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गर्म इलाकों में एअरकंडीशनिंग के विकल्प क्या हैं?

२२ जुलाई २०२२

जलवायु परिवर्तन की वजह से जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, लोग ठंडक पाने के लिए एअरकंडीशनर खरीद रहे हैं. लेकिन पैसिव कूलिंग और इमारतों की बेहतर डिजाइन जैसी तकनीकों से क्या इस समस्या का हल निकल सकता है?

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हांगकांग की एक इमारत
तस्वीर: Ingo Schulz/imageBROKER/picture alliance

कुवैत में ग्रीष्मकाल बेहद कष्टकारी होता है. ऐसा लगता है मानो शहर के कोने-कोने से गर्मी निकल रही हो. हल्की सी कसरत भी करिए तो शरीर से पसीना निकल आता है. गर्मी से आप बेहाल हो जाते हैं, बशर्ते कि आप इतने भाग्यशाली हों कि हर जगह आपको एअरकंडीशंड बबल की सुविधा उपलब्ध हो. एलेक्जेंडर नासिर पहले कुवैत में रहते थे. वो कहते हैं, "कुवैत में आप तभी आराम से रह सकते हैं जब आपके पास एसी घर हो, एसी कार हो, एसी दफ्तर हो और एसी लगे मॉल हों. पर्यावरण के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक है लेकिन कुवैत में भीषण गर्मी से बचने का यही एक रास्ता है.”

2014 में नासिर बर्लिन चले गए लेकिन भीषण गर्मी और मौसम के बढ़ते तापमान से वो वहां भी नहीं बच पाए. हालांकि जर्मनी की राजधानी बर्लिन में ग्रीष्मकाल उतना कष्टदायक नहीं होता क्योंकि नासिर तो कुवैत में 39 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान झेल चुके थे. जर्मनी में लोग आमतौर पर एसी का उपयोग नहीं करते. नासिर कहते हैं, "मैं दोबारा एसी के माहौल में नहीं रहना चाहता और न ही रह सकता हूं. लेकिन साल-दर-साल यहां भी गर्मी बढ़ती जा रही है.”  

कई कुवैती एयरकंडीशनिंग बबल में ही दिन गुजारते हैं
कई कुवैती एयरकंडीशनिंग बबल में ही दिन गुजारते हैंतस्वीर: Asad/Xinhua/imago images

ठंडी जगहों की मांग बढ़ रही है

जलवायु संकट ने दुनिया भर में गर्मी के समस्या को बढ़ा दिया है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक साल 2018 तक एसी और इलेक्ट्रिक पंखों पर दुनिया भर में कुल बिजली खपत का महज दस फीसद खर्च होता था.  एसी तो जापान और अमेरिका समेत कुछ ही देशों में ज्यादा प्रचलित थे जहां 90 फीसद घरों में एसी होता था जबकि दुनिया में सबसे ज्यादा गर्म रहने वाले इलाकों में सिर्फ आठ फीसद लोगों के पास यह सुविधा थी.

लेकिन जैसे-जैसे ग्रीष्मकाल में गर्मी बढ़ रही है, ठंडी जगहों की मांग भी बढ़ रही है, खासकर उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में. ऐसा अनुमान है कि जिस तरह से चीन और भारत में इमारतों को ठंडा रखने की कोशिशें हो रही हैं, उसे देखते हुए साल 2050 तक बिजली की मांग तीन गुना तक बढ़ जाएगी. इस समस्या से निकलने के लिए वैज्ञानिक पैसिव कूलिंग की रणनीति पर काम कर रहे हैं जिसमें बहुत कम बिजली या बिना बिजली के इस्तेमाल के तापमान को नियंत्रित किया जाता है.

अमेरिका के ओरेगॉन विश्वविद्यालय में एनवॉयरन्मेंटल डिजाइन की असिस्टेंट प्रोफेसर अलेक्जेंड्रा रैंपेल कहती हैं, "पैसिव कूलिंग इसलिए उम्मीदों से भरी तकनीक है क्योंकि यह कम खर्चीली है, शहरों की गर्मी के प्रभाव को कम कर देती है, एसी पर निर्भरता कम कर देती है. बिजलीघरों पर भी दबाव कम करती है यह तकनीक.”

जर्मनी में भी बढ़ने लगी है एसी की मांग
जर्मनी में भी बढ़ने लगी है एसी की मांगतस्वीर: Torsten Sukrow/SULUPRESS.DE/picture alliance

बिना बिजली के ठंडा रखने के सामान्य उपाय

भूमध्यसागरीय जलवायु में भीषण गर्मी से बचाव के लिए कई उपाय किए जाते हैं मसलन, रात में खिड़की खोलकर सोना ताकि हवा अंदर आ सके और दिन के समय धूप से बचने के लिए खिड़कियों के ऊपर शेड लगाना. रैंपेल ने एक शोध के आधार पर लिखा है कि प्राकृतिक रूप से हवा का प्रबंध करके और शेड लगाकर घरों के भीतर तापमान को 14 डिग्री सेंटीग्रेड तक कम किया जा सकता है. साथ ही, इन उपायों के जरिए एसी की खपत 80 फीसद तक कम की जा सकती है. रैंपेल ने अपने शोध में 2021 के आंकड़ों को आधार बनाया जब गर्म हवाओं ने उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में सैकड़ों लोगों की जान ले ली थी.

रैंपेल कहती हैं कि शीतलन यानी कूलिंग की पुरानी विधियों को यदि ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं. अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर पश्चिम प्रशांत क्षेत्र अमेरिका का वह हिस्सा है जहां एसी अभी भी उतने ज्यादा प्रचलित नहीं हैं, इसलिए वहां ऐसी विधियों का प्रयोग करके एसी के इस्तेमाल को कम किया जा सकता है, भले ही कितनी भी गर्मी पड़ने लगे.

ईरान की ऐतिहासिक इमारतों में विंड कैचर
ईरान की ऐतिहासिक इमारतों में विंड कैचरतस्वीर: Jean-Pierre de Mann/robertharding/picture alliance

गर्म जलवायु में कम बिजली खपत वाली इमारतें बनाना

पैसिव कूलिंग का इस्तेमाल इमारतों को डिजाइन करते वक्त भी किया जा सकता है. उत्तरी अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों में विंड कैचर्स जैसे तरीके सदियों से गर्मी से बचने के लिए किए जा रहे हैं. खुली खिड़कियों वाले ये टॉवर इमारत के शीर्ष पर खड़े किए जाते हैं और जैसा कि इनके नाम (Wind Catchers) से ही पता चल रहा है कि ये हवा को पकड़ने या नियंत्रित करने में काम आते हैं. ये विंड कैचर्स ताजी हवा को घर के भीतर लाते हैं और गर्म हवा को बाहर करते हैं. हालांकि पारंपरिक विंड कैचर्स अब चलन से बाहर हो गए हैं लेकिन उसी तकनीक का प्रयोग करके व्यावसायिक मॉडल पर ऐसे यंत्र बनाए जा सकते हैं और इनका उपयोग बड़ी इमारतों में किया जा सकता है.

इसके अलावा कुछ दूसरी तकनीक का भी इस्तेमाल इमारतों को गर्मी से बचने में किया जा सकता है. जैसे, पतले चादर वाली शेड्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जो सूर्य की रोशनी से होने वाली गर्मी को रोक सके, चमकीली दीवारें और खिड़कियां जो कि गर्मी को कम कर सकें और इमारतों के बाहर फव्वारों का निर्माण किया जाए जो कि ठंडक पहुंचाते रहें और गर्मी कम करते रहें. दुबई स्थित एक ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात में आवासीय इमारतें पैसिव कूलिंग के जरिए अपनी बिजली खपत को सालाना बीस फीसद तक कम कर सकती हैं. यह अध्ययन आठ रणनीतियों का जिक्र करता है.

सैन फ्रांसिस्को स्थित द कैलीफोर्निया एकेडमी ऑफ साइंसेज एक उदाहरण है जिसने एअर कंडीशनिंग को अंतिम उपाय बता दिया. इस इमारत को हरी छत से ढका गया है, हल्की चादरें दिन भर खुलती और बंद होती हैं और हवा का प्रबंध ऐसा रखा गया है कि प्राकृतिक हवा हर वक्त अंदर आती रहती है, इन सबके जरिए सामने से इसमें पैसिव कूलिंग का प्रबंध किया गया है.

कोलंबिया के मेडेलिन में ग्रीन कॉरिडोर
कोलंबिया के मेडेलिन में ग्रीन कॉरिडोरतस्वीर: Joaquin Sarmiento/AFP/Getty Images

शहरों में गर्मी कम करने के लिए पेड़ और हरियाली 

इन सबके बावजूद पैसिव कूलिंग गर्मी कम करने का एकमात्र उपाय नहीं है. सिर्फ इमारत को ठंडा रखने से ही कोई फायदा नहीं है. जमीन और वातावरण को भी गर्मी से बचाने की जरूरत है. क्योंकि शहरों में जिस तरह से कंक्रीट के जंगल बन रहे हैं, वहां हल्की छाया या शेड गर्मी से बचाने में पर्याप्त नहीं होगी. रैंपेल कहती हैं, "जब सड़कें और उनके किनारे सारे दिन गर्मी झेलते हैं तो यही गर्मी रात भर वायुमंडल में विकिरण के जरिए निकलती है. इन स्थितियों में हवा के ये छिट-पुट प्रबंध फेल हो जाते हैं और एसी की सख्त जरूरत महसूस होने लगती है.”

इसका सीधा सा निदान यह है कि खूब पेड़ लगाए जाएं और उन पेड़ों की छाया ज्यादा से ज्यादा मिले. कोलंबिया के मेडेलिन में अधिकारियों ने इसी तरह सड़कों पर खूब पेड़ लगाए हैं और उन रास्तों को ‘ग्रीन कोरिडोर' नाम दिया है. इससे पैदल यात्रियों और साइकिल से चलने वालों को सीधी धूप से राहत मिलती है. इस उपाय से शहर के औसत तापमान में भी दो डिग्री सेल्सियस की कमी आई है.

जापान की राजधानी में टोकियो में भी कुछ इसी तरह की व्यवस्था की गई है. पैदल चलने वालों के रास्ते को इंसुलेटेड कोटिंग के जरिए ठंडा बनाने की कोशिश की गई है. और सिंगापुर में बड़ी इमारतों के आगे घने पेड़ लगाकर गर्मी के असर को कम करने की कोशिश की गई है. कूलिंग सिंगापुर रिसर्च प्रोजेक्ट के एक आर्किटेक्ट अयू सुकमा अडेलिया ने डीडब्ल्यू के ग्लोबल 3000 को बताया, "इमारतों के सामने करीब दस मीटर ऊपर तक हरा-भरा रखने से आप सतह के तापमान को पांच डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकते हैं.” 

दुबई से बर्लिन पहुंचे नासिर को गर्मी से राहत नहीं मिल रही है लेकिन पैसिव कूलिंग का आइडिया उन्हें भा रहा है. वो कहते हैं, "मैं ऐसे किसी भी उपाय का स्वागत करूंगा जो मुझे गर्मी से राहत दिला सके.” नासिर ये बात जब कह रहे थे, उस वक्त वो एक अंधेरे कमरे में बैठे हुए अपने ऊपर पानी की फुहारें मार रहे थे ताकि उन्हें गर्मी से राहत मिल सके.

रिपोर्टः बिएट्रिस क्रिस्टोफारो

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