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बहते पानी को रोककर ऐसे दूर की पानी की कमी

३० जुलाई २०१९

झारखंड के आरा गांव में लोगों ने बारिश के दिनों में बेकार बहने वाले पानी को रोकने का एक नया तरीका अपनाया है. इस तरीके से बचाए गए पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों में तो हो ही रहा है, इससे भूजलस्तर भी ऊपर आने लगा है.

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Indien: Jharkhand-Dörfer sparen Wasser ein
तस्वीर: IANS

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 32 किलोमीटर दूर पहाड़ की तलहटी में बसे ओरमांझी प्रखंड के आरा और केरम गांव में ग्रामीणों ने बहते पानी को चलना और चलते पानी को रेंगना सिखाकर न केवल अपने खेतों में सिंचाई के साधन उपलब्ध कर लिए, बल्कि बारिश के पानी का संचय कर भूमिगत जलस्तर में वृद्धि भी कर रहे हैं. ग्रामीणों के इसी प्रयास की सराहना प्रधानमंत्री ने रविवार 28 जुलाई को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में की थी.

आदर्श गांव आरा और केरम गांव के लोग एक साल पहले तक रांची या ओरमांझी में दैनिक मजदूरी करने जाते थे, लेकिन आज इस गांव के लोगों ने श्रमदान कर 'देसी जुगाड़' से पहाड़ से बहते झरने के पानी को एक निश्चित दिशा दी. इससे न केवल मिट्टी का कटाव और फसल की बर्बादी रुकी, बल्कि खेतों को भी पानी मिल रहा है. ग्रामीणों का ये श्रमदान, अब पूरे गांव के लिए जीवनदान से कम नहीं है.

आरा गांव के प्रधान गोपाल राम बेदिया कहते हैं, "इस गांव के लोगों का उद्देश्य बहते पानी को चलना और चलते पानी को रेंगना तथा रेंगते पानी को खेत में उतारना था. इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहाड़ से उतरने वाले डंभा झरने की बोल्डर स्ट्रक्चर से जगह-जगह पर गति धीमी की गई. बोल्डर स्ट्रक्चर के अलावा गांव की परती (खाली) भूमि पर ट्रेंच खोदकर पानी का संचय किया जाता है."

Indien: Jharkhand-Dörfer sparen Wasser ein
तस्वीर: IANS

प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में जल संरक्षण के लिए आरा केरम गांव का उदाहरण पूरे देश के सामने रखते हुए गांव वालों को बधाई दी. उन्होंने कहा, "यहां ग्रामीणों ने श्रमदान करके पहाड़ से गिरते झरने को संरक्षित कर एक मिसाल पेश की है. सघन पौधरोपण से जल संचयन और पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है. आरा केरम में पहाड़ से गिरने वाले बारिश के पानी को ग्रामीणों ने रोककर संरक्षित कर दिया."

प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां 150 ग्रामीणों ने तीन महीने तक श्रमदान किया. इस दौरान ग्रामीणों ने पहाड़ी के बीच नाली में जगह-जगह छोटे-बड़े पत्थरों से 600 कल्भर्ट बनाए. इससे बारिश के जल का ठहराव होने लगा. अब ये पानी खेतों में सिंचाई के काम आता है और इससे भूमिगत जल में वृद्धि हो रही है. मोदी ने कहा कि आरा और केरम गांव के ग्रामीणों ने जल प्रबंधन को लेकर जो हौसला दिखाया है, वो हर किसी के लिए मिसाल बन गया है. झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी गांववासियों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि झारखंड में जल संरक्षण एक जनांदोलन का रूप ले रहा है.

आरा गांव के रहने वाले बाबूलाल कहते हैं कि यहां की 50 एकड़ जमीन में 300 से ज्यादा ट्रेंच कम बेड (बड़ा गड्ढा) की व्यवस्था बनाई गई है जो बहते पानी को रोकने में कारगर हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह सारी व्यवस्था ग्रामीणों ने श्रमदान कर की है. आज भी यहां के लोगों द्वारा महीने में दो दिन श्रमदान किया जाता है, जिससे व्यवस्था को और बेहतर किया जा सके. केरम गांव के प्रधान रामेश्वर बेदिया प्रधानमंत्री द्वारा गांव की चर्चा किए जाने से काफी खुश हैं. रामेश्वर कहते हैं, "मुझे बेहद खुशी हो रही है. हमारे गांव का नाम हो रहा है. इसके पीछे हम सबकी मेहनत है. हम जल संरक्षण को लेकर आगे और तेजी से काम करेंगे. हम पानी सोखने वाला ट्रेंच बना रहे हैं. हम गांव के लोग एक बूंद पानी बर्बाद नहीं होने देंगे."

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तस्वीर: IANS

रांची के जिलाधिकारी राय महिमापत रे ने बताया कि आरा केरम की सबसे बड़ी विशेषता वहां सभी लोगों का एकजुट होकर काम करना है. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने उनमें चेतना जगाई और पहले गांव को शराब मुक्त किया और फिर सभी खेती में जुट गए. आज वहां के लोग ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस गांव से अन्य गावों को सीख लेनी चाहिए. इससे पहले प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' में झारखंड के हजारीबाग जिले के लुपुंग पंचायत में हो रहे जल संरक्षण के कार्यो की सराहना करते हुए वहां के मुखिया दिलीप कुमार रविदास का अनुभव भी सुनाया था.

रिपोर्ट: मनोज पाठक (आईएएनएस)

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