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अटल वाजपेयी ने क्या खोया क्या पाया

शिवप्रसाद जोशी
१७ अगस्त २०१८

‘क्या खोया क्या पाया जग में’ अपने इस गीत में अटल बिहारी वाजपेयी मानो अपने जीवन का हिसाब लगा रहे हों.

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Indien Trauer Begräbnis  Atal Bihari Vajpayee
तस्वीर: Reuters/P. Ravikumar

अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे तो टीवी समाचार मीडिया अपने पांव पसार चुका था. चौबीस घंटे वाला टीवी न्यूज और दिल्ली में बीजेपी और वाजपेयी का कद कमोबेश एक साथ या थोड़ा आगे पीछे ही बढ़ा है. आज टीवी में उनके प्रति एक विह्वल न्यौछावरी सी है तो ये स्वाभाविक है. बीजेपी नेता के रूप में, आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में, संसद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में और आखिरकार देश के पहले गैर कांग्रेसी और गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी की खूबियों और करामातों से रिकॉर्ड भरे पड़े हैं. सोशल मीडिया से लेकर अखबारों, वेबसाइटों और टीवी तक- इस तूफानी और हाहाकारी कवरेज को देखा पढ़ा जा सकता है. लेकिन वाजपेयी की राजनीति और उनकी छवि के कुछ शेड्स इस अपार महिमामंडन से छूटे हुए हैं. सक्रिय राजनीति से वाजपेयी करीब एक दशक पहले ही रिटायर हो चुके थे. वे बीमार थे और घर पर ही रहते थे.

वाजपेयी को उदारवादी, सेक्युलर मिजाज वाला नेता माना जाता था, कि वो गलत जगह के सही व्यक्ति थे. शायद ये वाजेपयी का एक चतुर मीडिया प्रबंधन कौशल रहा होगा और उनकी मुखौटा छवि का दबदबा भी. लेकिन 2002 के उनके भाषणों, संसद में उनके रवैये, तत्कालीन गुजरात सरकार के प्रति उनकी नरमी, गुजरात दंगों के अदालती मामलों में न्यूनतम हस्तक्षेप की एक खामोश रणनीति, थोड़ा पीछे चलकर देखें तो 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के वक़्त अयोध्या में उनकी गैरमौजूदगी, लखनऊ में उनका विवादास्पद बयान- बहुत सी राजनीतिक घटनाएं हैं जो वाजपेयी की राजनीतिक और वैचारिक जमीन की ओर इशारा करती हैं.

Narendra Modi Indien Ministerpräsident Gujarat
बीजेपी का मुखौटा बने अटल बिहारी वाजपेयीतस्वीर: AP

2002 में गुजरात सांप्रदायिकता की आग सबकुछ निगलती ही जा रही थी, तब वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में देश के नाम संदेश के साथ टीवी पर पहली बार प्रकट हुए थे- दो मार्च को यानी पूरे 72 घंटे बाद. बेशक ये कहा कि दंगे राष्ट्र के माथे पर काले धब्बे की तरह हैं लेकिन इस धब्बे के अभियोगियों के खिलाफ उन्होंने कोई सख्त बात नहीं कही. 2002 के वाजपेयी दरअसल जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा है, 1984 के राजीव गांधी और 1993 के नरसिम्हाराव जैसे ही थे. गोवा में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान और एक जनसभा में दंगों की विभीषिका पर दुख प्रकट करते हुए, वाजपेयी ने ऐसा विवादास्पद भाषण दिया था जिस पर हिंदूवादी और सांप्रदायिक होने के आरोप लगे थे. भाषण की विकरालता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उनके खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का नोटिस ले आया गया.

वाजपेयी सच्चे अर्थों में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक गुरू और जैसा कि मोदी ने कहा कि पितातुल्य थे. कहा तो ये भी जाता है कि अज्ञातवास से निकालकर मोदी की राजनीतिक पुनर्बहाली करने वाले वाजपेयी ही थे. राजधर्म का सबक याद दिला कर वाजपेयी ने खूब वाहवाही लूटी लेकिन यह कटाक्ष या खिन्नता से ज्यादा मामले से किनारा कर लेने जैसा था. ऑपरेशन शक्ति के नाम से 1998 में पोखरण- दो हुआ था. भारत को एटमी ताकत से लैस देश घोषित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी फूले नहीं समाए थे. लेकिन ये शक्ति हासिल करने की कीमत कई सामरिक, सामाजिक-आर्थिक स्तरों पर देश को चुकानी पड़ी, ये तथ्य नजरअंदाज नहीं किये जा सकते हैं. दक्षिण एशिया का कूटनीतिक परिदृश्य भी इस घटना के बाद तेजी से बदला. बुकर अवार्ड विजेता मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय ने तत्काल बाद विस्फोट की निरर्थकता समझाते हुए, ‘द एंड ऑफ इमेजिनेशन' शीर्षक से हिला देने वाला एक विस्तृत निबंध लिखा था जो भारत में आउटलुक पत्रिका में छपा.

अटल बिहारी वाजपेयी प्रभावशाली वक्ता बताए जाते हैं. हंसने और खिल्ली उड़ाने में उनका कोई सानी नहीं थी. उनकी मिलनसारी में एक उपहास भाव भी रहता था. हिंदी उनकी चुटकियों में थी, बोलने का लहजा नाटकीय. टीवी वालों को उनकी कही बात (टीवी भाषा में बाइट) को काटना एक भीषण चुनौती रहती थी. इतना विराम वो हर दो या तीन या बाजदफा एक शब्द के बाद ले लेते थे. फिर भी मीडिया के प्रिय थे और घुलतेमिलते थे. चूंकि ये ‘मुखौटा' माना गया था लिहाजा उसकी कोई दीवार भी नहीं थी. और वाजपेयी की एक बात जो सबसे ज्यादा प्रचारित हुई वो था उनका कवि व्यक्तित्व. उनसे पहले विश्वनाथ प्रताप सिंह चित्रकार थे, इंद्र कुमार गुजराल भी लेखक थे, नरसिम्हाराव भी प्रकांड और कई भाषाओं के ज्ञाता थे, देश के पहले प्रधानमंत्री तो बड़े लेखक ही नहीं, व्याख्याता और लोकप्रिय इतिहासकार भी थे. लेकिन कविताई में वाजपेयी ने बाजी मारी. खूब गीत लिखे. वीररस से ओतप्रोत उनकी रचनाएं हिट रहीं. अपार प्रकाशित भी हैं. लता मंगेशकर ने उनके लिखे गीत गाए हैं. अगर आप यूट्यूब पर जाएं तो  2002 का एक वीडियो एल्बम आप वहां पाएंगें जिसमें कई महारथी एक साथ हैं- अमिताभ बच्चन का पाठ, जगजीत सिंह का संगीत और गायन, शाहरुख खान का अभिनय और यश चोपड़ा का निर्देशन! इस एल्बम का नाम हैः ‘क्या खोया क्या पाया.' अपने इस गीत में अटल बिहारी वाजपेयी मानो अपने जीवन का हिसाब लगा रहे हैं!