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गिद्धों को बचाने के लिए गिद्ध-दृष्टि चाहिए

विवेक कुमार१० जून २०१६

प्रकृति के सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं. गिद्धों की लगभग 99 फीसदी आबादी के मारे जाने के बाद अब इनके संरक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं.

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तस्वीर: RSPB Images

पर्यावरण के रक्षक के रूप में पहचानी जाने वाली गिद्ध प्रजाति संरक्षण के अभाव में पूरे देश से समाप्त होने की कगार पर खड़ी है. एक अनुमान के मुताबिक 40 साल पहले जहां देश में लगभग चार करोड़ गिद्ध थे तो अब चार लाख भी नहीं बचे हैं. गिद्धों की संख्या में आयी इस तेज़ गिरावट के बाद सरकार की नींद टूटी है और वह इनकी संख्या बढ़ाने के विभिन्न उपायों पर काम कर रही है.

संरक्षण के प्रयास

इस साल के पर्यावरण दिवस की थीम “गो वाइल्ड फॉर लाइफ” यानी जिंदगी के लिए जंगलों की ओर चलें, को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने गिद्धों को जीवन देने की कोशिश की. सरकार ने इस अवसर पर हरियाणा के पिंजौर में गिद्ध पुनपर्रिचय कार्यक्रम को शुरू कर पर्यावरण दिवस मनाया. पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने गिद्धों को स्वच्छ भारत अभियान के सबसे बड़ा स्वयंसेवक बताते हुए इनके संरक्षण के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा कि उनका मंत्रालय आगामी सालों में गिद्धों की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम करेगा.

इस अवसर पर पिंजौर के गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र में पले बढ़े दो गिद्धों को मुक्त विचरण के लिए आजाद कर दिया गया. इन गिद्धों की पहचान बनाये रखने के लिए इनके पैरों में छल्ला डाला गया है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि ये आज़ाद किये गए गिद्ध जंगलों में बेहतर तरीके से प्रजनन बढ़ाने में सहायक होंगे. आगे और गिद्धों को जंगलों में छोड़ा जायेगा. गिद्धों की प्रजाति को अगले दस वर्ष में दोबारा 4 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सेंटर और अन्य एनजीओ भी सरकार के इस काम में सहयोग कर रहे हैं.

डाइक्लोफेनेक है मौत की मुख्य वजह

गिद्धों की मौत का मुख्य कारण पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनेक है. पशुओं के उपचार में डाइक्लोफेनेक दवाई के इस्तेमाल पर यूं तो प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन आज भी मवेशियों के उपचार के लिए इसका उपयोग जारी है. इस दवा से उपचारित पशु के शव भक्षण से गिद्धों के शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लगती है. जो बाद में उनकी किडनी पर असर डालती है. जानकारों के अनुसार डाइक्लोफेनेक की वजह से ही देश भर से 99 फीसदी गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं.

बादशाह है गिद्ध, देखें तस्वीरें

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है, ‘गिद्धों ने जब से डाइक्लोफेनेक कीटनाशक से युक्त कंकालों को खाना शुरू किया है, उनकी संख्या कम होती जा रही है. देश में पहले 4 करोड़ गिद्ध थे और अब सिर्फ 4 लाख बचे हैं.' डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबन्ध के बाद कुछ समय कीटोप्रोफेन का प्रयोग किया जाने लगा पर वह भी गिद्धों के लिए अनुकूल नहीं पायी गयी. इसके अलावा दूधारू जानवरों में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेंक्शन दिए जाते हैं. ऑक्सीटोसिन भी गिद्धों के लिए जानलेवा साबित होता है.

पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन का खतरा

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी पक्षी होते हैं जो विशाल जीवों के शवों का भक्षण कर पर्यावरण को साथ-सुथरा रखने का कार्य करते हैं. पर्यावरण के संतुलन में इनकी बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका है. गिद्धों की पर्याप्त मौजूदगी से मृत पशुओं से फैलने वाली बीमारी का उतना खतरा नहीं रहता था क्योंकि गिद्ध बड़ी ही सफाई से चट कर जाया करते थे लेकिन अब यह शव सड़कर बीमारियों के वाहक बनने लगे हैं. इन गिद्धों के कम होने से भोजन श्रृंखला की एक कड़ी समाप्ति के कगार पर पहुंच गयी है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि मानव की गलतियों के कारण आज वन्य प्राणियों की कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं जिसके कारण प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है. मनोहर लाल खट्टर की तरह जानकार भी मानते हैं कि गिद्धों को बचाने के उचित प्रयास नहीं किए गए तो वातावरण में प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाएगा.

रिपोर्ट: विश्वरत्न श्रीवास्तव