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अमेरिका ने दिया कोयले को बढ़ावा

१४ नवम्बर २०१७

बॉन में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जहां पूरी दुनिया जीवाश्म ईंधन से दूर होने की बात कर रही है, अमेरिका ने ना केवल इसे बढ़ावा दिया है, बल्कि कोयले के इस्तेमाल को जलवायु बचाने का समाधान भी बताया है.

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Hambach open surface mine, Germany
तस्वीर: Elian Hadj-Hamdi

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद कई नीतियों में बदलाव आये हैं. इसी साल अमेरिका ने पेरिस समझौते से खुद को अलग करने का फैसला किया. अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी डॉनल्ड ट्रंप कई बार यह कहते नजर आये कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा 'फेक' है. अब बॉन में चल रहे जलवायु सम्मेलन के दौरान भी अमेरिका का यही रुख देखने को मिला है. सम्मेलन के दौरान अमेरिका ने एकमात्र जो कार्यक्रम किया वह जीवाश्म और परमाणु ईंधन को बढ़ावा देने का संदेश देता है. सम्मेलन में आये लोग इससे सकते में हैं.

व्हाइट हाउस के स्पेशल असिस्टेंट डेविड बार्क्स ने कार्यक्रम की शुरुआत में दिये भाषण में कहा, "इस पैनल को तभी विवादास्पद कहा जा सकता है अगर हम अपने सर रेत में दफ्न कर लें और दुनिया में ऊर्जा की सच्चाई को नजरअंदाज करने का फैसला कर लें." बार्क्स ने कहा कि अक्षय ऊर्जा के जरिये विश्व से गरीबी को नहीं हटाया जा सकता, "यह सोच बचकाना है कि केवल सौर और पवन ऊर्जा के इस्तेमाल से दुनिया में लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा और गरीब देशों की सहायता की जा सकेगी."

वहीं कैलिफोर्निया के गवर्नर जेरी ब्राउन ने अपने देश की इस कोशिश को हास्यास्पद बताया है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सरकार सैटरडे नाइट लाइव जैसा कोई कॉमेडी प्रोग्राम चला रही है. वह कोयले की कंपनी को लेकर आयी है ताकि यूरोप को सिखा सके कि पर्यावरण को कैसे साफ रखना है."

पीबॉडी एनर्जी जैसी बड़ी ऊर्जा कंपनियों ने यहां 'ग्रीन' कोयले पर चर्चा की. पीबॉडी की हॉली क्रुटका ने इस बात पर जोर दिया कि अगर चिंता कार्बन के उत्सर्जन की है, तो उसका हल कंपनी के पास है, "आज हमारे पास ऐसी तकनीक मौजूद है, जो कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधन से होने वाले एमिशन को प्रभावशाली रूप से कम कर सकती है." कंपनियों का दावा है कि मुसीबत की जड़ कोयले का इस्तेमाल नहीं, बल्कि इस्तेमाल करने का तरीका है और अगर इसे बदला जा सके, तो जलवायु परिवर्तन की चिंता से मुक्त हुआ जा सकता है.

पर्यावरण एक्टिविस्ट इसे जीवाश्म ईंधन की लॉबी के लिए ट्रंप सरकार के समर्थन के रूप में देख रहे हैं. सम्मेलन के अंदर और बाहर मौजूद एक्टिविस्ट एकमत हैं कि जीवाश्म ईंधन की भविष्य में कोई जगह नहीं है और इस तरह की लॉबी का असर सम्मेलन के लक्ष्यों पर नहीं पड़ना चाहिए. कुछ लोगों को मजाक में यह कहते भी सुना गया कि अगर अमेरिका जलवायु परिवर्तन को 'फेक' मानता है, तो वह कोयले के जरिये जलवायु को बचाने की पैरवी क्यों कर रहा है. इससे पहले सम्मेलन में अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बनी रही.

आइरीन बानोस रुइज/आईबी