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नेपाल और भूटान के जरिए दबाव बढ़ाने की रणनीति पर चीन

प्रभाकर मणि तिवारी
१० जुलाई २०२०

चीन का भारत के किसी हिस्से पर अपना हक जताना नई बात नहीं है. लेकिन 1950 से पहले इस तरह की कोशिशें नहीं हुई थी. जानिए, ऐसा क्या बदला इतिहास में कि चीन का रुख भी बदल गया.

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Konflikt China Indien | Ganderbal-Grenze
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press/I. Abbas

लद्दाख की गलवान घाटी में बीते महीने हुई हिंसक झड़प की वजह से भले भारत-चीन सीमा विवाद सुर्खियों में रहा हो, देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर इलाके में बीते कोई सात दशकों से इस मुद्दे पर अनबन रही है. चीन सिक्किम के भारत में विलय को अवैध करार देते हुए 2003 तक उस पर दावा करता रहा है. पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को तो वह अब भी दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है. तिब्बत से लगी सिक्किम की नाथुला सीमा पर अक्सर छोटे-मोटे विवाद होते रहे हैं.

दरअसल, भारत की सीमा चीन नहीं, बल्कि तिब्बत से सटी है. इन तमाम विवादों की शुरुआत 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद ही शुरू हुई. 1959 में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अरुणाचल सीमा होकर पैदल ही भारत पहुंचने के बाद सीमा को लेकर कटुता और बढ़ी. अब ताजा मामले में भूटान के साथ सीमा विवाद छेड़ना अरुणाचल के मामले पर भारत पर दबाव बनाने की चीनी रणनीति का ही हिस्सा है.

ऐसे हुई चीन के साथ विवादों की शुरुआत

दरअसल चीन के साथ 1950 तक कोई विवाद था ही नहीं, इसकी वजह यह है कि पूर्व में भारत की सीमा चीन से लगी ही नहीं है. उस समय सिक्किम के नाथुला से तिब्बत होकर दक्षिण पश्चिम चीन तक पहुंचने वाले 543 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को सिल्क रूट कहा जाता था. यह सड़क 1900 साल से भी ज्यादा समय तक इन तीनों क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा रही. लेकिन 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद जहां सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ, वहीं 1962 की लड़ाई के बाद देश-विदेश में मशहूर सिल्क रूट भी बंद हो गया. हालांकि बाद में 2006 में उसे दोबारा खोला जरूर गया था लेकिन वह अक्सर बंद ही रहता है. इस समय भी उसे बंद कर दिया गया है. कुछ साल पहले उसी सड़क से मानसरोवर यात्रा की भी शुरुआत हुई थी.

तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन की निगाहें हमेशा सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर रही हैं. सिक्किम के एक तिब्बती नेता लोबसांग सांग्ये कहते हैं, "चीन की निगाहें बहुत पहले से ही लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर रही हैं. तिब्बत पर कब्जे के बाद माओ और दूसरे चीनी नेताओं ने कहा था कि तिब्बत हथेली है. अब इसके बाद इन पांचों अंगुलियों पर कब्जा करना है.”

पूर्वी क्षेत्र में भारतीय और चीनी सेना के बीच झड़पों का भी लंबा इतिहास रहा है. सिक्किम की नाथुला सीमा चौकी पर 11 सितंबर से 15 सितंबर 1967 के बीच हिंसक झड़प हुई थी. उसके बाद उसी साल अक्टूबर में चो ला में भी हमले हुए.  20 अक्तूबर 1975 को अरुणाचल के तुलुंग ला में चीनी सैनिकों के हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए थे. उसके बाद इस मई में भी चीनी सीमा पर हुई झड़प में 10 जवान घायल हो गए थे.

दलाई लामा के बाद क्या करेगा तिब्बत

चीन ने फिर किया विवादित क्षेत्र पर दावा

भूटान के साथ ताजा सीमा विवाद की शुरुआत बीते महीने उस समय हुई थी जब चीन ने ग्लोबल एनवायरनमेंट फेसिलिटी काउंसिल (जीईएफसी) की बैठक में भूटान के पूर्वी इलाके में स्थित साकटेंग वन्यजीव अभयारण्य परियोजना के लिए धन के आवंटन पर यह कह कर आपत्ति जताई थी कि वह विवादित क्षेत्र है. तब भूटान ने इसका कड़ा विरोध किया था. उसके बाद एक बार फिर चीन ने उस विवादित क्षेत्र पर अपना दावा किया है. भारत के लिए चिंता की बात यह है कि भूटान के पूर्वी क्षेत्र में ट्रासीगांग जिले में 650 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली उक्त वन्यजीव अभयारण्य की सीमा अरुणाचल प्रदेश से सटी है. चीन ने अरुणाचल को 2014 में अपने नक्शे में दिखाया था.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चीन का मकसद अरुणाचल के मुद्दे पर भारत पर दबाव बढ़ाना है. इसकी वजह यह है कि पूर्वी क्षेत्र में भूटान के साथ उसका कभी कोई सीमा विवाद था ही नहीं. मध्य और पश्चिमी भूटान में चीन के साथ सीमा विवाद रहा है और दोनों देश इस मुद्दे पर 1984 से 24 बार बैठक कर चुके हैं. लेकिन पहले कभी चीन ने उक्त अभयारण्य पर अपना दावा नहीं किया था. डोकलाम विवाद के बाद यह बैठक नहीं हुई है. भूटान के साथ चीन के राजनयिक संबंध नहीं हैं. इसके लिए भी चीनी नेतृत्व और मीडिया का एक हिस्सा भारत को ही जिम्मेदार ठहराता रहा है.

डोकलाम के जरिए भारत पर दबाव

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीवन लामा कहते हैं, "भूटान के साथ विवाद खड़ा करने की टाइमिंग से चीन की मंशा पर सवाल उठना स्वभाविक है. गलवान घाटी में हमले की वजह से पूरी दुनिया में उसकी फजीहत हो रही है. इसके अलावा कोविड-19 के मुद्दे पर भी उसे चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही है. इसलिए उसने इन मुद्दों से ध्यान भटकाने और भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए इस विवाद को हवा दी है.” भूटान के अंग्रेजी अखबार भूटानीज के संपादक तेनजिंग लामसांग कहते हैं, "चीन ने पहले कभी पूर्वी भूटान में सीमा विवाद का मुद्दा नहीं उठाया था. इससे साफ है कि वहां कभी कोई विवाद नहीं था.”

वैसे, चीन इससे पहले भी 2017 में डोकलाम विवाद के जरिए भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर चुका है. जेएनयू में सेंटर फॉर चाइनीज एंड साउथ एशियन स्टडीज की डॉक्टर गीता कोच्चर का कहना है, "ताजा विवाद भारत और चीन के बीच बड़े पैमाने पर जारी भौगोलिक-राजनीतिक खेल का हिस्सा है. चीन लंबे अरसे से इलाके में अपना प्रभुत्व बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. उसी की शह पर नेपाल ने भी भारतीय इलाकों को अपने नक्शे में शामिल किया है."

भूटान के राजनीतिक विश्लेषकों को आशंका है कि सीमा पर चीन के साथ अगले दौर की बातचीत शुरू होने पर अभायरण्य विवाद भी प्रमुख मुद्दा होगा. लामसांग कहते हैं, "चीन के साथ सीमा विवाद का स्थायी समाधान जरूरी है. ऐसा नहीं होने की स्थिति में चीन दबाव बढ़ाने की रणनीति के तहत अक्सर ऐसे दावे करता रहेगा. "

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