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मोदी ने छह लोगों को नोटबंदी के बारे में पहले बताया था!

९ दिसम्बर २०१६

यह एक गोपनीय फैसला था जिसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ कुछ ही लोगों को बताया था. इन लोगों का चुनाव मोदी ने खुद किया था. इस योजना की जानकारी ऐलान से पहले छह लोगों को दी गई थी.

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Indien Mumbai Proteste gegen Abschaffung von Geldscheinen
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को जब 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया तो पूरा देश हैरान रह गया था. ऐसे कदम के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था. यह एक गोपनीय फैसला था जिसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ कुछ ही लोगों को बताया था. इन लोगों का चुनाव मोदी ने खुद किया था. नौकरशाह हंसमुख अधिया के अलावा पांच और लोग थे जिन्होंने बात गोपनीय रखने की कसम खाई थी. इन लोगों को युवा रिसर्चरों की एक टीम के साथ प्रधानमंत्री निवास में दो कमरे दे दिए गए थे. वहीं इन लोगों ने दिनभर काम किया और फिर रात को 8 बजे इस योजना का ऐलान किया गया.

इस खबर को इस कदर गोपनीय रखने के पीछे यह नीति थी कि वे लोग फायदा ना उठा लें जो काला धन कैश में रखे हुए हैं. सरकार को डर था कि अगर यह बात पहले से बता दी गई तो लोग अपने काले कैश से सोना या प्रॉपर्टी आदि खरीद लेंगे. पूरी प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल रहे एक अफसर ने बताया, "हम यह बात बाहर नहीं आने देना चाहते थे. अगर लोगों को पहले ही इसकी भनक लग जाती तो फिर इस पूरी कवायद का कोई मतलब ही ना रह जाता."

हालांकि सरकार की योजना कामयाब होती नहीं दिख रही है. जब यह ऐलान किया गया था तो अनुमान था कि 500 और 1000 रुपये के रूप में 14 लाख करोड़ रुपया बाजार में है जिसमें से करीब 5 लाख करोड़ रुपये के काले धन की बात कही गई थी. लेकिन एक महीना पूरा होने तक 12 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकों में आ चुके हैं और सरकार खुद कह चुकी है कि 14 लाख करोड़ रुपया वापस आ सकता है. यानी जितना कैश था, सारा लौट आया है और काले धन वाली बात कहीं नहीं ठहर पाई है.

इस योजना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी साख ही दांव पर लगा दी थी. 8 नवंबर को जब नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट को इसकी जानकारी दी थी, तब मौजूद तीन मंत्रियों के मुताबिक उन्होंने कहा था, "मैंने पूरी रिसर्च कर ली है. अगर यह योजना फेल होती है तो इल्जाम मेरे सिर होगा."

वित्त मंत्रालय के बड़े अधिकारी अधिया को इस पूरी योजना का जिम्मा सौंपा गया था. 58 साल के अधिया मोदी के भरोसेमंद हैं. वह गुजरात में उनके मुख्य सचिव के रूप में काम कर चुके हैं. उन्होंने ही मोदी का परिचय योग से कराया था. अधिया को सितंबर 2015 में रेवेन्यू सेक्रटरी बनाया गया था. औपचारिक तौर पर तो उनके बॉस वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं लेकिन वह सीधे नरेंद्र मोदी से बात करते हैं. दोनों गुजराती में एक दूसरे से बतियाते हैं. प्रधानमंत्री ने जब इस योजना का ऐलान किया, उसके फौरन बाद राजस्व सचिव अधिया ने एक ट्वीट किया था, "काले धन पर नियंत्रण के लिए यह सरकार का अब तक का सबसे बड़ा और साहसी कदम है."

हालांकि पूरी गोपनीयता के बावजूद मोदी और अधिया जानते थे कि नतीजों का एकदम सटीक आकलन नहीं लगाया जा सकता. वे बस तेजी से काम करना चाहते थे. ऐलान ने पूरे देश में अफरा-तफरी मचा दी है. ऐलान के एक महीना बाद भी बैंकों और एटीएम के सामने लंबी लंबी कतारें हैं. लोग अपनी जरूरत का सामान भी नहीं खरीद पा रहे हैं.

लेकिन सब कुछ गोपनीय था, ऐसा भी नहीं है. कुछ संकेत दिए गए थे. अप्रैल में ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के विश्लेषकों ने कहा था कि बड़े नोट बंद हो सकते हैं. रिजर्व बैंक ने भी मई में कहा था कि नई सीरीज के नोट लाने की तैयारियां हो रही हैं. अगस्त में उसने इस बात की पुष्टि की थी कि 2000 रुपये के नए नोट का डिजायन पास हो गया है. और जब इस बात पर चर्चा हो रही थी तब वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने अपने संदेह जाहिर किए थे. वे इस बात से भी नाखुश हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी. उन्हें लगता है कि योजना में बहुत सारी कमियां थीं. आलोचक यह भी कहते हैं कि अधिया ने एक ग्रुप के साथ काम किया और सबकी सलाह नहीं ली. वित्त मंत्रालय में काम कर चुके एक पूर्व अफसर कहते हैं कि उन लोगों असली दुनिया का कुछ पता ही नहीं है.

वीके/एके (रॉयटर्स)