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'अंदर से फट सकता है पाकिस्तान'

७ दिसम्बर २०११

पाकिस्तान के नेताओं ने देश की जनता पर ध्यान नहीं दिया, तो विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है. पेशावर विश्वविद्यालय में मीडिया पढ़ाने वाले डा. अल्ताफ खान के साथ मानसी गोपालकृष्णन ने पाकिस्तान के हालात पर चर्चा की.

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पाकिस्तान के लिए गंभीर भविष्यवाणीः अल्ताफ खानतस्वीर: Altaf Khan

डॉयचे वेलेः बॉन कांफ्रेंस में शामिल न होने के पीछे क्या मकसद था?

अल्ताफ खानः बॉन कान्फ्रेंस को बॉयकाट करने के फैसले के पीछे यह मकसद था कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में पाकिस्तान को कुछ फायदा मिल सके. लेकिन इस कान्फ्रेंस को बॉयकाट करने का मतलब है, यूरोप की तरफ से दोस्ती के हाथ को स्वीकार न करना. खास तौर पर जर्मनी से, जो पाकिस्तान का अच्छा साथी है, विकास और बाकी क्षेत्रों में. पाकिस्तान में लोग और सरकार जर्मनी को एक निष्पक्ष साझेदार के रूप में देखते हैं. अगर हम इसे राजनीतिक तौर पर देखें, तो पाकिस्तान में विश्लेषकों का मानना है कि इस्तांबुल और अमेरिका अपनी तरफ से कोई योगदान नहीं दे रहे, इसलिए बॉन बैठक उनके लिए इतना अहम नहीं है.

किस तरह के योगदान की बात कर रहे हैं आप?

मेरा मतलब है कि अफगानिस्तान के लिए समाधान के तौर पर कुछ सामने नहीं आया है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि इस मुद्दे में तीन साझेदार हैं, पाकिस्तान, अफगानिस्तान औऱ अमेरिका और एक तरह से भारत भी. वे बातचीत में शामिल हैं और यह बातचीत उस इलाके में चलती रहेगी.

अफगान नेताओं का मानना है कि पाकिस्तान अपने आप को अलग कर रहा है. क्या आपको लगता है कि उनका आकलन ठीक है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो यह सही हो सकता है, लेकिन अफगान मुद्दे में पाकिस्तान का हमेशा बड़ा हाथ रहेगा. मुझे नहीं लगता है कि अफगान मुद्दे को पाकिस्तान की मौजूदगी के बिना हल किया जा सकेगा. अगर आप जर्मन विदेश मंत्री के तर्क देखें, तो उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के हवाले से कहा कि अमेरिका पाकिस्तान के संबंधों में ठहराव की वजह से शांति प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जहां तक अलग होने का सवाल है, मुझे नहीं लगता कि यह ज्यादा दिन रहेगी. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि बैठक को बॉयकाट करने का फैसला बहुत अच्छा था.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कहा है कि वे अमेरिका से बात कर रहे हैं औऱ संबधों को दोबारा सही करना चाहते हैं. क्या आपको लगता है कि इस सिलसिले में पाकिस्तान कुछ नरमी दिखा रहा है?

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंध कुछ अजीब हैं. वे हमेशा साथ रहेंगे और दोनों के बीच संबंध खत्म नहीं होंगे. क्योंकि बहुत सारे स्वार्थ हैं, रणनीतिक तौर पर. पाकिस्तान के रवैये में नरमी तीसरे चौथे दिन से ही शुरू हो गई थी. कुछ लोगों का मानना था कि पाकिस्तान को इसका फायदा उठाना चाहिए. कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपनी संप्रभुता स्थापित करनी चाहिए, कोई समझौता नहीं करना चाहिए, लेकिन औरों ने कहा कि हमें सुलह कर लेनी चाहिए और आगे ऐसा होने नहीं देना चाहिए. लेकिन किसी ने नहीं कहा कि पाकिस्तान को अमेरिका के साथ संबंध खत्म कर देने चाहिए. अमेरिका ने भी नहीं. पाकिस्तान में कुछ आवाजें उठीं कि अमेरिका को माफी मांगनी चाहिए और अपनी गलती माननी चाहिए. मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ओबामा ने कुछ हद तक ऐसा किया भी. लेकिन हमें पता है कि अपने इतिहास में अमेरिका ने कभी माफी नहीं मांगी है अपने किए को लेकर...वियतनाम या कोरिया या इराक को ही देख लीजिए.

पाकिस्तान में सेना की अमेरिका के साथ सुलह को लेकर क्या प्रतिक्रिया है? उनके मानने के बाद ही ऐसा हुआ होगा.

पाकिस्तान सरकार सेना ही नहीं; बल्कि लोगों की सहमति के बिना भी ऐसा नहीं कर पाती. क्योंकि सरकार के बारे मानना है कि वह अमेरिका के रास्ते पर चलती है. मुझे लगता है कि सेना का साथ तो है ही, क्योंकि यह ऐसा मुद्दा है जो सेना पर सीधी तरह से असर करता है. तो पाकिस्तान सरकार बिना सेना की सहमति के ऐसा कैसे कर सकती है.

पाकिस्तान में आम लोगों की क्या प्रतिक्रिया है?

अमेरिका के खिलाफ भावना बहुत बढ़ रही है. लेकिन एक दूसरा पहलू भी है. लोग गरीब होते जा रहे हैं, चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, नौकरियां जा रही हैं. एक आम पाकिस्तानी को बस अपनी दो वक्त की रोटी की चिंता है. वे इस अंतरराष्ट्रीय राजनीति से ऊब चुके हैं. पाकिस्तानियों को लगता है कि मामला किसी तरह सुलझे और देश में शांति हो. लड़ाइयों को लेकर दिलचस्पी कम होती जा रही है, कश्मीर मुद्दे को देख लीजिए, या अफगान मुद्दे को. जब आपकी चौखट पर युद्ध हो रहा हो तो आप अंतरराष्ट्रीय मामलों के बारे में नहीं सोचते.

सरकार देश में स्थिति पर कैसे काबू पा रही है, जब उसके अधिकतर संसाधन अफगानिस्तान की ओर ले जाए जा रहे हैं?

पाकिस्तान में यह सबसे खतरनाक बात हो रही है. सरकार और लोग एक साथ नहीं हैं. यह मुशर्रफ की सरकार पर भी लागू होता है लेकिन यह सरकार लोकतांत्रिक है, सैन्य नहीं. इस सरकार से उम्मीद थी कि वह लोगों की आवाज सुने और इस तरह के कदम उठाए जिससे लोगों को अहसास हो कि परेशानियों के बावजूद सरकार उनके बारे में सोच रही है.

इमरान खान एक नई आवाज हैं, लोगों ने उनसे बहुत उम्मीदें लगाई हैं और उन्हें बहुत समर्थन मिल रहा है. इनको लेकर कुछ विवाद भी है, लेकिन लोग राजनीतिज्ञों से परेशान हैं, जिन्होंने वादा कर के कुछ नहीं किया है और भ्रष्टाचार देश की मूलभूत संरचना में घुस गई है. तो सरकार को लोगों की इच्छाएं पूरी करनी चाहिए, जो उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है. यह इस वक्त नहीं हो रहा है. और अगर ऐसा नहीं हुआ तो, अफगान मुद्दा हो चाहे भारत को लेकर परेशानी हो, यह देश फटने वाला है.

किस तरह से फटने वाला है?

जब आप हर रोज और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं, लोग निचले मध्य वर्ग से, जो पहले एक आम जिंदगी जी रहे थे, उन्हें खाने के लाले पड़ गए हैं, जब इन लोगों की संख्या बढ़ती है, तो आप देश में अराजकता को आमंत्रित करते हैं. लोग हमेशा कहते हैं कि पाकिस्तान में सरकार नहीं है, लेकिन मैं कहता हूं कि सरकार न होने वाली भावना को आप नहीं जानते, ईश्वर न करे ऐसा हो, अगर ऐसा हुआ, जब लोग सरकार के प्रभुत्व को ही मानना छोड़ दें, तो वह बहुत अलग होगा.

आप किस तरह की अराजकता की बात कर रहे हैं? कराची में दंगे होते हैं, तो वह एक तरह की अराजकता है, आतंकवाद एक दूसरे तरह की अराजकता है.

जब हम ऐसे मुद्दों की बात करते हैं तो वे आम तौर पर राजनीतिक होते हैं. लेकिन तब क्या होगा अगर लोग किसी भी कानून का पालन करने से इनकार कर देंगे. क्योकि उन्हें लगता है कि इससे कोई फायदा नहीं होगा. यह अब तक नहीं हुआ है. लोग अब भी विधि शासन या कानून को मानते हैं. क्योंकि बुरे लोग बुरे हैं, और जब यह अंतर ही खत्म हो जाएगा, क्योंकि लोगों को लगेगा कि उनका जीवित रहना केवल उन्हीं के हाथों में है, जंगल के कानून के जैसा, तो वह खतरनाक हो जाएगा. क्योंकि हम विदेश नीति को देश के भीतर की नीतियों से मिला रहे हैं, क्योंकि देश के भीतर आप अलग तरह से काम करते हैं, लोगों की चाहतों पर ध्यान दिया जाता है, एक लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी पर ध्यान दिया जाता है. अगर वित्त मंत्री कोई ऐसी नीति निकाले जिसमें गरीब आदमी बिलकुल ही कंगाल हो जाए, और वह खुद छह मर्सीडीज का मालिक हो, तो लोग यही पूछते हैं, कि क्या यह लोग हमें बता रहे हैं कि हम गरीब हैं? यह खतरनाक साबित हो सकता है. हर सरकार के लिए खतरनाक है. अगर आपको राजनीति में उतरना है तो आपको राजनीति के नियमों का भी पालन करना होगा.

इंटरव्यूः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः एन रंजन