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अब कैमरून में कफ सिरप से मौतें, WHO ने भारत से मांगी मदद

२१ जुलाई २०२३

अफ्रीकी देश कैमरून में खांसी की दवा के कारण छह बच्चों की मौत के बाद एक बार फिर डब्ल्यूएचओ ने भारतीय अधिकारियों से संपर्क किया है.

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कैमरून में जानलेवा बनी नेचरकोल्ड
कैमरून में जानलेवा बनी नेचरकोल्डतस्वीर: Naturcold

अफ्रीकी देश कैमरून में खांसी की दवा के कारण बच्चों की मौतों का मामला सामने आया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय अधिकारियों से मदद मांगी है ताकि पता लगाया जा सके कि दवा कहां बनी.

यूएन के स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने बीते बुधवार को चेतावनी जारी की थी कि कैमरून में हाल ही में हुई छह बच्चों की मौतों का संबंध नेचरकोल्ड (Naturcold) नाम से बेची जा रही खांसी की दवा से हो सकता है. इस कफ सिरप में डाईइथाईलीन ग्लाकोल नामक जहरीले रसायन की भारी मात्रा पायी गयी है.

कहां बनी दवा?

दवा की बोतल पर निर्माता कंपनी का नाम फ्रैकन इंटरनेशनल (इंग्लैंड) लिखा है लेकिन युनाइटेड किंग्डम के स्वास्थ्य अधिकारियों ने डब्ल्यूएचओ को बताया है कि इस नाम की कोई कंपनी उनके देश में नहीं है.

इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने भारतीय अधिकारियों से संपर्क किया है और अनुरोध किया है कि भारतीय दवा निर्माताओं से बात करें और पता लगाएं कि इस दवा को कहां बनाया जा रहा है. कई अन्य देशों से भी संपर्क किया गया है.

डब्ल्यूएचओ के एक प्रवक्ता ने बताया, "यह दवा कहां बनी है, इसके बारे में जांच जारी है. हो सकता है कि यह दवा अन्य देशों में भी बेची जा रही हो.”

कैमरून में स्वास्थ्य अधिकारियों ने अप्रैल में कहा था कि नेचरकोल्ड से छह बच्चों की मौत के मामले की जांच की जा रही है और विश्व स्वास्थ्य संगठन इस जांच में मदद कर रहा है. संगठन का कहना है कि दवा में डाईइथाईलीन ग्लाइकोल की मात्रा 0.1 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए लेकिन नेचरकोल्ड में इसकी मात्रा 28.6 फीसदी तक पायी गयी है.

जहरीली दवा का भारत से संबंध

पिछले कुछ महीनों में खांसी की दवाओं में जहरीले रसायनों के कई मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से कई मामलों में दवा भारत में बनी थी. 2022 में गांबिया, उज्बेकिस्तान और इंडोनेशिया में 300 से अधिक बच्चों की मौत खांसी की दवा के कारण होने की बात सामने आयी थी. अधिकतर मामलों में दवाएं भारतीय कंपनियों द्वारा बनायी गयी थीं.

भारत ने अपनी दवा कंपनियों पर अब सख्त नियम लागू कर दिये हैं. हाल ही में भारत सरकार ने आदेश जारी किया था कि निर्यात होने वाली खांसी की दवा को एक प्रमाणपत्र लेना होगा. यह प्रमाण पत्र कड़े परीक्षणों के बाद जारी किया जाएगा और यह जांच एक सरकारी प्रयोगशाला में की जाएगी. व्यापार मंत्रालय ने मई में यह यह निर्देश जारी किया था, जिस पर अमल पहली जून से लागू हुआ.

भारत में दवा निर्माण का 41 अरब डॉलर का उद्योग है और वह दुनिया के सबसे बड़े दवा निर्माताओं में से है. लेकिन पिछले कुछ महीनों से भारत का दवा उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादों से जूझ रहा है क्योंकि गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और अमेरिका में भी भारत में बनीं दवाओं के कारण लोगों की जान जाने की खबरें आईं.

इसी साल मार्शल आईलैंड्स और माइक्रोनीजिया में भी कुछ दवाओं में जहरीले तत्व पाये गये थे लेकिन वहां किसी की जान जाने का मामला सामने नहीं आया था. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि खतरा अभी भी बना हुआ है.

सस्ते जहरीले रसायन

ये सभी दवाएं अलग-अलग कंपनियों द्वारा बनायी गयी हैं लेकिन चार में से तीन मामलों में दवाओं का निर्माण भारत में हुआ है. इंडोनेशिया में जिस दवा से बच्चों की मौत हुई, वह वहीं की एक कंपनी ने बनायी थी.

खांसी की दवा से मौत

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इस चलन को देखते हुए भारतीय अधिकारियों के साथ काम करना जरूरी है ताकि कैमरून में पायी गयी घातक दवा के मूल का पता चल सके. यूएन एजेंसी दुनियाभर में खांसी की दवाओं की जांच कर रही है ताकि किसी भी तरह के खतरे का पता चल सके. हालांकि एजेंसी का कहना है कि भारतीय अधिकारी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार अपराधी तत्व प्रोपीलीन ग्लाइकोल की जगह डाईइथाइलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल करते हैं, जो सस्ता लेकिन जहरीला विकल्प है. इस रसायन के कारण पेट में दर्द, उलटी, दस्त और किडनी पर दुष्प्रभाव जैसी परेशानियां हो सकती हैं. कई मामलों में इनका असर मस्तिष्क पर भी पड़ता है और मौत तक हो सकती है.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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