अचानक क्यों रिहा किए गए चंद्रशेखर आजाद?
१७ सितम्बर २०१८दलितों को लामबंद करने और उन्हें शिक्षित करने के अभियान में पिछले कुछ सालों से सक्रिय भीम आर्मी दो साल से कुछ विवादों की वजह से चर्चा में ज्यादा है. भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को करीब एक साल पहले हिंसा भड़काने और ऐसे ही कुछ अन्य आरोपों में गिरफ्तार किया गया था. फिर उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया और 15 महीने तक जेल में रखने के बाद राज्य सरकार ने पिछले हफ्ते उन्हें अचानक रिहा कर दिया.
चंद्रशेखर की रिहाई के संबंध में सरकार की ओर से जो बयान जारी हुआ है, उसके मुताबिक, चंद्रशेखर को उनकी मां की वजह से रिहा किया गया है क्योंकि उन्होंने इसके लिए एक प्रार्थना पत्र दिया था. लेकिन चंद्रशेखर का कहना है कि उन्हें मां की अपील पर नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के डर की वजह से रिहा किया गया.
सियासी समीकरण
वहीं जानकार इस फैसले के पीछे राजनीतिक कारण देखते हैं. स्थानीय पत्रकार रियाज हाशमी कहते हैं कि सरकार ने बहुजन समाज पार्टी को काउंटर करने के मकसद से चंद्रशेखर को समय से पहले रिहा किया लेकिन चंद्रशेखर ने रिहाई के बाद बीजेपी के खिलाफ जो तेवर दिखाए, उससे लगता नहीं कि बीजेपी कोई लाभ उठा पाएगी.
अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी बीएसपी और एसपी के संभावित गठजोड़ की काट तलाशने में जुटी है. दलित वोटों पर भी उसकी निगाह है. लेकिन लगता नहीं कि पार्टी दलितों को रिझाने में कामयाब हो रही है. चंद्रशेखर कह चुके हैं कि वह बीजेपी को हराने के लिए काम करेंगे.
चंद्रशेखर को पिछले साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुए जातिगत संघर्ष का जिम्मेदार बताते हुए यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी लेकिन रिहाई से ठीक पहले उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका लगा दी गई और उनकी रिहाई नहीं हो सकी.
अब रिहाई के बाद से ही सहारनपुर के छुटमलपुर मोहल्ले में स्थित चंद्रशेखर के घर पर उनके समर्थकों का तांता लगा है. उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने ना सिर्फ सहारनपुर और उत्तर प्रदेश के दूसरे इलाकों में बल्कि दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी जोरदार प्रदर्शन किया था. तमाम दलित संगठनों की ओर से भी उनकी रिहाई की मांग की जा रही थी और कई राजनीतिक दल भी उनके समर्थन में उतर आए थे.
'द ग्रेट चमार'
चंद्रशेखर की गिरफ्तारी के बाद भीम आर्मी के सदस्यों ने आंदोलन किया और धीरे-धीरे इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के भी दलित युवक जुड़ने लगे. चंद्रशेखर का दावा है कि उनके संगठन का काम करीब दो दर्जन राज्यों में चल रहा है.
भीम आर्मी शब्बीरपुर हिंसा के बाद ही भले ही चर्चा में आया लेकिन यह संगठन अपना उद्देश्य सहारनपुर में दलितों के हितों की रक्षा और दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना बताता है. सहारनपुर के भादों गांव में संगठन ने पहला स्कूल भी खोला. लेकिन इसकी स्थापना की पृष्ठभूमि में सहारनपुर-देहरादून रोड पर बसे घड़कौली गांव की एक घटना भी है.
भीम आर्मी की स्थापना से जुड़े दलित चिंतक सतीश प्रसाद बताते हैं, "घड़कौली गांव के बाहर एक दलित नौजवान अजय कुमार ने एक बोर्ड लगा दिया. इस पर लिखा था- ‘द ग्रेट चमार'. यह बात ‘द ग्रेट राजपूताना' नामक संगठन को नहीं पची. इस संगठन के सदस्यों ने ‘द ग्रेट चमार' नामक बोर्ड पर कालिख पोत दी. मामूली विवाद मारपीट में तब्दील हो गया. फिर भीम आर्मी के सदस्यों ने वहां जाकर स्थिति को सँभाला और राजपूतों को पीछे हटना पड़ा.”
भीम आर्मी संगठन की स्थापना का उद्देश्य दलित बच्चों को शिक्षित करना था और उसके लिए ये संगठन शुरू से ही काम कर रहा है. भीम आर्मी के सहारनपुर के जिला अध्यक्ष कमल वालिया बताते हैं, "हमारा संगठन उत्तर प्रदेश में 1000 स्कूल खोलने की तैयारी कर रहा है, जहां पर गरीब दलित बच्चों को फ्री में पढ़ाया जाएगा. संगठन ने सहारनपुर से इसकी शुरुआत कर दी है और 'भीम आर्मी पाठशाला' में सैकड़ों बच्चे पढ़ रहे हैं. इन स्कूलों में दलित बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ दलित नायकों के संघर्ष और इतिहास के बारे में भी पढ़ाया जाएगा.”
भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर का भी कहना है कि उनका संगठन एक सामाजिक संगठन ही रहेगा, राजनीतिक नहीं बनेगा. ये अलग बात है कि उनकी रिहाई के बाद से ही ऐसे कयास लग रहे हैं कि यदि भीम आर्मी राजनीतिक संगठन न भी बना, तो भी उसकी राजनैतिक अहमियत जरूर मायने रखेगी.