विवादों से भरा रहा पोप बेनेडिक्ट का जीवन
पोप एमेरिटस बेनेडिक्ट सोलहवें अपने देश जर्मनी में श्रद्धेय थे. लेकिन जब से यह सामने आया है कि उन्होंने चर्च में यौन शोषण की एक जांच में झूठी गवाही दी थी तब से उनकी आलोचना बढ़ रही है.
'हम हैं पोप"
ये जर्मनी के जाने माने टैब्लॉयड "बिल्ड" की एक हैडलाइन है. 19 अप्रैल, 2005 को कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स ने 78 साल के जोसफ रैटजिंगर को जॉन पॉल द्वितीय के बाद 265वे पोप के रूप में चुना. वे लगभग 500 सालों में पहले जर्मन थे और उन्होंने बेनेडिक्ट सोलहवें का नाम अपनाया.
कम उम्र से ही ईश्वर की सेवा
16 अप्रैल, 1927 को जन्मे जोसफ रैटजिंगर का जीवन द्वितीय विश्व युद्ध में एक तरह से डूबा ही रहा. उन्होंने कम उम्र में ही चर्च के मार्ग पर चलने का फैसला ले लिया था और कार्डिनल बनने की इक्षा भी जाहिर की थी.
युद्ध से घिरा जीवन
युद्ध के दौरान रैटजिंगर को 16 साल की उम्र में हिटलर यूथ में शामिल होना पड़ा. उन्होंने बाद में बताया की जैसे ही बैठकों में शामिल होने की अनिवार्यता का अंत हुआ, उन्होंने उस समूह को छोड़ दिया. 1944 में उन्हें नाजी जर्मनी की सेना में भर्ती किया गया. युद्ध के बाद अमेरिका ने कुछ समय के लिए उन्हें युद्ध-बंदी भी बना कर रखा, लेकिन जून 1945 में छोड़ दिया.
पादरी, प्रोफेसर, पोप
जोसफ रैटजिंगर ने धर्म की पढ़ाई की, 1952 में पादरी बनाए गए और 30 साल की ही उम्र में रेगेंसबर्ग विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र के प्रोफेसर बन गए. उन्हें शुरू में चर्च के प्रगतिशील सदस्य के रूप में देखा जाता था, लेकिन बताया जाता है कि 1960 के दशक के बाद के सालों में छात्र प्रदर्शनों के बाद वो ज्यादा रूढ़िवादी हो गए.
रोम से बुलावा
म्युनिक और फ्राइसिंग के आर्चबिशप बनाए जाने के बस चार साल बाद ही 1981 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने रैटजिंगर को रोम बुला लिया. उन्हें कौंग्रगेशन ऑफ द डॉक्ट्रिन ऑफ द फेथ का प्रीफेक्ट के रूप में कैथोलिक कानून का सबसे शक्तिशाली अधिकारी नियुक्त किया गया, जिस पर काफी विवाद भी हुआ.
रूढ़िवादी पोप
जॉन पॉल द्वितीय रूढ़िवादी थे और कार्डिनल रैटजिंगर की भी रूढ़िवादिता धीरे धीरे बढ़ती गई. गर्भपात पर रोक हो या गर्भ निरोध का विरोध या फिर लैटिन अमेरिका की लिबरेशन थिओलॉजी, सब पर चर्च के शब्दों में उनकी छाप थी. पोप बनने के बाद भी वो रूढ़िवादी ही बने रहे.
चर्च पर संकट
2009 में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने सोसाइटी ऑफ सेंट पायस के चार पादरियों के बहिष्कार का अंत करने का फैसला लिया. उन चार में से एक ने होलोकॉस्ट की सत्यता को मानने से इंकार किया था और पोप के फैसले का दुनिया भर में विरोध हुआ. उसके बाद उनके कार्यकाल में चर्च कई विवादों से घिरा रहा जिनमें सबसे बड़ा मुद्दा था चर्च के पादरियों द्वारा नाबालिगों का यौन शोषण जिसके बारे में जानकारी को दशकों तक दबा कर रखा गया.
यौन शोषण का अभिशाप
पोप बेनेडिक्ट ने यौन शोषण की समस्या का सामना करने की थोड़ी कोशिश की थी. उन्होंने पीड़ितों से संपर्क किया, इस समस्या को एक "अभिशाप" बताया और पादरियों के प्रशिक्षण की प्रक्रिया में बदलाव लाए. लेकिन उनके आलोचकों ने उन पर पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया. इस विषय पर वैटिकन में सबसे पहली आपात बैठक उनके उत्तराधिकारी ने बुलाई.
जर्मनी से आलोचना
जर्मनी में उनकी तीसरी यात्रा पर पोप बेनेडिक्ट का स्वागत भी हुआ और कड़ी आलोचना भी. उन पर पीड़ितों के संगठनों को नजरअंदाज करने का आरोप लगा. अंतर्धार्मिक विवाह करने वाले लोगों को होली कम्यूनियन की अनुमति ना देने के उनके फैसले की भी आलोचना हुई.
इस्लाम से टकराव
2007 में माइंज में एक कार्निवाल परेड में बेनेडिक्ट को उनकी गाड़ी पोपमोबील में सवार एक मस्जिद में प्रवेश करते हुए दिखाया गया. दरअसल पोप ने एक बयान में बाइजेंटाइन शहंशाह मानुएल द्वितीय पलाइओलोगोस के हवाले से कह दिया था कि पैगंबर मोहम्मद दुनिया में "सिर्फ पाप और अमानवीयता" ले कर आए थे. उनके बयान से मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा विवाद खड़ा हो गया था.
पद से इस्तीफा
फरवरी 2013 में बेनेडिक्ट सोलहवें 700 से भी ज्यादा सालों में पोप के पद से इस्तीफा देने वाले पहले व्यक्ति बन गए. लेकिन वो विवादों से दूर नहीं रह पाए.
दो पोप?
इस्तीफे के बाद उन्होंने उनके उत्तराधिकारी पोप फ्रांसिस की आज्ञा मानने का प्रण लिया था, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी आवाज एक बार फिर उठाई. फ्रांसिस ने शादीशुदा मर्दों को पादरी बनाने को पूरी तरह से खारिज नहीं किया था, लेकिन 2020 में बेनेडिक्ट ने एक किताब लिखी और उसमें प्रबल रूप से इसके खिलाफ जिरह की.
झूठी गवाही
24 जनवरी, 2022 को पूर्व पोप ने उनके पुराने म्युनिक आर्चडायसिस में यौन शोषण की जांच के दौरान झूठी गवाही देने के लिए माफी मांगी. उन्होंने एक बयान में कहा कि इसके पीछे उनकी "मंशा बुरी नहीं थी" बल्कि उनसे "चूक" हुई थी. उन्होंने जांच के दौरान कहा था कि 1980 में बच्चों का यौन शोषण करने वाले एक पादरी को अपने पद पर बने रहने की अनुमति देने वाली बैठक में वो मौजूद नहीं थे.