दिमागी इम्प्लांट से फिर से बोलने लगे एएलएस के मरीज
१९ अगस्त २०२४तकनीक का कमाल ऐसा हुआ कि एएलएस बीमारी के कारण अपनी बोलने की क्षमता खो चुके एक व्यक्ति ने फिर से बोलना शुरू कर दिया. यह उस मरीज के दिमाग में लगाई गई एक चिप के कारण संभव हुआ. यह चिप विचारों को पढ़कर आवाज में बदल देती है.
ब्लैकरॉक न्यूरोटेक कंपनी ने यह टेक्स्ट-टु-स्पीच ब्रेन इम्प्लांट बनाया है. यह जानकारी शोधकर्ताओं ने दो नए अध्ययनों में दी, जिनमें लकवाग्रस्त मरीजों के लिए ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीक के जरिए बोलने की क्षमता वापस पाने की संभावना पर चर्चा की गई है.
बुधवार को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन‘ में प्रकाशित इन अध्ययनों में बताया गया है कि इस तकनीक का क्लीनिकल उपयोग अब व्यावहारिक रूप से संभव होता जा रहा है. सैन फ्रांसिस्को स्थित कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के न्यूरोसर्जन डॉ. एडवर्ड चांग ने शोधपत्रों के साथ प्रकाशित एक संपादकीय लेख में इस तकनीक को "क्लीनिकल रूप से व्यावहारिक इस्तेमाल की दिशा में तेजी से प्रगति का प्रमाण" बताया. डॉ. चांग खुद इन अध्ययनों का हिस्सा नहीं थे.
ब्लैकरॉक न्यूरोटेक के अलावा भी कई कंपनियां इस तरह की चिप बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रही हैं. इनमें इलॉन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक के अलावा मेडट्रॉनिक और सिंक्रॉन जैसी कंपनियां शामिल हैं.
दो मरीजों पर अध्ययन
दोनों अध्ययनों में एएलएस का एक-एक मरीज शामिल था. इनमें से एक पुरुष था और एक महिला. एएलएस या लू गेहरिग्स डिजीज में रीढ़ और दिमाग की तंत्रिकाएं धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं.
45 वर्षीय पुरुष बोलने में काफी कठिनाई का सामना कर रहा था और केवल अपने देखभाल करने वाले साथी के साथ ही संवाद कर पाता था, वह भी लगभग सात शब्द प्रति मिनट की दर से. सामान्य अंग्रेजी बातचीत की दर लगभग 160 शब्द प्रति मिनट होती है.
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शोधकर्ताओं ने चार माइक्रोइलेक्ट्रोड को इस मरीज के दिमाग में लगाया, जो भाषा और बोलने से जुड़े क्षेत्रों में न्यूरल गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं. इन माइक्रोइलेक्ट्रोड्स की संख्या 256 थी, जो पिछले अध्ययनों की तुलना में काफी अधिक है.
डिकोडर सॉफ्टवेयर को असामान्य शब्दों को सीखने और तेजी से ट्रेन कर नए सिरे से काम करने के लिए तैयार किया जा सकता था, जो पहले कभी नहीं हो पाया था.
दूसरे दिन तक, मरीज 1,25,000 शब्दों के शब्दकोश का उपयोग करके संवाद कर रहा था. डिकोड किए गए शब्दों को स्क्रीन पर प्रदर्शित किया गया और फिर टेक्स्ट-टू-स्पीच सॉफ्टवेयर की मदद से उनकी आवाज को उस व्यक्ति की बीमारी से पहले की आवाज जैसी ध्वनि के साथ सुनाया गया.
बोल उठा मरीज
शोधकर्ताओं के साथ बातचीत में मरीज ने कहा, "मैं बस आपको थोड़ी मस्ती के लिए तंग कर रहा था... कृपया मेरी मजाक करने की कोशिशों को बर्दाश्त करें क्योंकि मुझे मजाक करना बहुत याद आता है."
इस मरीज ने कहा, "मुझे अपने दोस्तों और परिवार से फिर से बात करने में बहुत अच्छा लग रहा है. जब मेरे लक्षण शुरू हुए, तब मेरी बेटी केवल दो महीने की थी, और अब वह 5 साल की है. उसे याद नहीं है कि मैं इस बीमारी से पहले कैसे बोलता था. शुरुआत में वह थोड़ी शर्मीली थी लेकिन अब उसे बहुत गर्व है कि उसके पापा एक रोबोट हैं."
16 घंटे के उपयोग के बाद, इस न्यूरोप्रोस्थेसिस ने 32 शब्द प्रति मिनट की दर से बातचीत की सुविधा दी और केवल 2.5 फीसदी शब्दों की गलत पहचान की.
दूसरे अध्ययन में शामिल महिला मरीज को सात साल पहले, 58 वर्ष की उम्र में न्यूरोप्रोस्थेसिस हुआ था. मेडट्रॉनिक कंपनी द्वारा बनाया गया यह उपकरण छह साल तक अच्छा काम करता रहा और उसने उन्हें क्लिक द्वारा संवाद करने में सक्षम बनाया.
जब उपकरण पर भरोसा कम हो गया, तब भी उसमें कोई तकनीकी खराबी नहीं पाई गई. इसके बजाय, एएलएस के कारण उनके मस्तिष्क में बढ़ी शिथिलता ने वर्षों तक सफल उपयोग के बाद ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस को अक्षम बना दिया.
डॉ. चांग कहते हैं कि भविष्य के प्रयासों में शायद मस्तिष्क के उन हिस्सों के साथ इंटरफेस की आवश्यकता होगी जो बीमारी की प्रगति के दौरान कम प्रभावित होते हैं या कम शिथिल होते हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)