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समाज

महज पचास रुपये में डायलिसिस करता एक डाक्टर

प्रभाकर मणि तिवारी
२ जुलाई २०२०

कोलकाता में एक डॉक्टर लॉकडाउन शुरू होने के बाद से महज 50 रुपये में ही डायलिसिस कर रहा है. राज्य के तमाम सरकारी अस्पतालों में इसका खर्च 9 से 12 सौ रुपये के बीच है.

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Dr. Fuad Halim aus Kalkutta führt Dialysen bei chronisch Nierenkranken durch
तस्वीर: Privat

कोरोना लॉकडाउन की वजह से लगभग साढ़े तीन महीनों से गैर-संक्रमित मरीजों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. दिल की और किडनी की बीमारी जैसे गंभीर मरीजों को कोरोना के डर से निजी अस्पताल खाली हाथ लौटा रहे हैं. इस वजह से होने वाली मौतें भी अकसर सुर्खियां बटोरती रही हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक ऐसा डॉक्टर भी है जो लॉकडाउन शुरू होने के बाद से महज 50 रुपये में ही डायलिसिस कर रहा है. अपने पेशे को इंसानियत से जोड़ कर सैकड़ों गंभीर मरीजों की जिंदगी बचाने वाले डॉक्टर फवाद हलीम के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं. वे सीपीएम के टिकट पर बीते साल लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और पार्टी के सक्रिय नेता हैं. इसके अलावा हलीम पश्चिम बंगाल के विधानसभा अध्यक्ष रहे अब्दुल हलीम के पुत्र और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटार्यड) जमीरुद्दीन शाह के दामाद हैं.

डॉकेटर हलीम ने गरीब तबके के लोगों के कम खर्च में इलाज के मकसद से 2008 में अपने मित्रों और परिजनों के सहयोग से कोलकाता के पार्क स्ट्रीट इलाके में स्वास्थ्य संकल्प नामक गैर-सरकारी संगठन के बैनर तले इसी नाम से एक अस्पताल खोला था. यहां मुख्य तौर पर डायलिसिस ही किया जाता है. उस समय डायलिसिस का खर्च 500 रुपये था. लेकिन धीरे-धीरे यह खर्च घटा कर उन्होंने 350 रुपये कर दिया. लॉकडाउन शुरू होने से पहले डायलिसिस के मरीजों से यही रकम ली जाती थी. लेकिन उसके बाद 26 मार्च से डॉक्टर हलीम ने महज 50 रुपये लेने का फैसला किया.

जहां बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों ने कोरोना काल के दौरान ऐसे मरीजों से मुंह मोड़ लिया है वहां डॉक्टर हलीम ने ऐसा फैसला क्यों किया? वे बताते हैं, "लॉकडाउन होने के बाद मरीजों से परिस्थिति के बारे में जानकारी मिली. आवाजाही ठप हो जाने से मरीज और उनके परिजन भी फंस गए थे. आने-जाने का खर्च काफी बढ़ गया था. मरीजों की आर्थिक स्थिति और दूसरी दिक्कतों को ध्यान में रख कर ही हमने डायलिसिस का खर्च घटा कर 50 रुपये करने का फैसला किया.”

डॉक्टर हलीम के अस्पताल में डायलिसिस की नौ मशीनें हैं. वहां पांच शिफ्टों में काम होता है. रोजाना औसतन 30 से 35 मरीज डायलिसिस के लिए यहां पहुंचते हैं. अस्पताल इतने कम खर्च में यह सेवा कैसे दे रहा है? इस सवाल पर डॉक्टर हलीम बताते हैं, "हमारे अस्पताल में निजी अस्पतालों जैसी आलीशान सुविधाएं नहीं हैं. न तो एयर कंडीशंड वेटिंग लाउंज है और न ही कोई चमकदार कैंटीन. खर्च घटाने के लिए हमने अस्पताल में लिफ्ट भी नहीं लगाई है. अस्पताल के तकनीशियन बेहद दक्ष हैं. हमारे काम को देखते हुए डायलिसिस मशीन और दूसरी जरूरी दवाओं की सप्लाई करने वाली कंपनियां हमें बाजार से कम दर में तमाम चीजें मुहैया कराती हैं. कई लोग इस नेक काम में आर्थिक सहायता भी दे रहे हैं. इसी से हम मरीजों का इतने कम पैसो में इलाज कर पाते हैं." यहां तीन डाक्टर मुफ्त सेवाएं देते हैं.

दूसरे अस्पतालों की तरह डॉक्टर हलीम के अस्पताल में कोरोना और गैर-कोरोना मरीजों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता. अब तक कई ऐसे मरीज भी यहां आ चुके हैं जो बाद में कोरोना पॉजीटिव निकले. लेकिन बावजूद इसके किसी मरीज पर कोरोना की जांच का दबाव नहीं डाला जाता.  बुखार और कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को जांच कराने की सलाह के साथ लैब या सरकारी अस्पतालों में भेज दिया जाता है. कोविड-19 से संबंधित तमाम प्रोटोकॉल के सख्ती से पालन की वजह से ही अब तक डॉक्टर हलीम के अस्पताल का कोई डाक्टर या तकनीशियन संक्रमित नहीं हुआ है. वे बताते हैं, "हमारी संस्था से 60 मित्र और परिजन जुड़े हैं. उनकी सहायता से ही हम गरीबों के हित में काम करने में समर्थ हो सके हैं.”

किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए तो डॉक्टर हलीम फरिश्ता ही साबित हो रहे हैं. पति के साथ डायलिसिस के लिए मालदा से पहुंची अमीन बीबी बताती हैं, "बड़े अस्पतालों में डायलिसिस का खर्च हम नहीं उठा सकते. लॉकडाउन की वजह से रोजगार ठप है. ऐसे में डॉक्टर साहब हमारे लिए फरिश्ता ही साबित हुए हैं.” लॉकडाउन में ढील के बाद अब राज्य के दूसरे हिस्सों से भी लोग यहां पहुंच रहे हैं. सिलीगुड़ी से आने वाले रजत मंडल बताते हैं कि अगर यह अस्पताल नहीं होता तो उनके पिता का बचना असंभव था, "हम लोग खेती करते हैं. इतने पैसे नहीं हैं कि बड़े अस्पतालों में डायलिसिस करा सकें.” उन्होंने अपने किसी परिचित से इस अस्पताल के बारे में सुना था.

भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई), कोलकाता में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर इंद्रनील दासगुप्ता कहते हैं, "डॉक्टर हलीम की संस्था इस बात की मिसाल है कि कैसे कम खर्च में भी उपभोक्ता को जरूरी सेवा मुहैया कराई जा सकती है. हमारे संस्थान में छात्रों को पढ़ाई के दौरान बाकी संस्थानों के साथ डॉक्टर हलीम की संस्था के कामकाज के तरीके की भी मिसाल दी जाती है.”

डॉक्टर हलीम का परिवार राजनीति में रहा है और संपन्न माना जाता है. उनके पिता अब्दुल हलीम वर्ष 1982 से 2011 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर रहे थे. फवाद ने भी वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव माकपा के टिकट पर डायमंड हार्बर सीट से लड़ा था. वह इस सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से हार गए थे.

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