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कानून और न्यायभारत

यूपी ‘लव जिहाद’ मामले में जज की टिप्पणियों पर उठे कई सवाल

समीरात्मज मिश्र
७ अक्टूबर २०२४

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ‘लव जिहाद’ के एक मामले में अभियुक्त को उम्र कैद की सजा सुनाते हुए धर्मांतरण को लेकर काफी तल्ख टिप्पणी की. जज की टिप्पणियों पर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं.

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भारत में कुछ मुसलमान महिलाएं सड़क से गुजरती हुई
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध धर्मांतरण के मुद्दे को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह मुद्दा देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा हैतस्वीर: Aijaz Rahi/AP/picture alliance

उत्तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले मोहम्मद आलिम पर आरोप था कि उन्होंने नाम और पहचान बदलकर एक छात्रा के साथ शादी की और फिर उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया. बरेली की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने महज छह महीने की सुनवाई के बाद इस मामले में आलिम को दोषी पाते हुए उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई. कोर्ट ने दोषी आलिम पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

यही नहीं, धर्म, नाम और पहचान छिपाकर शादी करने, संबंध बनाने और गर्भपात कराने के इस आरोप में मामले की सुनवाई कर रहे फास्ट ट्रैक कोर्ट के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज रवि कुमार दिवाकर ने आलिम के पिता साबिर को भी अपने बेटे के अपराध में सहयोग देने के आरोप में दो साल की सजा सुनाई है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने कार्यवाही के दौरान स्पष्ट किया कि ‘लव जिहाद' की आड़ में कुछ मुस्लिम पुरुष धोखे और शादी के जरिए हिन्दू महिलाओं को धर्मांतरित करने की योजना भी बना रहे हैं.

सजा सुनाते हुए कोर्ट ने कई गंभीर टिप्पणियां कीं और कहा कि मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर, लालच, शादी, नौकरी जैसे प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराया जा रहा है जिसमें विदेशी फंडिंग की भी आशंका है. एडीजे दिवाकर ने कहा कि यह देश में एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा है और यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.

अवैध धर्मांतरण के इस मामले में पीड़ित महिला ने पिछले साल मई में शिकायत दर्ज कराई थी. महिला ने कहा था कि अभियुक्त मोहम्मद आलिम अहमद के साथ उसकी मुलाकात साल 2022 में बरेली में एक कोचिंग क्लास में हुई. महिला ने आरोप लगाया कि आलिम ने अपनी पहचान छिपाते हुए खुद का नाम आनंद कुमार बताया.

पीड़ित का आरोप

महिला का आरोप है शादी के बाद उसे आलिम के असली नाम और उसके परिजनों के बारे में जानकारी मिली. महिला का आरोप था कि आलिम ने उन्हें धोखे से ये विश्वास दिलाया कि वो हिंदू हैं. शारीरिक संबंध बनाने और फर्जी शादी समारोह आयोजित करने के बाद आलिम ने पीड़ित महिला पर गर्भपात कराने का दबाव बनाया. दोनों ने 13 मार्च 2022 को एक मंदिर में शादी कर ली थी.

महिला ने आलिम पर रेप, आपराधिक धमकी, चोट पहुंचाने समेत कई अपराधों के आरोप लगाए गए थे. आलिम के पिता साबिर पर भी धमकी देने का आरोप लगाया था जिस अपराध में साबिर को भी दो साल जेल की सजा सुनाई गई है.

हालांकि वारंट जारी करने के बाद 19 सितंबर को कोर्ट में पेश हुई पीड़ित महिला ने अपना बयान बदल दिया था और कहा था कि कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने उसके माता-पिता पर दबाव डालकर एफआईआर दर्ज कराई थी. लेकिन कोर्ट ने महिला के बयान को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अभियुक्त के प्रभाव में दिया गया बयान था.

‘लव जिहाद'

कोर्ट ने आदेश में कहा है कि ‘लव जिहाद' के जरिए हिंदू लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाकर उनका अवैध धर्मांतरण करने का अपराध एक गिरोह यानी सिंडिकेट की ओर से बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इसके तहत गैर-मुस्लिमों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े समुदायों के कमजोर वर्गों, महिलाओं और बच्चों का ब्रेनवॉश किया जाता है.

एडीजे दिवाकर का कहना था कि इस सिंडिकेट की कोशिश है कि शादी, नौकरी जैसे विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर भारत में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे हालात पैदा करने की कोशिश की जा रही है.

कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अवैध धर्मांतरण के मुद्दे को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि यह मुद्दा देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा है. उन्होंने कहा कि 'लव जिहाद' की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधन शामिल होते हैं और इन मामलों में विदेशी फंडिंग के शामिल होने की भी संभावना है.

एडीजे रवि कुमार दिवाकर ने 42 पन्नों के आदेश में कहा है कि ‘लव जिहाद' में मुस्लिम पुरुष व्यवस्थित रूप से हिंदू महिलाओं को शादी के जरिए इस्लाम में धर्मांतरित करने के लिए निशाना बनाते हैं. मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को धर्मांतरित करने के लिए उनसे प्यार का नाटक करके धोखे से शादी करते हैं.

कोर्ट ने कहा कि लव जिहाद के माध्यम से अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021' पारित किया है. एडीजे ने अपने आदेश में कहा कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार-प्रसार करने का मौलिक अधिकार देता है लेकिन धर्म की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को लव जिहाद के माध्यम से अवैध धर्मांतरण में नहीं बदला जा सकता.

फैसले पर सवाल

हालांकि एडीजे रवि कुमार दिवाकर की इन टिप्पणियों पर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं. कानूनी जानकारों का कहना है कि ऐसी टिप्पणियों से अदालतों की निरपेक्षता पर सवाल उठते हैं. अदालत से ये उम्मीद की जाती है कि उसकी कोई विचारधारात्मक प्रतिबद्धता या फिर किसी तरह की पक्षधरता उसके फैसले में न दिखे लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं लगता.

सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अली कम्बर जैदी कहते हैं, "जज की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को राजनीतिक तुष्टीकरण का काम नहीं करना चाहिए. लोगों की आखिरी उम्मीद कोर्ट होती है और कोर्ट से लोगों को न्याय मिलने की ही उम्मीद नहीं होती है बल्कि न्याय मिलता हुआ दिखे, ऐसी भी उम्मीद होती है. लेकिन इस मामले में कहीं न कहीं, एडीजे महोदय की वैचारिक प्रतिबद्धता उनके फैसले पर हावी दिख रही है. ऐसे तो फिर आपके पुराने फैसले भी विवाद के घेरे में आ जाएंगे. इसलिए उनकी भी जांच होनी चाहिए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेना चाहिए.”

'लव जिहाद' कानून से खतरे में महिलाओं की आजादी

जैदी कहते हैं कि एडीजे दिवाकर ने जिस तरह से ‘लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल किया है, वो एक तरह से गैरकानूनी है. उनके मुताबिक, "यह तो एक कन्सपिरेसी थिअरी है और आम बोलचाल की भाषा में इस्तेमाल किया जाता है. यहां तक कि अक्सर अपने भाषणों में इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यूपी सरकार के मुखिया भी जब कानून बनाने लगे तो कानून का नामकरण अलग किया. उसमें लव जिहाद शब्द कहीं नहीं आया. ऐसे में इस तरह के फैसलों का लोग गलत फायदा भी उठाएंगे. हालांकि जिला अदालतों के फैसलों को नजीर तो नहीं माना जाता लेकिन फिर भी राजनीतिक दलों के लोग अपने फायदे के लिए कोर्ट का हवाला देते हुए ऐसी टिप्पणियों का जिक्र कर सकते हैं.”

ज्यादा सजा दी गई है

जैदी यह भी कहते हैं कि अभियुक्त को इस मामले में जो सजा दी गई है, वो भी अपराध के हिसाब से सही नहीं है. उम्र कैद की सजा तो इस मामले में गंभीरतम और जघन्य की स्थिति में दी जाएगी लेकिन ये जो मामला है, उसमें ऐसा कहीं नहीं दिखता.

एडीजे रवि कुमार दिवाकर इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण आदेशों के जरिए चर्चा में रहे हैं. साल 2022 में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण कराने और वजूखाना क्षेत्र को सील करने का भी उन्होंने आदेश दिया था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस आदेश को रद्द कर दिया और मामले को दूसरे जज के यहां ट्रांसफर कर दिया.

रवि कुमार दिवाकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बड़े प्रशंसक हैं और खुलकर उनकी तारीफ करते हैं. इसी साल मार्च में उन्होंने कहा था कि योगी आदित्यनाथ ‘समर्पण और त्याग के साथ सत्ता पर काबिज होने वाले धार्मिक व्यक्ति का आदर्श उदाहरण हैं.'यूपी में गैरकानूनी धर्मांतरण कानून का शिकंजा

साल 2010 में बरेली में हुए सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में उन्होंने मौलाना तौकीर रजा को अदालत में तलब करते हुए बड़ी तल्ख टिप्पणियां की थीं. उन्होंने कहा था, "भारत में दंगों का कारण यह है कि कुछ राजनीतिक दल विशेष धर्म के तुष्टीकरण में लगे हुए हैं. इससे उस धर्म के लोगों का मनोबल काफी बढ़ जाता है और उन्हें विश्वास हो जाता है कि यदि वे दंगे भी करवा देंगे, तो भी उनका कुछ नहीं होगा. क्योंकि उनके पास सत्ता का संरक्षण है.”

हालांकि बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी इन टिप्पणियों को अनुचित बताते हुए खारिज कर दिया था.

इस बीच, लव जिहाद के दोषी आलिम और उनके पिता साबिर को सजा होने के बाद बरेली के एसएसपी अनुराग आर्य ने उन तीन पुलिसकर्मियों को सम्मानित किया जिन्होंने सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई.

धर्मांतरण विरोधी कानून

यूपी सरकार ने 2021 में ‘यूपी धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2021' पारित किया था जिसमें अवैध धर्मांतरण के लिए एक से दस साल तक की सजा का प्रावधान था. इस कानून के तहत सिर्फ शादी के लिए किया गया धर्म परिवर्तन अमान्य होगा. झूठ बोलकर, धोखा देकर धर्म परिवर्तन को अपराध माना जाएगा. स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन के मामले में 2 महीने पहले मजिस्ट्रेट को बताना होगा. लेकिन इस साल जुलाई में लव जिहाद पर बने कानून में संशोधन करते हुए अपराध की सजा बढ़ाकर उम्र कैद तक कर दी गई.

इस संशोधित कानून में तथ्यों को छिपा कर या डरा-धमका कर धर्म परिवर्तन कराने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और इसके लिए उम्र कैद का प्रावधान किया गया है. इसमें कहा गया है कि धर्म परिवर्तन के लिए विदेश और किसी भी अवैध संस्था से फंड लेना भी अपराध के दायरे में माना जाएगा और इसमें भी सजा का प्रावधान बढ़ाया गया है.