दफ्तर में यूं भटकता है ध्यान
फ्रांस की डिजिटल मार्केट रिसर्च कंपनी तलुना द्वारा दफ्तरों में कराए गए सर्वे में पता किया गया कि किन कारणों से दफ्तरों में लोग ठीक तरह से काम नहीं कर पाते हैं. किन बातों से कर्मचारी खीझते हैं और कैसे भटकता उनका ध्यान है.
गप्पे मारने वाले
80 फीसदी लोगों ने माना की उन्हें दफ्तर में गपशप करने वालों से दिक्कत है और उनके कारण वे अपना काम वक्त रहते पूरा नहीं कर पाते. दरअसल पिछले कुछ दशकों से ओपन ऑफिस का चलन दुनिया भर में फैला है. ओपन ऑफिस यानी हर कर्मचारी को अपना अपना कमरा देने की जगह एक बड़े से कमरे में खूब सारे लोगों को वर्क स्टेशन देना. इसका मकसद था लोगों की कार्यकुशलता को बढ़ाना. लेकिन वक्त के साथ इसके नतीजे उल्टे ही दिखने लगे हैं.
कीबोर्ड की ठक ठक
70 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें कीबोर्ड की आवाज और लगातार फोन का बजते रहना परेशान करता है. यह भी ओपन ऑफिस का ही एक नतीजा है. शोध दिखाते हैं कि शोर भरे दफ्तर कर्मचारियों के तनाव में इजाफा करते हैं, काम के प्रति उत्साह को कम करते हैं और मनोबल तोड़ते हैं. ऐसे में जरूरी है कि कंपनियां लोगों को ट्रेनिंग दें कि कैसे शोर के बावजूद खुद पर उसका नकारात्मक असर नहीं होने देना है.
फिर से बदलाव
काम करने के तरीकों यानी दफ्तर के वर्कफ्लो में बदलाव निराशा का बड़ा कारण है. 61 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें ये ठीक नहीं लगता. बावजूद इसके अधिकतर कर्मचारी अपने मैनेजर से इसकी शिकायत नहीं करते हैं. सर्वे के अनुसार 41 फीसदी पुरुषों ने इन बदलावों की शिकायत की, जबकि महिलाओं में सिर्फ 28 फीसदी ने. इसी तरह बदलावों से निपटने के लिए ट्रेनिंग लेने के मामले में भी पुरुष (25%) महिलाओं (14%) से आगे रहते हैं.
और कितनी मीटिंग
60 फीसदी लोगों ने कहा कि मीटिंग उनका काम पूरा ना कर पाने की एक बड़ी वजह है. कर्मचारियों ने ये भी माना कि मीटिंग के दौरान भी मुद्दे से ध्यान भटकता रहता है और मीटिंग ही कारगर नहीं साबित होती. इसमें सबसे बड़ी वजह रही मीटिंग के दौरान ऑफिस के अन्य छोटे मोटे मुद्दों पर चर्चा. इसके बाद एक मीटिंग में दूसरे प्रोजेक्ट्स पर चर्चा. फिर लोगों का देर से आना, जल्दी जाना और उसके बाद है तकनीक का ठीक से काम ना करना.
सोशल मीडिया
58 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें अपने काम के लिए सोशल मीडिया की जरूरत नहीं है लेकिन वे बिना सोशल मीडिया का इस्तेमाल किए अपना दिन नहीं गुजार सकते. सर्वे में हिस्सा लेने वाले आधे लोगों ने बताया कि उनकी कंपनियां उन्हें दफ्तर के कंप्यूटर पर सोशल मीडिया में लॉगइन करने की अनुमति नहीं देती हैं. काम से ध्यान भटकाने के मामले में लोगों ने फेसबुक को सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना.
कितने घंटे काम?
सर्वे में देखा गया कि युवा कर्मचारी अन्य कर्मचारियों की तुलना में काम के समय में अपने स्मार्टफोन का अधिक इस्तेमाल करते हैं. 78 फीसदी मिलेनियल लोगों ने माना कि वे निजी काम के लिए फोन का इस्तेमाल करते हैं और एक तिहाई ने ये भी बताया कि वे काम के आठ में से कम से कम दो घंटे अपने फोन पर ही बिताते हैं. मिलेनियल यानी 1996 से 2012 के बीच पैदा होने वाले.
उम्र का फर्क
इस रिसर्च के अनुसार ना केवल युवा लोगों का ध्यान जल्दी भटकता है, बल्कि काम में ध्यान फिर से केंद्रित करने में उन्हें ज्यादा वक्त लगता है. 84 फीसदी ने माना कि उन्हें काम में फिर से ध्यान लगाने में आधा घंटा लग जाता है, जबकि ज्यादा उम्र वाले और खास कर चालीस से साठ के दशक के बीच पैदा होने वाले लोगों को काम में फिर से ध्यान लगाने में कुल पांच मिनट भी नहीं लगते.
दोपहर में मुश्किल
लंच के बाद काम की गति धीमी पड़ जाती है. 46 लोगों के अनुसार दोपहर 12 से 3 के बीच काम में सबसे कम ध्यान लग पाता है. इस दौरान ध्यान भटकाने के लिए बहुत कुछ होता है. लोग दूसरे विभाग के कर्मचारियों से भी मिलते हैं, लंच के बाद अकसर चाय कॉफी के लिए साथ बैठते हैं और अपने निजी ईमेल और सोशल मीडिया अकाउंट भी चेक करते हैं.