1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अंतरिक्ष में फिश करी, क्या ख्याल है

२७ सितम्बर २०११

अंतरिक्ष यात्रियों के लंबे सफर के लिए कई बातों का ध्यान रखा जाता है. अंतरिक्ष यान में उनके लिए छोटा सा जिम भी बना दिया जाता है. पर अगर वैज्ञानिकों की कोशिशें कामयाब रही तो अंतरिक्ष यात्री वहां मछलियों का मजा ले सकेंगे.

https://p.dw.com/p/12giN
तस्वीर: fotolea/Franz Pfluegl

इंसान को चांद पर पहुंचे चालीस साल से अधिक का समय हो गया है. धरती से चांद तक पहुंचने में एक हफ्ते का समय लगता है. चांद तो धरती के बहुत पास है, लेकिन जब अन्य ग्रहों पर जाना होता है तो अंतरिक्ष यात्रियों को बहुत लंबा सफर तय करना पड़ता है. मंगल ग्रह तक पहुंचते पहुंचते दो साल लग जाते हैं.

इतने लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने के लिए कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है. अंतरिक्ष यात्रियों को इतने लंबे समय के लिए खाना भी साथ ले जाना पड़ता है. वे अंतरिक्ष में स्वादिष्ट पकवानों का मजा नहीं ले सकते, बल्कि उन्हें तो ऐसा मिश्रण तैयार कर के साथ दिया जाता है जो शरीर को शक्ति दे और उन्हें जीवित रहने में मदद करे. अधिकतर यह खाना उन्हें पाइप की मदद से लेना पड़ता है.

Parabelflug DW-Zero FLash-Galerie
डीएलआर में एयरबस 300 में प्रशिक्षणतस्वीर: WAZ

अंतरिक्ष में अक्वेरियम

अब वैज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रियों की लंबी यात्रा को सरल बनाने के लिए नई खोज कर रहे हैं. पकवान तो वे अभी भी साथ नहीं ले जा सकेंगे, लेकिन एक अक्वेरियम साथ ले जा सकेंगे जिसमें कुछ खास तरह की मछलियां होंगी. इन मछलियों के अलावा इस अक्वेरियम में शैवाल यानी एल्गी और स्नेल भी होंगे.

वैज्ञानिक चाहते हैं कि अक्वेरियम के अंदर पूरा जीवन चक्र चलता रहे. मछलियों को खाना मिले और उनकी संख्या बढ़ती रहे ताकि वे कभी खत्म ना हों. मछलियों के खाने के तौर पर डाफनिया नाम के पानी में पलने वाले कीड़ों को अक्वेरियम में डाला जाएगा. ये कीड़े एल्गी खाते हैं और इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है. इस तरह से कीड़ों को एल्गी के रूप में खाना मिलेगा, मछलियों को कीड़ों के रूप में और अंतरिक्ष यात्रियों को मछलियों के रूप में.

एयरबस बना अंतरिक्षयान

वैज्ञानिक यह देखना चाहते हैं कि क्या यह अक्वेरियम गुरुत्वाकर्षणहीनता में भी सामान्य स्थितियों की तरह रह सकेगा. इसी पर प्रयोग चल रहा है जर्मनी के अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी केंद्र 'डॉयचे लुफ्ट उंड राउमफार्टत्सेंट्रुम' (डीएलआर) में. यहां एयरबस 300 को बिलकुल अंतरिक्षयान की तरह हवा में ले जाया जाता है और फिर उसी तरह तेजी से वापस जमीन पर उतारा जाता है. इस बीच ऐसे 23 सेकंड होते हैं जब प्लेन में गुरुत्वाकर्षणहीनता का माहौल होता है.

Deutschland Raumfahrt DLR Parabelflug
डॉयचे वेले के ऐलेक्जैंडर फ्रॉएंडतस्वीर: DW

डीएलआर की माइके किर्शगेसनर इस बारे में बताती हैं, "हमने देखा है कि गुरुत्वाकर्षणहीन वातावरण में डाफनिया बहुत तेजी से हरकत में आ जाते हैं. हम इस उड़ान के दौरान देखना चाहते हैं कि क्या कुछ समय बाद वे सामान्य रूप से पेश आएंगे." इसके अलावा टेक ऑफ और लैंडिंग के समय गुरुत्वाकर्षण सामान्य से दोगुना होता है.

इंसानों को तो अंतरिक्ष के माहौल में रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. अब अगर मछलियों और पानी के अन्य जीवों को भी यह ट्रेनिंग मिल जाए तो उन्हें भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकेगा. शायद फिर स्कूल में बच्चे चांद पर पहुंचने वाली पहली मछली का नाम भी याद करें.

रिपोर्ट: ऐलेक्जैंडर फ्रॉएंड/ईशा भाटिया

संपादन: ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें