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समाज

सेमीकंडक्टर को लेकर दुनियाभर में खींचतान, भारत इसमें कहां

अविनाश द्विवेदी
२३ जुलाई २०२१

दुनियाभर में सेमीकंडक्टर की भारी कमी हो गई है. जिसके चलते स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप और गाड़ियों सभी के उत्पादन पर असर पड़ा है. पिछले महीने टाटा मोटर्स ने इनकी कमी से जगुआर लैंड रोवर का उत्पादन कम होने की बात कही थी.

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तस्वीर: Fotolia/DragonImages

वैश्विक अर्थव्यवस्था फिलहाल एक छोटे से चिप के चलते डगमगाई हुई है. सेमीकंडक्टर कहलाने वाले इन चिप की डिमांड और सप्लाई में बड़ा अंतर आ गया है, जिससे इनकी भारी कमी हो गई है. इसके चलते स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप और गाड़ियों सभी के उत्पादन पर असर पड़ा है. पिछले महीने टाटा मोटर्स ने सेमीकंडक्टर की कमी होने से जगुआर लैंड रोवर का उत्पादन कम होने की बात कही थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक टाटा की प्रतिस्पर्धी कंपनियों मर्सिडीज-बेंज, ऑडी और बीएमडब्ल्यू की गाड़ियों का उत्पादन भी इसके चलते घटा है.


जानकारों का मानना है कि यह समस्या बहुत गंभीर है और सेमीकंडक्टर की सप्लाई अब एक से डेढ़ साल बाद ही सामान्य हो सकेगी. वाहन कंपनियों को चिप सप्लाई करने वाली कंपनी बॉश (BOSCH) भी चेतावनी दे चुकी है कि इस पूरे वित्त वर्ष में सेमीकंडक्टर की कमी बनी रह सकती है. वहीं कम्यूटर चिप निर्माता सैमसंग भी इसकी कमी बनी रहने की चेतावनी दे चुकी है.


मांग बढ़ने और उत्पादन घटने की वजह

पिछले साल कोरोना के चलते ऐसे ज्यादातर प्रोडक्ट की बिक्री में जबरदस्त गिरावट आई, जिनमें सेमीकंडक्टर्स का इस्तेमाल होता है. इसे देखते हुए कंपनियों ने उन्हीं प्रोडक्ट के लिए सेमीकंडक्टर के ऑर्डर दिए, जो कोरोना की पहली लहर के दौरान भी बिक रहे थे. लेकिन पहली लहर के बाद कई दूसरे प्रोडक्ट की मांग अचानक बढ़ी. इस मांग के मुताबिक सेमीकंडक्टर की सप्लाई नहीं हो सकी और इनकी भारी कमी हो गई. जापानी सेमीकंडक्टर कंपनी 'रेनेसां' में लगी आग ने इस कमी को और बढ़ाने का काम किया.

China Chip Produktion
चीन में चिप उत्पादनतस्वीर: picture-alliance/dpa/Sun Shubao


लेकिन अब तक 'इसका सबसे ज्यादा असर कारों पर ही देखने को क्यों मिला', इस सवाल के जवाब में एक अमेरिकी सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनी में काम करने वाले मधुकर कृष्णा बताते हैं, "ऐसा नहीं है. कारें ज्यादातर जनता को प्रभावित करती हैं, तो उनकी चर्चा ज्यादा होती है. लेकिन इस समय GPU यानी ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट जैसी मशीनों की भी भारी कमी है. यह कंप्यूटर के सीपीयू जैसा ही होता है लेकिन इसका इस्तेमाल कंप्यूटर गेमर्स करते हैं. इन जीपीयू का इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग में भी किया जाता है और यह भी पिछले साल इसकी भारी मांग की वजह रहा है. इसका मतलब कि कुछ जरूरी प्रोडक्ट को छोड़ दें तो ज्यादातर सेक्टर्स में सेमीकंडक्टर की कमी दिखी है."


सेमीकंडक्टर की दौड़ में भारत का रोल


अब तक दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर निर्माता कंपनियां अमेरिका और ताइवान में हैं. चीन और दक्षिण कोरिया भी इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रहे हैं. दरअसल इन प्रोसेसर चिप और सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा आयातक चीन है लेकिन कुछ महीने पहले दुनिया में सेमीकंडक्टर की कमी हो जाने के बाद अमेरिका ने हुआवे जैसी कई चीनी कंपनियों के लिए अमेरिकी सेमीकंडक्टर की सप्लाई को रोक दिया था. जिसके बाद चीन ने इसके घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने की बात कही थी. जानकार बताते हैं कि कई साल से चीन इनका उत्पादन करना चाहता है लेकिन दुनिया की बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियां उसका साथ देने को तैयार नहीं हैं.

त्वचा के भीतर लग रही हैं चिप

मधुकर कृष्णा कहते हैं, "बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियां चीन में ऐसे बड़े रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट लगाने से डरती हैं क्योंकि उन्हें अपनी टेक्नोलॉजी के चोरी होने का डर रहता है. इसकी वजह यह है कि चीन पहले कई तकनीकी कंपनियों की नकल कर, उनकी तर्ज पर अपने प्रोडक्ट बाजार में लाता रहा है." भारत में भी सेमीकंडक्टर के उत्पादन की बहस चल रही है. मधुकर कृष्णा कहते हैं, "भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण के बहुत अच्छे अवसर हैं और सरकार कई बड़ी कंपनियों से यहां सेमीकंडक्टर उत्पादन यूनिट (इन्हें फैब्स कहते हैं) लगाने के लिए बातचीत भी कर रही है लेकिन अभी यहां सेमीकंडक्टर से जुड़ी ज्यादातर गतिविधियां रिसर्च और डेवलपमेंट तक ही सीमित हैं. "


सेमीकंडक्टर का निर्माण इतना मुश्किल क्यों


जानकार बताते हैं कि एक छोटे से सेमीकंडक्टर को बनाने की प्रक्रिया के 400-500 चरण होते हैं. ऐसे में अगर एक भी चरण गलत होता है तो करोड़ों रुपए का नुकसान हो सकता है. मधुकर कृष्णा बताते हैं, "सेमीकंडक्टर्स की दुनिया बहुत विशाल है. जिन्हें हम सेमीकंडक्टर्स की सबसे बड़ी कंपनियों के तौर पर जानते हैं, जरूरी नहीं वही सारे सेमीकंडक्टर बना रही हों. इस क्षेत्र में कई तरह की कंपनियां हैं. ज्यादातर बड़ी कंपनियां के पास अलग-अलग सेमीकंडक्टर के पेटेंट हैं. जो अपने उत्पादन फॉर्मूले के आधार पर दूसरी कंपनियों से सेमीकंडक्टर बनवाती हैं."


सेमीकंडक्टर बनाने वाले इन कारखानों को फाउंड्री कहते हैं. फिलहाल ताइवानी कंपनी TSMC, ग्लोबल फाउंड्री और सैमसंग के पास अपनी फाउंड्री हैं. लेकिन इस सेक्टर से जुड़ी तीसरी तरह की कंपनियां भी हैं, जो सेमीकंडक्टर बनाने के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी और मशीनरी का निर्माण करती हैं. भारत में ऐसी रिसर्च एंड डेवलपमेंट वाली कई कंपनियां हैं. ये कंपनियां सेमीकंडक्टर नहीं बनातीं बल्कि उससे जुड़े रिसर्च और डेवलपमेंट का काम करती हैं. मधुकर कृष्णा इस पूरी प्रक्रिया को ऐसे समझाते हैं, "अगर सेमीकंडक्टर को रोटी मान लें तो बड़ी कंपनियां इस रोटी के लिए आटा और उसे बनाने का तरीका उपलब्ध कराती हैं. फाउंड्री वाली कंपनियां उस रोटी को बनाकर तैयार करती हैं. लेकिन रिसर्च एंड डेवलपमेंट से जुड़ी कंपनियां इस रोटी बनाने के लिए जरूरी तवा उपलब्ध कराती हैं."


इस छोटे सी चिप को 'इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का दिमाग' भी कहा जाता है. जानकारों के मुताबिक फिलहाल कारों के इंफोटेनमेंट सिस्टम, पावर स्टीयरिंग, सेफ्टी फीचर्स और ब्रेक ऑपरेटर में सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है. लेकिन भविष्य में इलेक्ट्रिक व्हीकल और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी तकनीकें जब सभी के लिए सुलभ होगीं तो इनकी मांग कई गुना बढ़ जाएगी. यानी दुनिया में इसको लेकर खींचतान और भी बढ़ेगी. ऐसे में अगर अगले कुछ सालों में भारत इनका उत्पादन करने में सफल रहा तो यह उसके और दुनिया के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है.

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