बसंत आते ही वक्त बदल गया, जज्बात बदल गए
उत्तरी ध्रुव में सर्दियां खत्म होते ही दुनिया के बहुत से देशों की घड़ियां एक घंटा पीछे चली जाती हैं. इसी तरह दक्षिणी ध्रुव में घड़ियां आगे चली जाती हैं. लेकिन सभी देश ऐसा नहीं करते. देखिए, कौन-कौन से देश ऐसा करते हैं.
डे-लाइट सेविंग
मौसम बदलने पर समय को एक घंटा पीछे या आगे करने की इस प्रक्रिया को डे-लाइट सेविंग कहते हैं. यानी समय को इस तरह रखा जाए कि रोशनी का ज्यादा इस्तेमाल किया जा सके. लेकिन इस व्यवस्था को लेकर काफी विवाद भी रहे हैं.
खुश नहीं हैं लोग
घड़ियां आगे या पीछे करने का मतलब होता है कि लोगों की नींद एक घंटा कम या ज्यादा हो जाती है. 2016 में एक अध्ययन में पाया गया कि जब घड़ियां आगे की जाती हैं और लोग एक घंटा कम सोते हैं तो कार हादसों में वृद्धि हो जाती है.
40 फीसदी देशों में
आधे से कम, करीब 40 फीसदी देशों ने ही डे-लाइट सेविंग की व्यवस्था अपनाई है. हालांकि 140 देश कभी ना कभी इसे आजमा चुके हैं. लेकिन बहुत से देशों ने इस व्यवस्था को आजमाने के बाद छोड़ दिया. जैसे मेक्सिको ने 2022 में घड़ियों का समय बदलना बंद कर दिया था.
अधिकतर यूरोप
यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देश और बहुत से अन्य यूरोपीय देशों में साल में दो बार घड़ियां बदली जाती हैं. इस बार 31 मार्च से यह बदलाव लागू हो गया.
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड
दक्षिणी ध्रुव में भी डे-लाइट सेविंग की व्यवस्था को अपनाया गया है. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड साल में दो बार अपनी घड़ियां आगे-पीछे करते हैं.
मिस्र ने दोबारा अपनाया
मिस्र ने डे-लाइट सेविंग बंद कर दी थी लेकिन पिछले साल वहां यह व्यवस्था फिर से लागू कर दी गई. इसके पीछे ऊर्जा की बचत को वजह बताया गया.
दक्षिण अमेरिका
पराग्वे, चिली, क्यूबा, हैती और लेवांत में भी घड़ियां बदलने की व्यवस्था अपनाई गई है. उत्तरी अमेरिका में ज्यादातर जगहों पर यह व्यवस्था लागू है लेकिन कनाडा और अमेरिका के कुछ राज्यों में टाइम नहीं बदला जाता.
एशिया
एशिया के अधिकतर देश यह व्यवस्था अपना कर छोड़ चुके हैं. इनमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं.
कभी नहीं बदला वक्त
जिन देशों ने यह व्यवस्था कभी नहीं अपनाई उनमें अफ्रीका के अधिकतर देश, पूर्वी एशिया के अधिकतर देश, नेपाल और अफगानिस्तान आदि शामिल हैं.