प्रकृति को छेड़ अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता इंसान
प्रकृति की मदद कर इंसान, मानव सभ्यता की कई गलतियां सुधार सकता है. वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो गया है कि इंसानी गलतियों का हम पर किस हद तक बुरा असर पड़ रहा है.
स्वच्छ ऊर्जा यानी स्वच्छ हवा
वायु प्रदूषण हर साल करीब 42 लाख लोगों की जान लेता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह लंग कैंसर और दिल की कई बीमारियों के लिए जिम्मेदार है. वायु प्रदूषण के लिए जीवाश्म ईंधन से चलने वाली मशीनें और कचरा सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत इंसान और पृथ्वी की सेहत बेहतर कर सकते हैं.
सीओटू और कुपोषण का रिश्ता
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने से सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग पर ही असर नहीं पड़ेगा बल्कि हमारा भोजन भी पौष्टिक होगा. पौधे जब ज्यादा सीओटू सोखते हैं तो वे प्रोटीन, जिंक और आयरन जैसे पोषक तत्व भी कम बनाते हैं. इन पौष्टिक तत्वों की कमी बच्चों की सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है. अगर सीओटू का स्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो हमारा भोजन कम पौष्टिक होता चला जाएगा.
जैव विविधता का विघटन
पौधों और जीवों की कई प्रजातियां रिकॉर्ड तेजी से खत्म हो रही हैं. लेकिन ये प्रजातियां इंसान तक पहुंचने वाले इकोसिस्टम में अहम भूमिका निभाती हैं. हम तक पहुंचने वाला भोजन, पानी और प्राकृतिक दवाएं ऐसे ही इकोसिस्टमों से गुजरती हुई हम तक पहुंचती हैं. इन इकोसिस्टमों का बचाव इंसान के ही हित में हैं.
साफ परिवहन यानी अच्छी सेहत
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में रहती है और ये संख्या बढ़ती जा रही है. शहरी आबादी ट्रैफिक से हो रहे वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण को झेल रही है. ट्रेनों और साइकिलों का ज्यादा इस्तेमाल करने के साथ साथ फुटपाथों की संख्या भी बढ़ानी होगी. ऐसा हुआ तो दुर्घटनाएं भी कम होंगी और लोग भी तंदुरुस्त रहेंगे.
हरियाली की हिफाजत
पैदावार बढ़ाने के लिए जंगलों का सफाया करते करते आज मिट्टी की उर्वरता काफी गिर चुकी हैं. जंगलों से हो रही छेड़छाड़ के कारण ही नए नए वायरसों का खतरा बढ़ चुका है. कृषि और औद्योगिक पशुपालन में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों की वजह से मिट्टी, पानी और हवा दूषित हो रहे हैं. लिहाजा संरक्षित इलाकों का दायरा लगातार बढ़ाने की जरूरत है.
मौसम का विनाशकारी रूप
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम दुश्वार होता जा रहा है. बीते दो दशकों में बेहद ताकतवर तूफानों, जंगलों की आग, बाढ़ और गंभीर सूखे के मामलों में रिकॉर्ड तेजी आई है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मौसमी आपदाओं के कारण हर साल दुनिया भर में 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं. ज्यादातर मौतें विकासशील देशों में हो रही हैं. वैश्विक तापमान जितना बढ़ेगा, इन आपदाओं में उतनी ही वृद्धि होगी.
हालात बेकाबू होने से पहले
पर्यावरण की दुर्दशा अगर यूं ही जारी रही तो इंसानी संघर्ष भी बढ़ेंगे. लाखों-करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है. इसका असर पूरी मानव सभ्यता पर पड़ेगा. इसीलिए जलवायु परिवर्तन से लड़ते हुए पर्यावरण को फिर से सेहतमंद बनाने में ही मानवता का हित छुपा है. (रिपोर्ट: जेनिफर कॉलिन्स/ओएसजे)