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ब्रिटेन ने पलटी नीति, फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटाया

२३ सितम्बर २०२२

ब्रिटेन ने विवादित गैस फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है. ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दक्षिणपंथी पार्टी ने अपना चुनावी वादा तोड़ते हुए यह प्रतिबंध हटाया है, जिस पर खासा विवाद हो रहा है.

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USA | Fracking in Colorado
तस्वीर: Brennan Linsley/AP Photo/picture alliance

लिबरल पार्टी की नेता और ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने पार्टी द्वारा 2019 में किया वादा तोड़ते हुए गैस फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और ब्रिटेन के ऊर्जा क्षेत्र में उथल-पुथल मची हुई है. रूस यूरोप को गैस सप्लाई करता रहा है.

ब्रिटेन ने 2019 में फ्रैकिंगपर प्रतिबंध लगाया था क्योंकि इससे भूकंप आने का खतरा होता है. जब बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री थे तो भूकंप के कई हल्के झटके आने के बाद फ्रैकिंग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया था. लेकिन रूस ने जब यूरोप की गैस सप्लाई काट दी तो देश में ऊर्जा कीमतें बहुत बढ़ गई हैं. इस स्थिति से निपटने के लिए हाल ही में सत्ता संभालने वाली नई सरकार ने तीन साल पुराना प्रतिबंध हटा लिया.

उद्योग और ऊर्जा मंत्री जेकब रीस-मॉग ने एक बयान जारी कर कहा, "पुतिन के यूक्रेन पर अवैध आक्रमण के कारण और ऊर्जा को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के चलते अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना हमारी प्राथमिकता है.”

रीस-मॉग ने कहा कि ब्रिटेन को 2040 तक ऊर्जा निर्यातक के रूप में स्थापित करना है और उसके लिए "सभी विकल्पों को आजमाना होगा जिनमें सौर और वायु से लेकर तेल और गैस उत्पादन तक शामिल हैं.” उन्होंने कहा, "लिहाजा गैस के संभावित घरेलू स्रोतों का दोहन करने के लिए हमने प्रतिबंध पर लगी रोक हटाई है.”

ऊर्जा मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि तेल और ऊर्जा दोहन के लिए अगले महीने सौ नए लाइसेंस दिए जाएंगे लेकिन ऐसा स्थानीय समुदायों के समर्थन से ही किया जाएगा.

ऐलान पर विवाद

फ्रैकिंग दुनियाभर में विवादित गतिविधि रही है और ब्रिटेन के इस फैसले पर ना सिर्फ स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणविदोंमें भी गुस्सा है. देश के संसद में भी इस ऐलान पर काफी बवाल हुआ. इसकी एक वजह यह है कि कंजर्वेटिव पार्टी ने 2019 के अपने चुनाव घोषणा पत्र में किया वादा तोड़ दिया है.

विपक्ष के सांसदों के अलावा उत्तरी इंग्लैंड के उन सत्तापक्ष के सांसदों ने भी सरकार की आलोचना की है, जहां 2011 में भूकंप के झटके आए थे. मुख्य विपक्षी दल लेबर पार्टी ने नई नीति को "भूकंपों के लिए चार्टर” करार दिया.

पर्यावरण मामलों के पार्टी प्रवक्ता एड मिलिबैंड ने रीस-मॉग से फैसले के आधार के लिए सबूत मांगे. उन्होंने कहा, "2019 के चुनाव घोषणापत्र पर उन्होंने (रीस-मॉग) और पूरी पार्टी ने खड़े होकर कहा था कि हम फ्रैकिंग का समर्थन नहीं करेंगे जब तक कि साइंस यह साबित ना कर दे कि इससे सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है.”

मिलिबैंड ने कहा, "वे बैन तो हटा रहे हैं लेकिन उनके पास कोई सबूत नहीं है.”

लिबरल डेमोक्रैट की पर्यावरण प्रवक्ता वेरा हॉबहाउस ने कहा कि कंजर्वेटिव पार्टी जलवायु परिवर्तन को लेकर कोई कदम उठाने को तैयार नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर लोगों को प्रदूषण और भूकंप झेलने पड़े यह फैसला माफी लायक नहीं होगा.”

रीस-मॉग ने हालांकि भरोसा दिलाया कि फ्रैकिंग सुरक्षित है और जलवायु के लिए विदेश स्रोतों के मुकाबले ज्यादा अच्छी है. उन्होंने कहा, "ईंधन के लिए अपने स्रोतों का प्रयोग जलवायु के लिए ज्यादा अच्छा है ना कि विदेशों में दोहन करवाककर उसे यहां आयात करना, जिसकी आर्थिक और कार्बन स्तर के लिहाज कीमत बहुत ज्यादा है.”

क्या होती है फ्रैकिंग?

इंडिपेंडेंट पेट्रोलियम एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के मुताबिक हाइड्रॉलिक फ्रैक्चरिंग या फ्रैकिंग उस विस्तृत प्रक्रिया का एक "छोटा सा” हिस्सा है जिसके जरिए तेल और गैस का दोहन किया जाता है. आईपीएए लिखता है, "फ्रैकिंग एक साबित हो चुकी ड्रिलिंग तकनीक है जो जमीन के नीचे से तेल, प्राकृतिक गैस या पानी निकालने के लिए इस्तेमाल की जाती है.”

कैसे काम करती है फ्रैकिंग
कैसे काम करती है फ्रैकिंग

सामान्य भाषा में इसे यूं समझा जा सकता है कि फ्रैकिंग में एक द्रव और अन्य पदार्थों को उच्च दबाव पर जमीन के अंदर डाला जाता है ताकि चट्टानों की परत में दरारें आ जाएं. फिर तेल या गैस को कुएं में लाया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया तीन से पांच दिन तक चलती है. जब फ्रैक्चरिंग खत्म हो जाती है तो तेल के कुएं को दोहन के लिए तैयार माना जाता है.

क्या फ्रैकिंग खतरनाक है?

कई वैज्ञानिक और पर्यावरणविद फ्रैकिंग को पर्यावरण और मानवजीवन के लिए खतरनाक मानते हैं. यहां तक कि इसे लोगों की सेहत पर सीधे असर के लिए भी आरोपित किया जाता है. हालांकि 2019 में ऑक्सफर्ड रिसर्च इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में छपे एक अध्ययन में कहा गया कि फ्रैकिंग के सेहत पर सीधे असर के समुचित प्रमाण उपलब्ध हैं.

उस अध्ययन की सह-लेखिका आईरीना गोर्स्की ने लिखा, "हमारे पास इस बात के समुचित परिणाम हैं कि सेहत पर होने वाले असर जनता की सेहत का हित चाहने वाले नीति-निर्माताओं के लिए चिंता का विषय होने चाहिए.” इन प्रभावों में बच्चों का समय से पहले जन्म, गर्भपात के खतरे, माइग्रेन, थकान और त्वचा रोग आदि शामिल थे.

पर्यावरणविद दावे करते रहे हैं कि फ्रैकिंग के कारण भूजल दूषित होता है और वायु प्रदूषण भी बढ़ता है. ‘जियोलॉजी एंड ह्यूमन हेल्थ' पत्रिका में छपे लेख के मुताबिक नेशनल ओश्यानिक एंड एटमॉसफरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने अमेरिका के कुओँ के अध्ययन के बाद कहा कि इन कुओं से निकाली जा रही गैसे के साथ निकलने वाली मीथेन में से कम से कम चार फीसदी वातावरण में लीक हो रही थी. इन वैज्ञानिकों ने कहा कि सिर्फ एक काउंटी में हो रही फ्रैकिंग के कारण सालाना उतना प्रदूषण हो रहा था जितना 10 से 30 लाख कारें करती हैं.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

 

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