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समाज

अफ्रीका में क्यों नाकाम रहे हैं यूएन के शांति मिशन

४ जून २०२१

अफ्रीका में विदेशी सेनाओं के दखल के बावजूद हिंसक विवाद ज्यों के त्यों बने हुए हैं. महाद्वीप में कई जगह हिंसा लोगों का जीना लगातार दूभर किए हुए हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मिशन कोई मदद नहीं कर पाए हैं. क्यों?

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तस्वीर: UN/RCA

जहां कहीं विवाद हिंसक हो जाता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लगता है कि उसमें हथियारबंद दखल की जरूरत है, वहां संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन भेजे जाते हैं. मसलन, अफ्रीका में कई ऐसे अभियान चल रहे हैं. लेकिन ज्यादातर अभियान लगातार फेल होते जा रहे हैं. डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, दक्षिणी सूडान, माली और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक जैसे देशों में संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक ऐसे राजनीतिक और सांस्कृतिक माहौल से जूझ रहे हैं जिसे वे बहुत कम समझते हैं.

कई बार संयुक्त राष्ट्र के खिलाफ काम करने से हित भी जुड़े होते हैं. मसलन, 1999 में जब डीआरसी में संयुक्त राष्ट्र का स्थिरता अभियान (MONUSCO) शुरू किया गया था तो मकसद था हथियारबंद समूहों को खत्म करना, देश के अधिपत्य के खतरे को समाप्त करना और स्थिरता बढ़ाने वाली गतिविधियों के लिए सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराना. लेकिन आज तक भी विवादास्पद दक्षिणी और उत्तरी कीवू इलाकों में कानून का राज स्थापित नहीं हो पाया है. वहां दर्जनों मराऊडिंग मिलिशिया सक्रिय हैं जो हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसी गतिविधियां करते रहते हैं.

एसओएएस लंदन यूनिवर्सिटी के फिल क्लार्क कहते हैं कि यूएन के मिशन बहुत धीमे सीख रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में क्लार्क ने कहा, "किंशासा में सरकार के साथ दोस्ताना संबंध बनाने के लिए यूएन मिशन को खासी मेहनत करनी पड़ी है. और वह सावधानीपूर्वक कॉन्लीज सेना के साथ खड़ा हो गया है जबकि यह सेना आम लोगों पर अत्याचार कर रही है.”

कांग्लो सरकार और शांति सेना के बीच इस तरह के संबंधों ने स्थानीय लोगों में मनमुटाव पैदा किया है और वे मिशन को निष्पक्ष नहीं मानते. अप्रैल में सैकड़ों युवाओं ने बेनी और गोमा शहरों में यूएन शांति मिशन के खिलाफ कई दिन तक प्रदर्शन किए. वे लोग मिशन की वापसी की मांग कर रहे थे क्योंकि ये खून-खराबा रोकने में विफल रहे.

फ्रीडिरष एबर्ट स्टिफ्टुंग में अफ्रीका विभाग के अध्यक्ष हेनरिक माईहैक कहते हैं कि अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र अभियानों के सामने रोज ऐसी दिक्कतें आ खड़ी होती हैं, जिनका उन्हें अंदाजा भी नहीं होता. माईहैक कहते हैं, "संबंधित देश की राजनीतिक इच्छा के कारण उनका हथियारबंद समूहों से सीधे बात करना भी संभव नहीं हो पाता.”

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कांगो में कोई विवाद होता है, यूएन मिशन को सबसे आखिर में पता चलता हैतस्वीर: Antonie Rolland/REUTERS

पिछले दो दशक से डीआरसी पर अध्ययन करने वाले क्लार्क मानते हैं कि पूर्वी कांगो में आमतौर पर यह माना जाता है कि यूएन शांति मिशन ने भले ही कुछ ना किया हो, पर उसका जाने से कुछ बुरा हो सकता है. वह बताते हैं, "यूएन मिशन आम नागरिकों पर रोजाना होने वाली हिंसा को थोड़ा-बहुत कम कर पाया है लेकिन नरसंहार और किसी खास समुदाय पर होने वाले हमलों का जवाब देने में वह बहुत धीमा रहता है.”

दक्षिण अफ्रीका के प्रेटोरिया में इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्यॉरिटी स्टडीज में सीनियर शोधकर्ता डेविड जोनमेनो भी ऐसा ही मानते हैं. वह कहते हैं, "संयुक्त राष्ट्र का मिशन वहां कांगो के लोगों और सरकार के साथ मिलकर देश में सुरक्षा स्थापित करने के लिए है. लेकिन समस्या यह है कि देश की ज्यादातर राजनीतिक हस्तियां विद्रोही समूहों की ही पैदाइश हैं और वे अपने पुराने समूहों से संबंध बनाकर रखते हैं ताकि उनका इस्तेमाल राजनीतिक दबाव बनाने में कर सकें.”

कांगो के कुछ बड़े राजनेताओं को विद्रोही समूहों से फायदा भी पहुंचता है. जैसे कि राजनीतिक दबदबा बनाए रखने के लिए वे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कर पाते हैं. जब भी कांगो में कोई विवाद होता है, यूएन मिशन को सबसे आखिर में पता चलता है. और उसकी प्रतिक्रिया बहुत धीमी और आमतौर पर असरहीन होती है. सबसे आधुनिक हथियारों के बावजूद यूएन सेनाएं उत्तरी कीवू राज्य में सबसे बदनाम मिलिशिया अलायड डेमोक्रैटिक फोर्सेस (एडीएफ) से उलझने में नाकाम रही हैं. और एडीएफ, इलाके में सक्रिय 122 समूहों में से एक है लेकिन वे अब तक सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं. मार्च में अमेरिका ने उन्हें इस्लामिक स्टेट से संबंध रखने वाले आतंकी समूहों की सूची में डाल दिया था.

माली में तख्तापलट का असर

संयुक्त राष्ट्र सेनाओं की मौजूदगी के बावजूद माली में तख्तापलट हो गया. उत्तरी माली में, जहां इस्लामिक संगठन सक्रिय हैं, वहां हालात लगातार गंभीर बने हुए हैं. फ्रांस ने अफ्रीका के साहेल इलाके में करीब पांच हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं. इसके अलावा यूएन का शांति मिशन सक्रिय है जिसमें जर्मन सैनिक शामिल हैं. और संयुक्त राष्ट्र का एक अलग मिशन माली के सैनिकों के ट्रेनिंग दे रहा है. फिर भी, लगभग दो करोड़ लोगों की आबादी वाले इलाके में खून-खराबा जारी है जो बुरकीना फासो और नाइजर तक फैला हुआ है. माली में हुए तख्ता पलट के बाद फ्रांस ने सेनाएं वापस बुला लेने की धमकी दी थी.

अफ्रीका में शांति अभियानों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 25 साल का अनुभव भी उसे सुधार नहीं पाया है. ऐसा लगता है कि ये अभियान स्थानीय लोगों की सुरक्षा के बजाय आर्थिक हितों के लिए वहां काम कर रहे हैं. जब तक शांति अभियानों की यह पूरी व्यवस्था नहीं बदलती, और उसका मकसद लोगों की सुरक्षा नहीं हो जाता, तब तक तो आबादी के पास मिलिशिया के रहम ओ करम पर जीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.

रिपोर्ट: आईजैक मुगाबी

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