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विचाराधीन कैदियों के अधिकारों का हनन

चारु कार्तिकेय
२१ जुलाई २०२२

भीमा कोरेगांव मामले में आरोपित गौतम नवलखा ने अदालत को बताया है कि उन्हें जेल से किसी को फोन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. पुलिस का कहना है कि यूएपीए के तहत आरोपित विचाराधीन कैदियों को टेलीफोन सेवाएं नहीं दी जाती हैं.

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Indien Justiz l Gefängnis in Neu Delhi
तस्वीर: Anindito Mukherjee/dpa/picture alliance

भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए सभी लोगों के खिलाफ लगाए गए आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं लेकिन जेल में उन्हें उनके अधिकार ना दिए जाने की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं. 2020 से गिरफ्तार गौतम नवलखा लंबे समय से अदालतों से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें जेल से फोन करने की अनुमति दी जाए, लेकिन उनकी अर्जी अभी तक मंजूर नहीं की गई है.

बल्कि अब जेल प्रशासन ने दो टूक कह दिया है कि यूएपीए के तहत आरोपों का सामना कर रहे कैदियों को फोन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है. यह बात बुधवार, 20 जुलाई को महाराष्ट्र के जेल प्रशासन की तरफ से सरकारी वकील संगीता शिंदे ने बॉम्बे हाई कोर्ट से कही. शिंदे ने हाई कोर्ट को बताया कि ऐसे कैदियों को अपने परिवार के सदस्यों से मिलने और उन्हें चिट्ठियां लिखने की अनुमति तो है लेकिन वो फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकते.

ना मिल सकते हैं, ना फोन पर बात कर सकते हैं

इससे पहले नवलखा ने एनआईए की एक विशेष अदालत में फोन के इस्तेमाल की अनुमति के लिए अर्जी दी थी, लेकिन अदालत ने उसे नामंजूर कर दिया था. अब उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में उस आदेश के खिलाफ अपील की है. नवलखा को 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वो तब से महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में तलोजा केंद्रीय कारागार में कैद हैं. वो 2018 से 2020 तक अपने घर में नजरबंद थे.

फादर स्टैन स्वामी
फादर स्टैन स्वामी की गिरफ्तारी का हैदराबाद में विरोध करते लोगतस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images

नवलखा के वकील युग मोहित चौधरी ने इसे उनके मुवक्किल के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए अदालत को जानकारी दी कि नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन दिल्ली में रहती हैं और वरिष्ठ नागरिक होने के कारण बार बार तलोजा जा भी नहीं सकतीं. हुसैन नवंबर 2021 में नवलखा से मिलने दिल्ली से तलोजा गई भी थीं, लेकिन इतनी लंबी यात्रा कर दो दिनों तक जेल के बाहर इंतजार करने के बाद भी उन्हें मिलने नहीं दिया गया.

उन्हें बताया गया कि जेल के नियम कैदियों को सिर्फ पति/पत्नी या सगे संबंधियों से मिलने की इजाजत देते हैं. इसके बाद हुसैन ने मिलने की अनुमति दिए जाने के लिए एनआईए की विशेष अदालत के दरवाजे खटखटाए जिसने उन्हें मिलने की अनुमति दे दी.

इससे पहले भी नवलखा उन्हें चश्मा ना दिए जाने, किताबें ना दिए जाने, यहां तक की थोड़ी देर के लिए भी खुली हवा में सांस तक लेने की अनुमति ना दिए जाने के खिलाफ अदालत से शिकायत कर चुके हैं. ऐसी ही शिकायतें भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार दूसरे लोग भी कर चुके हैं.

ना जमानत मिलेगी, ना इलाज

पानी पीने का सिप्पर ना दिए जाने की शिकायत करने वाले 74 वर्षीय फादर स्टैन स्वामी का हिरासत में ही जुलाई 2021 में देहांत हो गया. एक और आरोपी आनंद तेलतुंबडे 70 साल के हैं और उनका भी स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता. उन्होंने सोने के लिए एक चारपाई की मांग की थी जो अभी तक मंजूर नहीं हुई है.

सुधा भारद्वाज
जमानत पर रिहा हुईं सुधा भारद्वाजतस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images

81 साल के वरवरा राव कई बीमारियों से पीड़ित हैं लेकिन उन्हें पहले इलाज और फिर स्वास्थ्य कारणों पर जमानत के लिए लंबी कानूनी कड़ाई लड़नी पड़ी. यह सभी देश की जेलों में कैदियों के मानवाधिकार के हनन के उदाहरण हैं. विचाराधीन कैदियों के मामले में यह त्रासदी और बड़ी दिखाई देती हैं क्योंकि उनका अपराध अभी साबित भी नहीं हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह ही इस बात पर चिंता जताई कि देश की जेलों में कुल कैदियों में से कम से कम दो तिहाई विचाराधीन कैदी हैं, जिनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं थी. अदालत ने यह भी कहा कि भारत की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 और 41ए में गिरफ्तारी की पूरी प्रक्रिया बताई गई है और सभी अदालतों को ऐसे अफसरों के खिलाफ कड़ी करवाई करनी चाहिए जो इन धाराओं का अनुपालन किए बिना गिरफ्तारी करते हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में भारत की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे, जिनमें 3,71,848 यानी करीब 76 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे.

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