थाईलैंड: राजशाही का खुला विरोध
थाईलैंड में राजशाही का विरोध और लोकतंत्र का समर्थन इस हद तक पहुंच गया है कि लोगों ने राजमहल के सामने पीतल की पट्टिका लगा दी. हाल के सालों के सबसे बड़े विरोध का सामना कर रही थाई राजशाही के खिलाफ ये जनता का हल्ला बोल है.
पीतल की पट्टिका
थाई राजपरिवार के महल के बाहर लोकतंत्र-समर्थक थाई जनता ने पीतल का प्लैक लगाया था. राजशाही के विरोध का प्रतीक यह प्लैक एक ही दिन बाद वहां से गायब हो गया. पुलिस ने बताया है कि इसकी तलाश करने के लिए जांच चालू है. हाल के सालों में हुए सबसे बड़े प्रदर्शन में 30,000 से भी अधिक लोग शामिल हुए.
क्या था इस प्लैक में
राजधानी बैंकॉक के ग्रैंड पैलेस के बाहर लगाई गई यह पट्टिका एक पुरानी मूल पट्टिका की नकल में बनायी गई थी. नई पट्टिका पर संदेश लिखा था, "यहां लोगों ने अपनी मंशा जताई है. यह देश लोगों का है, किसी राजा की संपत्ति नहीं, जैसा वे हमें मनवाना चाहते हैं."
मूल पट्टिका का क्या हुआ
सन 1932 में थाईलैंड 'संपूर्ण राजशाही' से 'संवैधानिक राजशाही' की ओर बढ़ा था और इसी के प्रतीक के तौर पर मूल पट्टिका लगाई गई थी. लेकिन 2017 में मूल पट्टिका अचानक गायब हो गई और उसकी जगह शाही समर्थन के संदेश वाली पट्टिका लगी पाई गई.
कहां हैं थाई राजा
सन 2016 में अपने पिता की मृत्यु के बाद से थाईलैंड के राजा की गद्दी संभालने वाले किंग महा वजीरालॉन्गकॉर्न इस दौरान भी देश में नहीं थे. राजा बनने के बाद से उन्होंने अपना ज्यादातर समय यूरोप में ही बिताया है.
असली बदलाव की मांग
थाई प्रदर्शनकारियों ने पट्टिका लगाने के अलावा महल को एक पत्र भी सौंपा, जिसमें राजशाही में सुधारों की मांग, संसद भंग कर नए चुनाव कराने की मांग और संविधान में बदलाव किए जाने की मांग शामिल थी. 2017 में सेना ने संविधान में कई बड़े बदलाव किए थे.
महीनों से जारी है विरोध
पिछले दो महीने से लगभग रोज देश के छात्रों के नेतृत्व में जारी विरोध प्रदर्शनों में प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओचा के इस्तीफे की मांग की जा रही है. वह पूर्व सेना प्रमुख हैं और सन 2014 में हुए सैन्य तख्तापलट के मास्टरमाइंड भी रहे हैं.
रेड शर्ट, येलो शर्ट
सन 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री थकसिन चिनावट को हटाने के लिए हुए तख्तापलट की वर्षगांठ पर बैंकॉक में हुई रैली में उनके रेड शर्ट समर्थक भी शामिल हुए. उस समय सत्ताधारियों की ओर से येलो शर्ट समर्थकों के साथ इनकी हिंसक मुठभेड़ें हुआ करती थीं.
राजनीतिक संकट का अंत नहीं
2006 से ही देश के बाहर अज्ञातवास में रहने वाले थकसिन ने इन विरोध प्रदर्शनों को लेकर ट्विटर पर प्रतिक्रिया जताई और राजनीतिक अस्थिरता और असंतोष पर सवाल उठाए. राजशाही पर सवाल उठाने को कभी वर्जित माना जाता था लेकिन अब वह भी बढ़ चढ़ कर हो रहा है.