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क्या है नेट जीरो एमिशन समझौता जो यूरोपीय संघ लागू कर रहा है

१३ दिसम्बर २०१९

ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में 2050 तक नेट जीरो एमिशन समझौते पर सहमति बन गई है. पोलैंड फिलहाल इस समझौते से बाहर है. इस समझौते का मतलब क्या है, इससे क्या असर पड़ेगा, आइए जानते हैं.

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Kohlekraftwerk Moorburg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Scholz

ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के नेताओं की लंबी बातचीत के बाद कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक नया समझौता हो गया है. हालांकि पोलैंड इस समझौते से बाहर है. यूरोपीय संघ ने समझौता किया है कि साल 2050 तक यूरोपीय संघ के सदस्य देश कार्बन न्यूट्रल हो जाएंगे. यूरोपीय संघ परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने कहा, "हमारे बीच जलवायु परिवर्तन को लेकर एक समझौता हुआ. यह बेहद जरूरी था. यूरोप की कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक इच्छाशक्ति दिखाना महत्वपूर्ण था." यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन के यूरोपियन ग्रीन डील के एलान के बाद हुआ ये पहला सम्मेलन था. इस डील के मुताबिक अर्थव्यवस्था की कायापलट कर 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य था.

Brüssel EU Gipfel | Ursula von der Leyen
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन.तस्वीर: picture-alliance/AP/O. Matthys

2050 के लिए तय किया गया ये लक्ष्य 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के तहत ही है. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को जीवाश्म ईंधनों की वजह से हो रहे कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा और इन ईंधनों का विकल्प भी तलाशना होगा. ये विकल्प ऐसे होने चाहिए जो प्रदूषण न फैलाएं. पोलैंड ने इस समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया. पोलैंड में 80 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन कोयले की मदद से होता है. पोलैंड ने फिलहाल खुद को इस समझौते से बाहर रखा है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा, "पोलैंड के पास जून 2020 में होने वाले सम्मेलन तक सोचने का समय है कि वे क्या करना चाहते हैं. यूरोपीय संघ में इस मुद्दे पर कोई मतभेद नहीं है. एक सदस्य देश इस मुद्दे पर और विचार करना चाहता है. इसमें कोई परेशानी नहीं है." फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि पोलैंड भी इस समझौते में शामिल हो जाएगा. चेक रिपब्लिक ने भी इस समझौते पर आपत्तियां जताईं. लेकिन जब सदस्य देशों ने एक विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर सहमति जता दी तो चेक ने आपत्ति वापस ले ली.

Brüssel EU Gipfel | Angela Merkel, Sanna Marin und Ursula von der Leyen
तस्वीर: picture-alliance/AP/O. Matthys

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले सालों में पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 से 2 डिग्री तक बढ़ जाएगा. इसको रोकने के लिए जीवाश्म ईंधनों का उपयोग कम करना ही होगा. यूरोपीय संघ की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 20 साल में यूरोपीय संघ का कार्बन उत्सर्जन कम तो हुआ है लेकिन अभी भी विश्व के कार्बन उत्सर्जन का 9.6 प्रतिशत हिस्सा यूरोपीय संघ से निकलता है.

नेट जीरो एमिशन का मतलब क्या है?

नेट जीरो एमिशन का मतलब एक ऐसी अर्थव्यवस्था तैयार करना है जिसमें जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल ना के बराबर हो, कार्बन उत्सर्जन करने वाली दूसरी चीजों का इस्तेमाल एक दम कम हो, जिन चीजों से कार्बन उत्सर्जन होता है उसे सामान्य करने के लिए कार्बन सोखने के इंतजाम भी साथ में किए जाएं. नेट जीरो एमिशन का मतलब एक ऐसी व्यवस्था तैयार करना है जिसमें कार्बन उत्सर्जन का स्तर लगभग शून्य हो. इसकी वजह आईपीसीसी द्वारा की गई एक भविष्यवाणी है. इसके मुताबिक आने वाले सालों में अगर ठोस इंतजाम नहीं किए गए तो पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ जाएगा. इस बढ़ोत्तरी को दो डिग्री से कम रखने के लिए नेट जीरो एमिशन जैसी व्यवस्था बेहद जरूरी है.

Deutschland Berlin | CO2-Uhr am Gasometer Mitte September 2019
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Carstensen

कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां नेट जीरो एमिशन को प्राप्त करना कठिन है. ऊर्जा के क्षेत्र में नेट जीरो एमिशन प्राप्त करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा. ऐसे अधिकतर स्रोत मौसम के हिसाब से काम करते हैं. ऐसे में मौसम के हिसाब से ऊर्जा पैदा कर उसे स्टोर करना होगा. इसके लिए इंटेलिजेंट ग्रिडों का निर्माण करना होगा. यह एक खर्चीला और समय लेने वाला काम है. हालांकि हीटिंग, शिपिंग और कारखानों में कार्बन एमिशन को जीरो करना एक बड़ी चुनौती है. साथ ही बीफ जैसे खाने की बढ़ती मांग भी एक बड़ी चुनौती है जिसमें बड़ी मात्रा में मीथेन गैस निकलती है.

नेट जीरो एमिशन के लिए निगेटिव एमिशन का सहारा भी लेना होगा. निगेटिव एमिशन से मतलब ऐसी चीजों से है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने का काम करते हैं. पेड़ ऐसी प्राकृतिक चीज है जो कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने का काम करते हैं. इसके लिए बड़े स्तर पर पेड़ लगाने होंगे. साथ ही खेतों में मक्के जैसी फसलें लगानी होंगी जो बड़े होने के साथ ज्यादा कार्बन सोखती हैं. बायो एनर्जी का इस्तेमाल भी बढ़ाना होगा जिसमें कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन में हो जाता है. साथ ही उद्योगों पर बंदिशें लगानी होंगी. इन बंदिशों के मुताबिक जो उद्योग जितना ज्यादा उत्सर्जन करेंगे, उन्हें उतना ही ज्यादा इंतजाम इस प्रदूषण को सोखने के लिए करना होगा. 2050 के लिए अभी से योजना बनाने की वजह ये है कि जीरो नेट एमिशन के लिए किए जाने वाले इंतजाम एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरेंगे. ऐसे में ये कदम जितनी जल्दी उठा लिए जाएं वो उतनी जल्दी ही पूरे हो सकेंगे.

आरएस/ओएसजे (एएफपी/डीपीए)

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