़ने से जमीनी हालात बदलने में मदद नहीं मिली है. मुश्फिक कहते हैं, "हमें स्थानीय लोगों को ट्रेनिंग देनी शुरू करनी होगी, उन्हें सिखाना होगा कि स्थल को किस तरह से बर्बाद होने से बचाया जाए." साथ ही मुश्फिक बताते हैं कि कुछ स्थानीय लोग ऐतिहासिक स्थलों का इस्तेमाल चारा रखने और जानवरों को बांधने के लिए करते हैं.

बुद्ध की गुफा से कुछ ही दूरी पर रहने वाले 37 साल के अमानुल्लाह कहते हैं कि उनके परिवार ने वहीं पास की एक गुफा को अपना ठिकाना बना लिया है. ऐसा करने वाला केवल उनका परिवार नहीं है बल्कि कई अन्य गरीब परिवारों ने प्राचीन कलाकृतियों और ऐतिहासिक ढांचे के भीतर आश्रय ले रखे हैं. अमानुल्लाह कहते हैं, "यहां करीब 18 परिवार हैं. हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है. अगर हमें मकान मिल जाता है तो हम यहां से चले जाएंगे."

हालांकि मार्की के अमपसार इन धरोहरों को सबसे बड़ा खतरा स्थानीय लोगों या चोरों से नहीं बल्कि कटाव से है. कटाव के प्रभावों और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अफगानिस्तान को अरबों डॉलर खर्च करने होंगे, लेकिन युद्धग्रस्त देश में इस तरह के बोझ उठाने की क्षमता बहुत कम है.

एए/आरपी (एएफपी)

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