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प्रशांत महासागर के क्षेत्र में क्यों आते हैं इतने भूकंप?

जुल्फिकार अबानी
१९ मार्च २०२२

प्रशांत महासागर के आसपास ज्वालामुखी पर्वतमालाओं को आग का घेरा भी कहा जाता है. ज्वालामुखी फटने के अलावा यहां भूकंप भी दहलाते रहते हैं और जापान, इंडोनेशिया, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बने रहते हैं.

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Japan Erdbeben
तस्वीर: Kaname Muto/Yomiuri Shimbun/AP/AP Images/picture alliance

रिंग ऑफ फायर यानी आग का ये वृत्त या घेरा, प्रशांत महासागर के बड़े हिस्से पर बना हुआ है. ये कम से कम 450 सक्रिय और निष्क्रिय ज्वालामुखियों की एक सीरीज है जो फिलीपीन सी प्लेट, पैसेफिक प्लेट, युआन डे फुका और कोको प्लेट और नाज्का प्लेट के इर्दगिर्द एक अर्धवृत्त या घोड़े की नाल जैसा आकार बनाती है. इस इलाके में बड़े पैमाने पर भूकंपीय हलचल बनी रहती है.

कितना बड़ा है पैसेफिक में आग का गोला?

90 फीसदी भूकंप इस आग के घेरे में आते हैं. इसका मतलब इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी और सोलोमोन द्वीप, फिजी और मेलानेशिया, माइक्रोनेशिया और पोलीनेशिया में बहुत सारे द्वीप जैसे दूसरे द्वीपीय देशों के अलावा उत्तरी और दक्षिण अमेरिका में लोगों की जिंदगी लगातार खतरे में घिरी रहती है. खतरे का स्तर अलग अलग होता है और वो निर्भर करता है कई स्थानीय कारकों पर, जैसे कि भूकंप के अभिकेंद्र से या समंदर या जमीन से आप कितने करीब है और आपकी आवासीय व्यवस्था कैसी है.

प्रशांत महासागर में रिंग ऑफ फायर
प्रशांत महासागर में रिंग ऑफ फायर

आग के घेरे में इतने ज्वालामुखी क्यों भड़कते हैं?

टेक्टोनिक प्लेटें, आंशिक तौर पर ठोस और आंशिक तौर पर पिघली हुई चट्टान की एक परत के ऊपर निर्बाध रूप से घूमती रहती हैं. उसे धरती का मैंटल यानी आवरण कहा जाता है. जब प्लेटें टकराती हैं या एक दूसरे से दूर जाती हैं, तो धरती भी खिसकती है. दक्षिण अमेरिका में एंडीज जैसे पहाड़ और उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वतमाला और बहुत सारे ज्वालामुखी भी टेक्टोनिक प्लेटों की रगड़ से निर्मित हुए हैं.

आग के वृत्त में कई ज्वालामुखी, सबडक्शन की प्रक्रिया से निर्मित हुए थे. और धरती के अधिकांश सबडक्शन परिक्षेत्र, इसी आग के वृत्त के भीतर स्थित हैं.

ऐसे होता है सबडक्शन
ऐसे होता है सबडक्शन

सबडक्शन यानी शेष निकासी क्या है?

सबडक्शन तब घटित होता है जब टेक्टोनिक प्लेटें हिलती हैं और एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे चली जाती है. महासागरीय तल में ये हलचल एक मिनरल टांसम्यूटेशन पैदा करती है जो मैग्मा के पिघलने और उसके ठोस बनने की प्रक्रिया यानी ज्वालामुखी निर्माण की ओर ले जाती है. बुनियादी रूप से, जब नीचे की ओर अग्रसर महासागरीय प्लेट अपेक्षाकृत गर्म आवरणीय प्लेट के नीचे ठेली जाती है, तो वो गरम होती है, वाष्पित होने वाले तत्व मिल जाते हैं और उन सबसे मैग्मा बनता है. यही मैग्मा फिर ऊपर पड़ी प्लेट से होते हुए उठता है और सतह पर फूट पड़ता है. 

करीब एक मीटर ऊंची हो गई है माउंट एवरेस्ट

आग के वृत्त में सबसे भयानक भूकंप कब और कहां आए?

आग के वृत्त में और पूरी दुनिया में, सबसे भयानक भूकंप 22 मई 1960 को चिली में आया था. रिक्टर स्केल पर उसकी तीव्रता 9.5 दर्ज की गई. 1900 के बाद दुनिया में सबसे बड़े भूकंपों की, अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण सूची में ये दर्ज है.

1964 में 9.2 परिमाण वाला ग्रेट अलास्का भूकंप भी इतना ही विनाशकारी था. 26 दिसंबर 2004 को 9.1 परिमाण वाले उत्तरी सुमात्रा के भूकंप ने हिंद महासागर में सूनामी लहरें पैदा कीं. 11 मार्च 2011 को जापान में होंशु के पूर्वी तट के पास 9 परिमाण वाला भूकंप आया था जिसकी वजह से सूनामी भड़का और उसका नतीजा फुकुशिमा में एटमी विनाश के रूप में भी सामने आया.

पृथ्वी में मौजूद टेक्टोनिक प्लेटें
पृथ्वी में मौजूद टेक्टोनिक प्लेटें

क्या इन तमाम हलचलों से हम आग के वृत्त में भूकंपों का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं?

नहीं. ज्यादातर विशेषज्ञ आपको यही बताएंगें कि भूकंप की भविष्यवाणी करना असंभव है. अगर एक के बाद दूसरा भूकंप, आग के वृत्त क्षेत्र में आ भी जाता है तो ये कहना कठिन है कि दोनों के बीच कोई आपसी संबंध है. एक भूकंप कोई जरूरी नहीं कि दूसरे भूकंप की वजह घटित हो.

कुछ भूकंपविज्ञानी सावधानीपूर्वक इस विचार का भी स्वागत करते हैं कि इंसानों के रूप में हम जो भी कुछ करते हैं- चाहे वो एटमी विस्फोटकों का परीक्षण हो या गहरे समन्दर में ड्रिलिंग, इन सबका एक संभावित असर तो पड़ता ही है. लेकिन इस बारे में वैज्ञानिक प्रमाण ना के बराबर उपलब्ध हैं.

खासतौर पर आग के वृत्त के लिहाज से ये इलाका सतत तनाव में रहता है. भूकंप आने पर ये तनाव अस्थायी रूप से शिथिल हो जाता है लेकिन जल्द ही फिर से बनने लगता है. लिहाजा इस आग के वृत्त के आसपास रहने वाले लोगों के पास डर से सजग रहने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है. वे शायद समन्दर से दूर और स्थलीय दूरी पर रहने लगेंगे, भूकंपरोधी आवासों का निर्माण करेंगे और सभी देश भूकंप की पूर्व चेतावनी प्रणालियों में सुधार करेंगे ताकि जानमाल के नुकसान का जोखिम कम किया जा सके.