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नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइन में लीक का पर्यावरण पर कितना असर?

फ्रेड श्वालर
३० सितम्बर २०२२

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन में हो रहे विस्फोट, जहरीली ग्रीनहाउस गैस मीथेन को वायुमंडल में उगल रहे हैं. जलवायु पर इसका क्या असर पड़ेगा, आइये जानते हैं.

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तस्वीर: 2022 Planet Labs PBC/handout/AFP

नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 में हुए बड़े रिसावों से बड़ी मात्रा में गैस नजदीकी बाल्टिक सागर और वायुमंडल में फैल रही है. सोमवार को इस बारे में रिपोर्टे आई थीं. तस्वीरों से अंदाजा लगता है कि समुद्र तल से 80-110 मीटर (265-360 फुट) नीचे बिछी पाइपलाइनों से हुए गैस रिसाव से समुद्र की सतह बहुत ज्यादा तप गई थी. विस्फोटों के दूरगामी असर का अंदाजा लगाना कठिन है.

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन रिसाव के लिये आखिर कौन जिम्मेदार

जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के प्रवक्ता ने डीडब्लू को बताया, "हमारी मौजूदा जानकारी के मुताबिक नॉर्ड स्ट्रीम पाइपालाइन में हुए रिसाव से बाल्टिक सागर के समुद्री पर्यावरण को गंभीर खतरा नहीं है."

जानकार कहते हैं कि उत्सर्जनों का दूरगामी जलवायु प्रभाव ठोस ही होगा.

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में जलवायु परिवर्तन संस्थान के कार्यकारी निदेशक डेव रिए ने एक बयान में कहा, "जलवायु पर इन गैस रिसावों का सबसे प्रत्यक्ष प्रभाव तो ये हुआ है कि वायुमंडल में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस, मीथेन और ज्यादा जमा होती जा रही है."

वो कहते हैं, "फ्रैकिंग यानी चट्टानों में तोड़फोड़, कोयला खनन और तेल निकासी के लिए पूरी दुनिया में हर रोज जिस बड़े पैमाने पर तथाकथित 'भगौड़ी मीथेन' निकल रही है, उसके मुकाबले इस रिसाव से निकलने वाली मीथेन तो महासागर में एक बुलबुले की तरह है."

नॉर्ड स्ट्रीम गैस रिसाव किस स्तर का है यानी कितने बड़े पैमाने पर है, ये अभी तक पता नहीं चला है. दोनों पाइपलाइनों से कोई भी ऑपरेशन में नहीं थी. लेकिन दोनों में प्राकृतिक गैस मौजूद थी.

नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइनों में रिसाव तकनीकी खराबी या तोड़फोड़

प्राकृतिक गैस रिसाव एक पर्यावरणीय नुकसान है

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों में गैस रिसाव चाहे होता या नहीं होता, ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए उसे तो जलाया ही जाना था. लिहाजा ये नहीं लगता कि सामान्य से अधिक उत्सर्जन हुआ होगा.

मीथेन प्राकृतिक गैस का प्रमुख घटक है और जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड गैस से कहीं ज्यादा घातक हैं.

हमारी धरती को तपाने में मीथेन सबसे बड़ी जिम्मेदार इसीलिए नहीं है क्योंकि हमारे वायुमंडल में वो सीओटू की अपेक्षा बहुत ही कम मात्रा में मौजूद हैं. प्रति दस लाख का 1.7वां हिस्सा उसका है यानी करीब 0.00017 प्रतिशत. उससे 200 गुना ज्यादा सीओटू हमारे आसपास तैर रही है.

शोध से पता चला है कि 20 साल के स्केल पर मीथेन उत्सर्जन, सीओटू के उत्सर्जन से 80 गुना ज्यादा खतरनाक होता है. और 30 फीसदी ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए तो वो पहले से ही जिम्मेदार है.

ग्रीनहाउस प्रभाव के जरिए मीथेन का जलवायु संकट में योगदान

मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें धरती को तपिश से बचाने के लिए कंबल का काम करती हैं. वे ऊर्जा को सोख लेती हैं और धरती से ताप के निकलने की दर को धीमा कर देती है. इस प्रक्रिया को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है.

सदियों से, ग्रीनहाउस प्रभाव जैविक तौर पर घटित होता आया है क्योंकि मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड कुदरती तौर पर पेड़-पौधों, पशुओं और दलदली इलाकों से निकलती ही रहती है.

पिछले 150 साल से जारी इंसानी गतिविधियों की वजह से ग्रीनहाउस गैसों के कृत्रिम उत्सर्जन में भारी उछाल आया है. और वैश्विक तापमान खतरनाक दर से बढ़ने लगा है.

डाटा दिखाते हैं कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जनों से मनुष्य निर्मित जलवायु संकट, जर्मनी समेत पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है.

यूरोप के संकट से इनको फायदे की उम्मीद है

यूरोप में बढ़ता ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन

दुनिया भर के नेताओं ने माना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू पाने के लिए और जलवायु संकट के गंभीर दुष्प्रभावों से बचने के लिए, मीथेन उत्सर्जनों में कटौती अत्यंत जरूरी है.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन, कॉप 26 में पिछले साल, 100 से ज्यादा राष्ट्रों ने 2030 तक मीथेन के उत्सर्जन में 30 फीसदी की कटौती करने का संकल्प किया था.

इन संकल्पों से पलटने के लिए यूरोप की सरकारों की आलोचना की जा रही है. ऊर्जा संबंधी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, पिछले साल की बैठक के दौरान हुए उत्सर्जन की तुलना में आज 6 फीसदी ज्यादा बढ़ चुका है. 

यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत के समय से जर्मनी जैसे देश, रूस से आ रही सस्ती प्राकृतिक गैस के बदले कोयला संयंत्रो को दोबारा खोलने जैसे अल्प अवधि के समाधानों को अपनाने के लिए जूझ रहे हैं.

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन बंद करने से ऊर्जा रणनीतियों में बदलाव?

नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 पाइपलाइनें, रिसाव की वजह से अनिश्चित काल के लिए बंद कर दी गई हैं. लेकिन जर्मनी समेत यूरोप के कई देश, ऊर्जा के लिए इन्हीं गैस पाइपलाइनों पर निर्भर हैं.

मोटे तौर पर जर्मनी की 10 फीसदी ऊर्जा, गैस से आती है और कुछ महीनों लायक पर्याप्त ऊर्जा देश ने जमा कर ली है, लेकिन आखिरकार वे ऊर्जा भंडार खाली भी होंगे.

ये अभी साफ नहीं है कि नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों को बंद कर देने से यूरोपीय संघ की ऊर्जा रणनीतियों पर आने वाले महीनों में क्या असर पड़ेगा.

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