बेहद कट्टरपंथी समझे जाने वाले अफगान समाज में कुछ लड़कियों ने सुरों के सहारे बदलाव का बीड़ा उठाया है. उन्होंने अफगानिस्तान का पहला महिला ऑर्केस्ट्रा बनाया है जिसे दुनिया भर में प्यार और सराहना मिल रही है.
क्यों अहम है जोहरा
अफगानिस्तान में संगीत को अच्छा नहीं समझा जाता और खासकर महिलाओं के लिए तो बिल्कुल नहीं. इसलिए कुछ लड़कियों का एक साथ मिल कर जोहरा नाम से ऑर्केस्ट्रा बनाना बहुत अहमियत रखता है. ये सभी लड़कियां अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक में पढ़ती हैं.
संगीत के लिए टूटे रिश्ते
इस सिम्फनी की दो कंडक्टरों में से एक नेगिन के पिता तो उनका साथ देते हैं. लेकिन उनके अलावा पूरा परिवार संगीत सीखने और ऑर्केस्ट्रा में शामिल होने के खिलाफ था. वह बताती हैं कि उनके कई रिश्तेदारों ने इसी वजह से उनके पिता से अपने संबंध तक तोड़ लिए.
अहम संस्थान
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक देश के उन चंद संस्थानों में से एक है जहां लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं. नेगिन ने यहीं पियानो और ड्रम बजाना सीखा और वे जोहरा की कंडक्टर बन गईं.
संगीत की महक
जोहरा ने अपनी पहली विदेशी परफॉर्मेंस स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के दौरान दी. इसके बाद स्विट्जरलैंड और जर्मनी के चार अन्य शहरों में भी उन्होंने अपने संगीत का जादू बिखेरा. पारंपरिक पोशाकों में सजी इन लड़कियों के संगीत की महक धीरे धीरे दुनिया में फैल रही है.
संगीत की देवी
जोहरा में 12 साल से 20 साल तक की उम्र की 30 से ज्यादा लड़कियां हैं. ऑर्केस्ट्रा का नाम फारसी साहित्य में संगीत की देवी कही जाने वाले जोहरा के नाम पर रखा है. यह ऑर्केस्ट्रा पारंपरिक अफगान और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत बजाता है.
खतरा
सरमस्त ने इसके लिए जोखिम भी बहुत उठाए हैं. 2014 में एक कंसर्ट के दौरान एक तालिबान आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया था. इस घटना में खुद सरमस्त घायल हो गए थे जबकि दर्शकों में शामिल एक जर्मन व्यक्ति की जान चली गई थी.
मकसद
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक के संस्थापक और निदेशक अहमद नासिर सरमस्त कहते हैं कि इस ऑर्केस्ट्रा को बनाने का मकसद यही है कि लोगों के बीच एक सकारात्मक संदेश जाए और वे बच्चे और लड़कियों को संगीत सीखने और उसमें योगदान देने के लिए प्रेरित करें.
कहां गई मीना?
इस ऑर्केस्ट्रा की शुरुआत 2014 में हुई जब सातवीं में पढ़ने वाली एक लड़की मीना ने सरमस्त के सामने ऑर्केस्ट्रा बनाने का सुझाव रखा. ऑर्केस्ट्रा तो बन गया, लेकिन पूर्वी नंगरहार प्रांत में अपनी बहन की शादी में शामिल होने गई मीना फिर कभी संस्थान में नहीं लौट पाई.
मुश्किलें
नेगिन की तरह ऑर्केस्ट्रा की दूसरी कंडक्टर जरीफा आबिदा को भी परिवार की तरफ से विरोध झेलना पड़ा. 2014 में जब उन्होंने म्यूजिक इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया तो सिर्फ अपनी मां और सौतेले पिता को बताया, अपने चार भाइयों और अन्य रिश्तेदारों को नहीं, क्योंकि वे कभी इसकी इजाजत नहीं देते.
बदलाव होगा
अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं. जरीफा के दो भाइयों को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य उनके साथ हैं. जरीफा को उम्मीद है कि वे दोनों भी जल्दी मान जाएंगे. वह कहती हैं कि धीरे धीरे ही सही, लेकिन अफगानिस्तान भी बदलेगा जरूर.
क्यों अहम है जोहरा
अफगानिस्तान में संगीत को अच्छा नहीं समझा जाता और खासकर महिलाओं के लिए तो बिल्कुल नहीं. इसलिए कुछ लड़कियों का एक साथ मिल कर जोहरा नाम से ऑर्केस्ट्रा बनाना बहुत अहमियत रखता है. ये सभी लड़कियां अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक में पढ़ती हैं.
संगीत के लिए टूटे रिश्ते
इस सिम्फनी की दो कंडक्टरों में से एक नेगिन के पिता तो उनका साथ देते हैं. लेकिन उनके अलावा पूरा परिवार संगीत सीखने और ऑर्केस्ट्रा में शामिल होने के खिलाफ था. वह बताती हैं कि उनके कई रिश्तेदारों ने इसी वजह से उनके पिता से अपने संबंध तक तोड़ लिए.
अहम संस्थान
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक देश के उन चंद संस्थानों में से एक है जहां लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं. नेगिन ने यहीं पियानो और ड्रम बजाना सीखा और वे जोहरा की कंडक्टर बन गईं.
संगीत की महक
जोहरा ने अपनी पहली विदेशी परफॉर्मेंस स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के दौरान दी. इसके बाद स्विट्जरलैंड और जर्मनी के चार अन्य शहरों में भी उन्होंने अपने संगीत का जादू बिखेरा. पारंपरिक पोशाकों में सजी इन लड़कियों के संगीत की महक धीरे धीरे दुनिया में फैल रही है.
संगीत की देवी
जोहरा में 12 साल से 20 साल तक की उम्र की 30 से ज्यादा लड़कियां हैं. ऑर्केस्ट्रा का नाम फारसी साहित्य में संगीत की देवी कही जाने वाले जोहरा के नाम पर रखा है. यह ऑर्केस्ट्रा पारंपरिक अफगान और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत बजाता है.
खतरा
सरमस्त ने इसके लिए जोखिम भी बहुत उठाए हैं. 2014 में एक कंसर्ट के दौरान एक तालिबान आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया था. इस घटना में खुद सरमस्त घायल हो गए थे जबकि दर्शकों में शामिल एक जर्मन व्यक्ति की जान चली गई थी.
मकसद
अफगानिस्तान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक के संस्थापक और निदेशक अहमद नासिर सरमस्त कहते हैं कि इस ऑर्केस्ट्रा को बनाने का मकसद यही है कि लोगों के बीच एक सकारात्मक संदेश जाए और वे बच्चे और लड़कियों को संगीत सीखने और उसमें योगदान देने के लिए प्रेरित करें.
कहां गई मीना?
इस ऑर्केस्ट्रा की शुरुआत 2014 में हुई जब सातवीं में पढ़ने वाली एक लड़की मीना ने सरमस्त के सामने ऑर्केस्ट्रा बनाने का सुझाव रखा. ऑर्केस्ट्रा तो बन गया, लेकिन पूर्वी नंगरहार प्रांत में अपनी बहन की शादी में शामिल होने गई मीना फिर कभी संस्थान में नहीं लौट पाई.
मुश्किलें
नेगिन की तरह ऑर्केस्ट्रा की दूसरी कंडक्टर जरीफा आबिदा को भी परिवार की तरफ से विरोध झेलना पड़ा. 2014 में जब उन्होंने म्यूजिक इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया तो सिर्फ अपनी मां और सौतेले पिता को बताया, अपने चार भाइयों और अन्य रिश्तेदारों को नहीं, क्योंकि वे कभी इसकी इजाजत नहीं देते.
बदलाव होगा
अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं. जरीफा के दो भाइयों को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य उनके साथ हैं. जरीफा को उम्मीद है कि वे दोनों भी जल्दी मान जाएंगे. वह कहती हैं कि धीरे धीरे ही सही, लेकिन अफगानिस्तान भी बदलेगा जरूर.