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चारों तरफ से घिरा सऊदी अरब, पाक करेगा मदद?

अब्दुल सत्तार, इस्लामाबाद
२० दिसम्बर २०१६

पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख जनरल जावेद कमर बाजवा ने सऊदी अरब को अपने पहले विदेश दौरे के लिए चुना.

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Saudi-Arabien General Qamar Javed Bajwa, Chief of Army staff (COAS)
तस्वीर: ISPR

पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख जनरल जावेद कमर बाजवा ने सऊदी अरब को अपने पहले विदेश दौरे के लिए चुना.

पाकिस्तान के अधिकारी इसे एक नियमित दौरा बता रहे हैं जबकि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस दौरे से दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग का भविष्य तय होगा. अपने दौरे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने शीर्ष सऊदी नेतृत्व से मुलाकात की. मध्य पूर्व के मौजूदा हालात को देखते हुए इस दौरे की अहमियत और बढ़ जाती है.

अल्लामा इकबाल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर डॉ अमान मेमन कहते हैं कि इस दौरे का समय बहुत अहम है. उनके शब्दों में, "पूरे क्षेत्र में ईरान मजबूत होता दिखाई दे रहा है. इराक की सरकार ईरान से नजदीकी रखती है. हिज्बोल्लाह ईरान का समर्थक है जबकि सीरिया में बशर अल असद और यमन में हूथी बागी मजबूत हो रहे हैं. इसलिए सऊदी अरब परेशान है और उसे लगता है कि उसके दुश्मन उसे घेर रहे हैं. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान ही सऊदी शाह की मदद कर सकता है."

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वह बताते हैं कि शरीफ परिवार के सऊदी शाही परिवार से नजदीकी रिश्ते हैं. इसके अलावा सऊदी अरब में काम करने वाली पाकिस्तानी देश के लिए विदेशी मुद्रा का बड़ा स्रोत है. साथ ही कई पाकिस्तानी धार्मिक संगठनों को सऊदी अरब से हमदर्दी है. प्रोफेसर मेमन कहते हैं, "अगर हूथी बागियों की तरफ से सऊदी अरब पर कोई हमला होता है तो पाकिस्तान को वहां अपनी सेना भेजनी पड़ेगी.”

पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक रिटायर्ड कर्नल ईनाम उर रहीम कहते हैं, "वैसे तो हर नया सेना प्रमुख मित्र देशों का दौरा करता है, जिनमें सऊदी अरब सबसे ऊपर है लेकिन मौजूदा हालात में इस दौरे का यह मकसद भी हो सकता है कि सऊदी अरब के सामने मौजूद खतरों का जायजा लिया जाए और सरकार को इस बारे में बताया जाए. फिर सरकार और संसद इसका फैसला करेंगे. लेकिन सऊदी अरब में सेना भेजना आसान नहीं होगा. संसद में कई सदस्य ऐसे हैं जो ईरान के करीब हैं. यहां तक कि मुख्य विपक्षी पार्टी पीपीपी भी ऐसे किसी फैसले को मंजूर नहीं करेगी.”

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पाकिस्तानी विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मतीउल्लाह खान सेना भेजने के बारे में कहते हैं, "आपसे किसने कहा कि सरकार संसद से इजाजत लेकर सेना भेजेगी. मेरे ख्याल से हमारे कुछ फौजी वहां पहले ही मौजूद हैं और अगर और सैनिकों की जरूरत पड़ी तो हम किसी और बहाने से भेज देंगे. ट्रेनिंग देने के नाम पर भी तो सैनिक भेजे जा सकते हैं. पाकिस्तान और अरब दुनिया, खास कर सऊदी अरब के साथ रिश्तों में आपको कई दिलचस्प पहलू मिलेंगे. मसलन हमें अचानक पता चल जाता है कि मुशर्रफ को पांच अरब सऊदी अरब ने दिए थे. मियां साहब के लिए भी कोई अरब शहजादा खत लेकर आ जाता है. हमें सऊदी सरकार डेढ़ अरब डॉलर तोहफे में दे देती है. इस देश में सऊदी अरब का असर और रसूख इतना है कि उनके लिए कुछ भी किया जा सकता है.”

मुसलमानों के दो सबसे पवित्र स्थलों मक्का और मदीना की सुरक्षा के उद्देश्य से पाकिस्तान में कायम एक गैर सरकारी संगठन तहफुज ए हरमैन शरीफेन काउंसिल के मीडिया समन्वयक औनेब फारूकी कहते हैं, "हालात जिस तरफ जा रहे हैं उनसे साफ है कि सऊदी अरब की सुरक्षा को गंभीर खतरा है. सीरिया और यमन में सऊदी विरोधी ताकतें कामयाब हो रही हैं. क्षेत्र में ईरान का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. अब ईरान की नजर बहरीन पर है. ऐसे में, सऊदी अरब को गंभीर खतरा है. पाकिस्तान 34 देशों के गठबंधन का हिस्सा है और यह गठबंधन जो भी फैसला करेगा, उसे पाकिस्तान को मानना होगा.”

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वहीं पाकिस्तान की नेशनल यूनिवर्सिटी फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता संस्थान से जुड़े डॉक्टर नजमुद्दीन का कहना है, "यह बात सही है कि सऊदी अरब पाकिस्तान का दोस्त है लेकिन यह पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित में नहीं होगा कि वह किसी ऐसी जंग में कूद पड़े जिससे उनकी परेशानियां और बढ़ें. हम पहले ही अपने देश में बेशुमार चुनौतियां झेल रहे हैं. यमन की जंग में कूदने का मतलब है कि पाकिस्तान में सांप्रदायिक आग को हवा देना. पाकिस्तान की संसद कभी इस तरह का कोई फैसला नहीं करेगी. मेरे ख्याल से सऊदी अरब की सुरक्षा को कोई ऐसा गंभीर खतरा भी नहीं है. ईरान की सरकार बहुत ही समझदारी से क्षेत्र में अपनी नीतियां लागू कर रही है. वह सऊदी अरब से अपने तनाव को एक हद तक ही लेकर जाएगी लेकिन जंग जैसे हालात पैदा नहीं होने देगी.”