तुर्की और चीन की बढ़ती दोस्ती का दुनिया पर क्या असर होगा
३ जुलाई २०१९तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई है. ये मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के अमेरिका के साथ संबंध बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं. दोनों देश एक-दूसरे के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने की कोशिश में हैं.
तुर्की के अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ कई मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आए हैं. इनकी वजह सीरिया पर अलग राय, रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने की योजना और 2016 में तुर्की में हुई तख्तापलट की नाकाम कोशिश हैं.
इस मुलाकात के मायने निकाले जा रहे हैं कि नाटो का सदस्य देश तुर्की पूर्व और पश्चिम के साथ अपने संबंधों में सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहा है. एर्दोवान की योजना है कि तुर्की शंघाई सहयोग संगठन का भी सदस्य बने. फिलहाल शंघाई सहयोग संगठन में चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ साथ भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं.
हाल में चीन और अमेरिका के बीच चल रहा कारोबारी युद्ध दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच की लड़ाई है. ये कारोबारी युद्ध भविष्य में दुनिया पर अपना दबदबा कायम करने की कोशिश भी है.
एर्दोवान की 2012 के बाद से जिनपिंग के साथ ये आठवीं मुलाकात है. जानकारों के मुताबिक यह मुलाकात खासकर अर्थव्यवस्था और संबंधों में विविधता लाने के लिए हैं. इसका पूर्वी देशों के साथ खेमेबंदी जैसा कोई अर्थ नहीं है.
इस्तांबुल की कॉक यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक एल्टे एटली कहते हैं, " तुर्की के चीन के साथ संबंध तुर्की के अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों की जगह नहीं ले सकते. तुर्की के पश्चिमी देशों के साथ बहुत गहरे और फायदेमंद रिश्ते हैं.” एटली तुर्की और एशिया के संबंधों के विशेषज्ञ हैं. वो कहते हैं कि अंकारा की विदेश नीति अब तुर्की को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की है. इसलिए तुर्की अब सारे देशों से संबंध रखना चाहता है. अब तुर्की शीत युद्ध के समय पश्चिमी देशों के साथ रहने जैसा एकपक्षीय कदम नहीं उठाएगा.
इस्तांबुल सेहिर विश्विद्यालय में अध्यापक कादिर तेमीज कहते हैं कि चीन अब तुर्की के लिए जरूरी देश बनता जा रहा है. इसकी वजह दोनों देशों के सामूहिक आर्थिक हित हैं. सबसे बड़ा अंतर राजनीतिक और भू राजनीतिक है. अगर दोनों देशों के बीच आर्थिक निर्भरता ज्यादा बढ़ती है तो ये राजनीतिक और भू राजनीतिक अंतर जल्दी ही खुलकर सामने आ सकते हैं.
दोनों देशों का रुख सीरियाई गृह युद्ध के बारे में अलग अलग है. तुर्की सीरिया में विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है जबकि चीन वहां राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार का साथ दे रहा है. चीन वहां राष्ट्रपति असद के समर्थन में रूस के सैन्य हस्तक्षेप का भी समर्थक है.
बेल्ट और रोड
तुर्की के सांख्यिकी मंत्रालय के मुताबिक चीन और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार 23 अरब डॉलर का हो गया है. चीन अब तुर्की का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है. लेकिन तुर्की के लिए परेशानी ये है कि इसमें 18 अरब डॉलर का हिस्सा चीनी आयात का है. तुर्की अब अपना निर्यात बढ़ाने पर जोर दे रहा है. साथ ही वह चीनी व्यापारियों को तुर्की में आकर निवेश करने का आमंत्रण भी दे रहा है.
चीन के लिए तुर्की की भौगोलिक स्थिति बेहद मुफीद है. मध्य पूर्व , दक्षिण काकेशस, पूर्वी भूमध्य और यूरोप के चौराहे पर तुर्की का होना इसे चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड योजना के लिए जरूरी बनाता है. चीन तुर्की से इसका विस्तार कर अमेरिका के साथ शक्ति संतुलन बनाना चाहता है.
तेमिज कहते हैं कि तुर्की की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वन बेल्ट वन रोड में यह चीन को यूरोप से जोड़ने की संभावना रखता है. ऐसे में चीन को तुर्की से बड़ी आकांक्षाएं हैं.
अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों ने चेतावनी दी है कि चीन द्वारा दुनियाभर में करवाए जा रहे प्रायोजित निर्माण कार्यों से ये देश के कर्ज के जाल में फंस जाएंगे और ये सब चीन पर निर्भर हो जाएंगे. इससे चीन को रणनीतिक बढ़त मिलेगी.
तुर्की वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर सकारात्मक है. तुर्की इसे अपने मिडिल कोरिडोर की तरह मानता है जिसमें वो प्राचीन सिल्क रोड के साथ काकेशस से होते हुए मध्य एशिया से चीन तक रेल और सड़कों का जाल बनाया जाना है.
उइगुर लोगों के ऊपर अभी भी विवाद
एर्दोवान ने 2009 में चीन के ऊपर उइगुर समुदाय के लोगों की सामूहिक हत्या और नरसंहार करने जैसे आरोप लगाए थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने उइगुर समुदाय के ऊपर चुप्पी साधी हुई है. चीन में करीब 10 लाख लोगों को गिरफ्तार किया है, इनमें अधिकतर उइगुर समुदाय के मुस्लिम लोग हैं. उइगुर तुर्क मूल के मुस्लिम हैं जो सदियों से चीन के शिनचियांग प्रांत में रह रहे हैं.
चीन में उइगुर समुदाय के लोगों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के चलते तुर्की में रहने वाले उइगुर लोगों में चीन के प्रति नाराजगी रही है. तुर्की ने फरवरी में उइगुर समुदाय के खिलाफ चीनी कार्रवाई को मानवता के लिए शर्मनाक करार दिया. लेकिन उसके बाद से चीन ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है.
चीन का कहना है कि उसके "पुनर्शिक्षित करने वाले कैंप” कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ हैं. हजारों उइगुर जिहादियों पर तुर्की के रास्ते सीरिया जाकर आईएस में भर्ती होने का भी शक है. चीन का कहना है कि कई उइगुर जिहादियों ने पश्चिमी चीन में हमले किए और हो सकता है कई सारे जिहादी प्रशिक्षण लेकर वापस आएं और हमला कर दें.
तुर्की अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण फिलहाल उइगुरों के मुद्दे पर चुप्पी साधे रहना चाहता है. साथ ही चीन भी एर्दोवान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है क्योंकि वो मुस्लिम समुदाय में बहुत लोकप्रिय हैं. अगर एर्दोवान ने उइगुर समुदाय के लिए आवाज उठाई तो चीन की मुस्लिम विरोधी छवि को बल मिलेगा और मुस्लिम समुदाय में चीनी विरोधी भावना बढ़ेंगी.
एटली का कहना है कि तुर्की इस मामले पर सावधानी बरत रहा है. तुर्की की सरकार ने चीनी संप्रभुता और आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई के अधिकार का समर्थन किया है. साथ ही तुर्की यह भी बता देता है कि हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं है.
विंटर चेस/आरएस
_______________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore