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ऊबर पर खुलासे, भारत समेत कई देशों में कारोबार के राज खुले

११ जुलाई २०२२

खोजी पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने लीक हुए दस्तावेजों के विश्लेषण के बाद दावा किया है कि ऐप के जरिए टैक्सी चलाने वाली अमेरिकी टेक कंपनी ऊबर ने व्यवस्था का फायदा उठाया और इसमें बड़े-बड़े नेताओं ने उसकी मदद की.

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ऊबर के ईमेल हुए लीक
ऊबर के ईमेल हुए लीक

द गार्डियन को मिले एक लाख 24 हजार से ज्यादा दस्तावेजों का इंटरनेशनल कंसॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स ने विशलेषण किया जिसमें भारत का अखबार द इंडियन एक्स्प्रेस भी शामिल था. इस विशलेषण के बाद दुनियाभर के 30 मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट प्रकाशित की हैं जिनमें बीबीसी और वॉशिंगटन पोस्ट भी शामिल हैं. 

भारत में इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट कहती है कि इन लीक ईमेल रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि यह कंपनी कैसे 44 अरब डॉलर की कंपनी बन गई और आज 72 देशों में कारोबार कर रही है. रिपोर्ट दावा करती है कि ऊबर ने जासूसी तकनीक के जरिए नियमों का उल्लंघन किया और पैरवी करने वाले नेटवर्क के जरिए कानूनों की खामियों का फायदा उठाया.

ये ईमेल 2013 से 2017 के बीच के हैं जब ट्रैविस कैलनिक कंपनी के सर्वेसर्वा थे. 2013 में ही ऊबर ने भारत में अपनी सेवाएं शुरू की थीं और जल्द ही भारत उसके लिए सबसे तेजी से बढ़ता बाजार बन गया. आज भारत में लगभग छह लाख लोग ऊबर के लए कैब चला रहे हैं, जो सौ से ज्यादा शहरों में सक्रिय हैं.

इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि भारत के बारे में कंपनी की रणनीति अगस्त 2014 में तत्कालीन एशिया प्रमुख ऐलन पेन द्वारा भारतीय टीम को भेजी गई एक ईमेल जाहिर हो जाती है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पेन ने लिखा था, “अपने पहले साल में हमने भारत में खूब हलचल मचा दी है. भारत के लगभग हर शहर में हमें स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों तरह के मुद्दों का सामना करना पड़ेगा. ऊबर के कारोबार में यह आम बात है.”

ऊबर को भारत में लगभग सभी नियामकों के साथ खासा संघर्ष करना पड़ा था. रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2014 में ऊबर ने अपने कर्मचारियों के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें भारत को एक मिसाल के तौर पर पेश करते हुए समझाया गया था कि सर्विस टैक्स के मामलों को कैसे सुलझाया जाए. उस रिपोर्ट के एक पन्ने पर कहा गया, “अधिकारी चाहते हैं कि हम अपने खाते उनके लिए खोल दें नहीं तो हम फ्रॉड कर रहे हैं.”

इसके कुछ ही हफ्ते बाद दिसंबर 2014 में भारत के लिए सबसे बड़ा संकट आया था जब दिल्ली में एक ऊबर ड्राइवर ने एक 25 वर्षीय युवती का कार में बलात्कार किया. कंपनी के अंदरूनी ईमेल दिखाते हैं कि इस घटना के बाद प्रतिबंधों को लेकर कंपनी के भीतर चिंता काफी बढ़ गई थी. 

उस घटना के कुछ ही दिन बाद 11 दिसंबर 2014 को तत्कालनी कम्यूनिकेशन हेड नायरी ऊर्दाजियां ने अपने सहकर्मियों को एक ईमेल में लिखा, “याद रखो कि सब कुछ आपके नियंत्रण में नहीं है और कई बार हमें दिक्कतें होंगी क्योंकि, हैं तो हम अवैध ही.” इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है कि उस घटना के बाद ऊबर ने सुरक्षा के लिए जो उपाय अपनाने का जोर-शोर से प्रचार किया था उनमें से बहुत से अब तक भी लागू नहीं हुए हैं.

महत्वपूर्ण लोगों का साथ

बीबीसी और अन्य कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ऊबर को कई देशों के अति-महत्वपूर्ण लोगों से मदद मिली जिनमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और यूरोपीय संघ के पूर्व आयुक्त नीली क्रोएस का नाम भी शामिल है.

फ्रांसीसी टैक्सी ड्राइवरों ने ऊबर के खिलाफ देश में कई बार प्रदर्शन किए थे जिनमें अक्सर हिंसा हुई. बीबीसी लिखता है कि इमानुएल माक्रों जो आज देश के राष्ट्रपति हैं, उनकी ऊबर के तत्कालीन विवादित प्रमुख ट्रैविस कैलनियाक से गहरी छनती थी और माक्रों ने कैलनियाक से कहा था कि वह उनके पक्ष में कानूनों में बदलाव करेंगे.

'पहली बार हुआ ऐसा': भारत की ऐप आधारित कंपनी ने लोगों पर किया मुकदमा

बीबीसी ने लिखा है, “ऊबर की निर्दयी कारोबारी नीतियां तो जगजाहिर हैं लेकिन पहली बार पता चला है कि अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कंपनी किस हद तक गई. वे दिखाते हैं कि कैसे ईयू की पूर्व डिजिटल कमिश्नर नीली क्रोएस अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ऊबर के साथ बातचीत कर रही थीं और उसकी पैरवी की, जो संभवतया यूरोपीय संघ के मूल्यों के खिलाफ है.”

ऊबर का जवाब

इस खोजी रिपोर्ट के बाद मीडिया संस्थानों ने ऊबर के विभिन्न अधिकारियों से जवाब तलब किए थे. भारत में कंपनी के प्रमुख प्रभजीत सिंह के प्रवक्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जब करीब एक दशक पहले कंपनी ने भारत में कारोबार शुरू किया था तब देश में राइड शेयरिंग से संबंधित नियम नहीं थे क्योंकि परिवहन कानूनों ने ऐप-आधारित राइड शेयरिंग को विकल्प के रूप में शामिल ही नहीं किया था. हमने नियम-कानूनों को स्थापित कर लिया है जो तकनीकी बदलावों और शहरों व हमारी सवारियों व ड्राइवरों, दोनों उपभोक्ताओं के हितों में है. नई श्रेणी बना देने वाली एक कंपनी के रूप में हम नियमों में प्रगतिशील बदलावों का समर्थन करते हैं जो हमारी सवारियों, ड्राइवरों व शहरों के हक में हैं.”

इंटरनेशनल कंसॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिजम की वेबसाइट ने ऊबर का पूरा बयान प्रकाशित किया है. इस बयान के मुताबिक ऊबर की प्रवक्ता जिल हेजलबेकर ने माना है कि पांच साल पहले कई गलतियां हुईं और कई गलत कदम उठाए गए. हेजलबेकर ने कहा कि विभिन्न सरकारों द्वारा जांच और मुकदमों का सामना करने के बाद ऊबर पूरी तरह बदल गई है और अब वैसे काम नहीं करती जैसे 2017 में करती थी.

रिपोर्टः विवेक कुमार

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