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ईरान का विपक्ष सत्ता को हिलाने में विफल क्यों?

१७ फ़रवरी २०२०

ईरान में हो रहे तमाम विरोधों के बावजूद देश में अभी तक संगठित आंदोलन की कमी है. पत्रकार अहमद जैदाबादी ने डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में कहा कि मौजूदा समय में कोई भी विरोध इतना ताकतवर नहीं है कि वो शासन के लिए खतरा बन सकें.

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Iran | Protest gegen die Regierung in Teheran
तस्वीर: hamshahrionline.ir

पत्रकार अहमद जैदाबादी ने ईरान की राजधानी तेहरान में डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "इस वक्त ईरान में असंतोष लोगों को एकजुट कर रहा है." जैदाबादी ईरान में सुधारों के कट्टर समर्थक हैं. 2010 में उन्हें वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूज पब्लिशर्स ने गोल्डन पेन ऑफ फ्रीडम पुरस्कार से नवाजा था. फिलहाल उन्होंने टेलीग्राम पोर्टल पर अपना चैनल बनाया है जहां वह अपने लेखों को प्रकाशित करते हैं. चैनल का नाम है 'अदर पर्सपेक्टिव.' इसका मतलब है अलग दृष्टिकोण.

जैदाबादी ईरान की मीडिया के साथ दूसरे सोशल मीडिया पर भी संवाद करने से बचते हैं. वह इन प्लेटफॉर्मों पर उचित संवाद के लिए जगह नहीं देखते. वह कहते हैं, "अगर आप शासन के खिलाफ अभियान में हिस्सा नहीं लेते हैं तो आपको शासन के समर्थकों के रूप में वर्गीकृत कर दिया जाता है. वह सोशल मीडिया को इसका सबसे ज्यादा दोषी मानते हैं. पत्रकार जैदाबादी का मानना है कि ईरान में राजनीतिक व्यवस्था खुद ही सुधर सकती है. इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है. जैदाबादी को वर्तमान शासन में कई बार जेल जाना पड़ा है.

ईरान के पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के विवादास्पद तरीके से दोबारा चुने जाने के तुरंत बाद जून 2009 में उनको और कई प्रभावशाली पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन्हें छह साल जेल में बिताने पड़े थे. जैदाबादी जैसे कई लोगों को कथित रूप से लोगों को उकसाने और इस्लामिक गणराज्य के खिलाफ प्रचार करने का दोषी पाया गया था. सरकार के आलोचकों पर 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद इस तरह के कई आरोप लगाए गए हैं. सरकार के आलोचकों को चुप कराने के लिए इस तरीके को अपनाया गया था. यह कदम संगठित विपक्ष को सीधे तौर पर खारिज करने के लिए अपनाया गया. नवंबर 2019 में गैसोलीन पर सरकारी सब्सिडी को घटाने और जनवरी 2020 में यूक्रेन के यात्री विमान की शूटिंग के बाद विरोध प्रदर्शन की लहर पूरे ईरान में चली लेकिन इन प्रदर्शनों को क्रूरतापूर्वक दबा दिया गया.

Galerie Schauprozesse in Teheran
तस्वीर: Fars

प्रभावी होने के लिए नाकाफी विरोध

जैदाबादी के मुताबिक, "ईरान में कोई भी विरोध इतना मजबूत नहीं है जो समाज के सभी वर्गों के असंतोष की बात करने में सक्षम हो. कई समूह देश के बाहर सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं. मेरी राय में उनमें से किसी को देश के भीतर समर्थन मिलने के आसार नहीं है." जैदाबादी ईरान के निर्वासित विरोधी गुटों का जिक्र करते हुए कहते हैं, "ऐसे गुटों पर तो अमेरिका तक को भरोसा नहीं है."

समाचार चैनल ब्लूमबर्ग के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने तो अमेरिकी राजनयिकों को ईरानी विपक्षी समूहों के साथ सभी संपर्क सीमित करने के निर्देश दे दिए हैं ताकि ईरान के साथ अमेरिकी कूटनीति को खतरा ना हो. इनमें ईरान में आतंकवादी संगठन घोषित मुजाहिदीन-ए-खालिक और पीपुल्स मुजाहिदीन भी शामिल हैं. इन संगठनों ने 1980 के दशक में हुए ईरान-इराक युद्ध में इराक का समर्थन किया था. इसके बाद ईरान ने इन्हें आतंकवादी संगठन की सूची में डाल दिया था. ट्रंप के वकील रूडी जुलिआनी के साथ इस संगठन के करीबी संबंध बताए जाते हैं. मई 2018 में अमेरिका ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से हट गया. अमेरिका ईरान पर व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए 'दबाव' बना रहा है. जिसमें ईरान की क्षेत्रीय नीति और उसके मिसाइल कार्यक्रम भी शामिल हैं.

अमेरिका के समर्थन से उम्मीद नहीं

जैदाबादी ने डीडब्ल्यू को बताया, "ईरान के युवा जिन्होंने ईरान के निष्कासित राजा को लंबे समय से नहीं देखा है और उनके अतीत के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं वो भी विरोध प्रदर्शन में उनका नाम लेते हैं." जैदाबादी का कहना है कि राजा के सबसे बड़े बेटे साइरस रजा पहलवी का उपयोग ईरान का विपक्ष खुद को मजबूत करने के लिए कर सकता है. वो अमेरिका में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं. जनवरी 2020 में जर्मन अखबार डी वेल्ट को दिए साक्षात्कार में पहलवी ने कहा था कि ईरान में 'शासन बदलने की प्रबल संभावना' हैं हालांकि गहरे राजनीतिक कलह की वजह से वह अमेरिका और ईरान के आपसी रिश्ते में "एक खास झुकाव की कमी" महसूस करते हैं.

Deutschland l Feierlichkeit im Namen des iranischen Schriftstellers Eshkewari -Reza Alijani
तस्वीर: DW/M. Shodjaie

अंत तक विरोध

पत्रकार और लेखक रेजा अलीजानी के मुताबिक, "इस्लामिक गणतंत्र पतन की कगार पर नहीं है." वह कहते हैं कि सभी को वास्तविकता के आधार पर सोचने की जरूरत है. अलीजानी 1980 के दशक में कई बार जेल गए. फिलहाल वह पेरिस में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं. उनके मुताबिक, "इस्लामिक रिपब्लिक की विदेश नीति के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि वह कड़वाहट भरा अंत आने तक विरोध करेगा. जब सारे विकल्प खत्म हो जाएंगे तभी ईरान घुटने टेकेगा. परमाणु वार्ता भी 13 साल तक चली."

ईरान के भीतर बढ़ता दबाव ही उसकी विदेश नीति को भी बदल सकता है. अलीजानी कहते हैं, "ईरान में विपक्ष दबाव बना रहा है. बस इसे ठीक तरीके से हर किसी तक पहुंचाने की जरूरत है. समाज का हर तबका असंतुष्ट है लेकिन सभी की मांगे अलग हैं. हमें समाज के सभी तबकों की मांगों को एक करने के लिए काम करना होगा. यह काम शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. इस तरह के आंदोलन को सफल बनाने के लिए जनता का समर्थन जरूरी है." अलीजानी के लिए यह महज क्रांति नहीं है बल्कि लंबे समय के लिए सुधार करने के लिए प्रभावी प्रयास हैं. ऐसी क्रांति के लिए सिविल सोसाइटी के बीच संवाद की जरूरत है और एकजुटता जो सामाजिक तानेबाने से अलग पनपती है.

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