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युद्ध से बेहाल यूक्रेन में जहरीला होता पानी

गुइलाउमे प्ताक (यूक्रेन)
२४ दिसम्बर २०२१

दुनिया भर में, कोयला उत्पादक देश, जीवाश्म ईंधन से निजात पाने के लिए एक न्यायसंगत बदलाव के संघर्ष में लगे हैं. लेकिन यूक्रेन के डोनबास इलाके को लगता है कि बंद हुई खदानें एक पारिस्थितिकीय विनाश की ओर इशारा कर रही हैं.

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Global Ideas | Ukraine Kohleabbau
तस्वीर: Guillaume Ptak

82 साल की पेंशनर ल्युडमिला इवानोव्ना तारासोवा कोमीशुवाखा नदी की ओर निगाह डालते हुए कहती हैं, "युद्ध शुरू होने से पहले, मैं इसी पानी से अपना बागीचा सींच लेती थी. लेकिन अब ये किसी लायक नहीं रहा.” इधर वो ये बता रही होती हैं उधर नदी का पानी नारंगी बेचैनी में बहता जाता है. (विषैले पदार्थो ने पानी का रंग बदल दिया है और उसका इस्तेमाल करना संभव नहीं.)

पूर्वी यूक्रेन में जोलोते के बाहरी हिस्से में एक छोटे से लकड़ी के मकान में तारासोवा रहती हैं. पास में ही बहने वाली कोमीशुवाखा नदी, सेवेरस्की डोनेट्स नदी की सहायक नदी है. वही युद्ध से तबाह डोनबास इलाके में ताजे पानी का प्रमुख स्रोत है. हाल के सप्ताहों में, यूक्रेन का सबसे पूर्वी भाग एक बार फिर सबकी नजरों में आ गया है. सीमा पर सेना के अप्रत्याशित जमावड़े के साथ ही उस पर रूसी हमले का खतरा मंडराने लगा है.

डोनबास में साढ़े 60 लाख निवासियों की रिहाइश है. वो यूक्रेन का सबसे बड़ा औद्योगिक ठिकाना ही नहीं, एक प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र भी है. 200 साल के दरमियान अनुमानतः 15 अरब टन कोयला इस इलाके से निकाला जा चुका है.

सोवियत संघ के पतन के बाद डोनबास की कई खदानों से लाभ मिलना बंद हुआ तो वे बंद होने लगीं. यूक्रेन और रूस से सहायता प्राप्त अलगाववादियों के बीच सात साल पहले संघर्ष छिड़ा, तबसे कई और खदानें बेकार और जर्जर हो चुकी हैं.

पहली नजर में ये भले ही पर्यावरण की जीत नजर आती हो लेकिन वास्तव में ये उस पारिस्थितिकीय विनाश की की लिखित घोषणा है जो बंद खदानों के बहुत खराब प्रबंधन की वजह से अवश्यंभावी हो जाता है.

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नारंगी हो गई कोमीशुवाखा नदी. तस्वीर: Guillaume Ptak

दूषित पानी की चपेट में लाखों लोग

जब एक खदान काम करना बंद कर देती है, तो पानी को भूमिगत शाफ्टों और चैंबरों के जरिए लगातार निकालना होता है ताकि वो बाढ़ की शक्ल न अख्तियार कर ले. इसके चलते भूजल, भारी धातुओं से दूषित हो सकता है. वो आगे चलकर आसपास की मिट्टी में भी धंसकर उसे खेती के लिहाज से बेकार कर देता है.    

यूक्रेन के सामरिक अध्ययनों के राष्ट्रीय संस्थान की 2019 की एक रिपोर्ट ने बाढग्रस्त खदानों के रासायनिक प्रदूषण को अलगाववादियों के प्रभाव वाले इलाकों में रहने वाले कम से कम तीन लाख लोगों के लिए एक आपात खतरा कहा है, जबकि संपर्क रेखा के करीब रहने वाला हर चौथा निवासी- पीने के पानी के भरोसेमंद स्रोत से पहले ही महरूम है. ये संपर्क रेखा, जमीन का वो हिस्सा है जो सरकार और गैर-सरकार नियंत्रित भूभागों को अलग करता है. 

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस ऑफ यूक्रेन में सीनियर रिसर्च फेलो जलविज्ञानी एवगेनी याकोवलेव, डोनबास इलाके के सूरतेहाल के हवाले से कहते हैं, "पेट और आंत के गंभीर संक्रमणों वाली बीमारियों के मामले, खासकर चार साल से कम उम्र के बच्चों में, यूक्रेन की औसत से दर्जनों गुना ज्यादा हो चुके हैं.”

2017 में याकोवलेव ने डोनबास मे कोयला खदानों के बाढ़ में डूबने और पानी की गुणवत्ता पर उसके असर को लेकर सबसे ताजा व्यापक सर्वे किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "केंद्रीकृत सप्लाई सिस्टम के बाहर बतौर सैंपल जो 90 फीसदी पानी लिया गया वो पीने लायक नहीं है.”

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जोलोटी की निवासी बुजुर्ग जो कोमीशुवाखा नदी के पास के इलाके में रहती हैं. तस्वीर: Guillaume Ptak

डोनबास का अधिकांश पानी 300 किलोमीटर लंबी सिवेरस्काई डोनेट्स-डोनबास नहर से आता है. इसकी देखरेख का जिम्मा यूक्रेन की एक सार्वजनिक कंपनी वोडा डोनबासु पर है. लेकिन पानी का ये रास्ता लड़ाई के मोर्चे के ऐन भीतर पड़ता है लिहाजा अक्सर क्षतिग्रस्त भी हो जाता है. इसके चलते विवश लोग कुओं के दूषित पानी का सहारा लेते हैं.

इस अग्रिम पंक्ति के दोनों तरफ के अध्ययनों में याकोवलेव का अध्ययन आखिरी था. और 2017 से यूक्रेन के नियंत्रण से बाहर के इलाकों में पर्यावरणीय क्षति का कोई डाटा उपलब्ध नहीं कराया गया है. 

पिछले कुछ साल के दौरान यूक्रेन सरकार, डोनेत्स्क और लुहान्स्क के स्वयंभू जनतांत्रिक राज्यों पर आवश्यक पर्यावरणीय सावधानियों के बगैर खदानों को बंद कर देने का आरोप लगाती रही है.

रेडियोधर्मी नदियां?

विशेष चिंता, येनाकीवे में युनकोम कोयला खदान क्षेत्र से जुड़ी है जहां 1979 में मीथेन गैस को निकालने के लिए सोवियत अधिकारियों ने 0.3 किलोटन का भूमिगत एटमी बम विस्फोट किया था.

2018 में अलगाववादी प्रशासन ने खदान की देखरेख में आ रही महंगी लागत को देखते हुए उसे बंद करने का फैसला किया. यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा है कि उस फैसले की वजह से खदान के निचले स्तरों पर पानी रिसने लगा, बम की वजह से भूजल दूषित हो गया और उसके चलते कालमियस और सेवेरस्काई डोनेट्स नदियों में, यहां तक कि काला सागर से आगे भी, सक्रिय रेडियोन्यूक्लाइडों की मौजूदगी की आशंका बढ़ गई.   

स्वयंभू डोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक (डीपीआर) के ऊर्जा मंत्रालय ने इस बीच किसी किस्म की समस्या से इंकार किया है. उसने डीडबल्यू को बताया कि मौजूदा यूक्रेन में कठिन पर्यावरणीय हालात के उलट डीपीआर में कोई पर्यावरणीय क्षति नहीं हो रही है.

कोमीशुवाखा नदी का प्रदूषित पानी

फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि यूक्रेन सरकार के लिए अलगाववादियों को जिम्मेदार ठहराना आसान है, लेकिन वो उन समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही जो उसकी अपनी तरफ बनी हुई है. फ्रांसीसी मानवाधिकार एनजीओ एक्टेड के समन्वयक बेनो गेरफोल्ट के मुताबिक, यूक्रेन के सरकारी प्रतिनिधि अक्सर उत्तेजक बयानबाजी में फंसे रहते हैं. और इन मुद्दों का सीमा-पार सहयोग से हल करने में कम रुचि रखते हैं.

खदानों का नेटवर्क आपस में जुड़ा है. इसे देखते हुए संघर्ष रेखा के एक सिरे पर होने वाला नुकसान और नजरअंदाजी एकाएक पूरे देश के लिए समस्या बन सकती है. मई 2018 में, अलगाववादी सीमा के पीछे स्थित बाढ़ग्रस्त रोडीना और होलुबोव्स्का कोयला खदानों का पानी, सरकार अधिकृत भूभाग की जोलोते खदान में 2000 घन मीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घुस गया.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस जल प्लावन से निपटने में असमर्थ रहने पर जोलोटे की व्यवस्थाएं तब से दिन रात खदान का दूषित पानी खींच रही हैं और उसे बगैर साफ किए, कोमीशुवाखा नदी में उड़ेल दे रही हैं.

‘ट्रुथ हाउंड्स' नाम के एक खोजी एनजीओ के हालिया विश्लेषण ने पाया कि इस नदी का पानी क्लोराइड, सल्फेट और मैंगनीज के स्तर से जुड़े कानूनी सुरक्षा पैमानों को काफी लांघ चुका है. जोलोते के नागरिक-सैन्य प्रशासन के प्रमुख ओलेकसाई बाबचेन्को कहते हैं, "तकनीकी उद्देश्यो के लिए भी, मवेशियों के लिए भी, पानी नहीं बचा है. फसलों को पानी देना भी मुमकिन नहीं रह गया है.” 

नदी का प्रदूषण तेजी से दिखता भी जा रहा है, तो स्थानीय लोग पानी के लिए अन्य जगहों का रुख कर रहे हैं. पेंशनर तारासोवा कहती हैं, "अपने बागीचे के लिए मैं अब बारिश का जमा पानी इस्तेमाल करती हूं.” खाना पकाने के लिए वो एक स्थानीय जल धारा से पानी लाकर उसे उबालती हैं लेकिन पीने के लिए वो जोलोते के एक स्टोर के बोतलबंद पानी पर ही भरोसा करती हैं. 82 साल की महिला के लिए वहां तक आनाजाना भी एक चुनौती है.

वह कहती हैं, "ये आसान तो नहीं है, लेकिन मैं और कर भी क्या सकती हूं?” डोनबास की कोयला खदानों में पानी भर जाने से मीथेन गैस का रिसाव भी हुआ है. उससे विस्फोटों और भूकंपों के खतरे भी बढ़े हैं. भूजल का स्तर बढ़ने पर, दबी हुई मिट्टी की सघनता गिर जाती है और वो खिसकने लगती है, जिससे भूकंपीय हरकत होती है.

बाबचेन्को कहते हैं, "जोलोते की इन खदानो में आएं तो यहां गैस की गंध आती है जैसे किसी ने रसोई में चूल्हे का बटन खुला छोड़ दिया हो.” और फिर धंसाव तो है ही. बड़ी तादाद में खदान वाले इलाकों में शाफ्ट जब बाढ़ आने पर ढह जाते हैं तो उनके ऊपर की जमीन खिसकने और धंसने लगती है. कुछ अनुमानों के मुताबिक डोनबास में 12 हजार हेक्टेयर यानी 29 हजार एकड़ का कुल इलाका धंसाव के खतरे की चपेट में है.

ओएसीसी ने आगाह किया है कि उसके चलते भूस्खलन हो सकते हैं और इंजीनियरिंग और संचार के बुनियादी ढांचे फेल हो सकते हैं- गैस लाइनें, सीवेज और जल-आपूर्ति प्रणालियां भी इनमें शामिल हैं. जलविज्ञानी याकोवलेव कहते हैं कि समूचे शहर रहने लायक नहीं बचेंगे.

जोलोते के बारे में बाबचेंको कहते हैं, "जमीन धंस रही है, तो इमारतों में दरारें उभरने लगी हैं. एक स्थानीय स्कूल को लगातार मरम्मत की जरूरत रहती है.”

युद्ध क्षेत्र और न्यायसंगत परिवर्तन का संकल्प

पिछले महीने ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में यूक्रेन ने 2035 तक कोयला छोड़ने का संकल्प किया था. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि डोनबास में दो सदी पुराने उद्योग को समेटना और कामगारों के अधिकारों और रोजीरोटी की सुरक्षा करते हुए फॉसिल ईंधन से छुटकारा पाकर न्यायसंगत बदलाव को सुनिश्चित करना एक चुनौती है और ये दूसरे कोयला उत्पादक देशों से काफी अलग है. 

बाबचेंको के मुताबिक नियमित बमबारी के बावजूद जोलोते की बचीखुची कोयला खदानों में करीब 3500 लोग अब भी काम करते हैं. उनका कहना है कि बड़े पैमान पर निवेश किए बगैर उन्हें बंद करना एक सामाजिक-आर्थिक तबाही की तरह होगा.

वह कहते हैं, "हमें खदानों को बंद करने के लिए पर्यावरणीय लिहाज से सुरक्षित तरीकों में निवेश के साथ साथ कामगारों के लिए सामाजिक और रोजगार कार्यक्रमों में भी निवेश करना होगा.”

बाबचेंको कहते हैं, "बहुत से लोग फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड के अनुभवों के बारे में हमसे बात करते हैं.” "लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि इनमें से कोई भी देश, सक्रिय सैन्य संघर्ष क्षेत्र नहीं रहा है.”