ब्रिटेन के राष्ट्रीय प्रसारक के मुताबिक बीबीसी समाचार बुलेटिनों को ऑफ एयर करने का आदेश अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने दिया है. बीबीसी ने रविवार को यह घोषणा की और कहा."अफगानिस्तान के लोगों के लिए अनिश्चितता और अशांति के समय में यह एक चिंताजनक स्थिति है."
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में भाषाओं के प्रमुख तारिक कफाला ने कहा कि 60 लाख से अधिक अफगान बीबीसी की "स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता" की सेवाएं लेते हैं और कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें पहुंच से वंचित न किया जाए.
बीबीसी की पत्रकार यालदा हकीम ने कफाला का बयान ट्वीट किया है, जिसमें लिखा है, "हम तालिबान से अपने फैसले को वापस लेने की अपील करते हैं और अपने टीवी पार्टनरों के लिए बीबीसी के समाचार बुलेटिनों को तत्काल प्रसारण बहाल करने की मांग करते हैं."
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
सेंसर व्यवस्था
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
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पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
नरेंद्र मोदी
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
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पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
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नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
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मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
रिपोर्ट: चारु कार्तिकेय
वॉयस ऑफ अमेरिका को भी किया बंद
जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने अफगान मीडिया कंपनी मोबी ग्रुप का हवाला देते हुए कहा कि तालिबान की खुफिया एजेंसी के आदेश के बाद उसने वॉयस ऑफ अमेरिका (वीओए) का प्रसारण भी बंद कर दिया. डीपीए ने कहा कि सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल हक हम्माद ने इसकी पुष्टि की है.
भारत में पढ़ रहे अफगानी छात्रों का क्या होगा
अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे में आने के बाद कई पत्रकार देश छोड़कर भाग गए हैं. तालिबान के अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों को ऑपरेशन से रोकने का कदम उसके द्वारा लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से खोलने के फैसले से पीछे हटने के कुछ दिनों बाद आया है. तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो पूरे देश में स्कूल बंद कर दिए गए.
पिछले हफ्ते ही भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के परिजन ने तालिबान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत (आईसीसी) में शिकायत दर्ज कराई है. पुलित्जर पुरस्कार विजेता दानिश की हत्या 16 जुलाई 2021 को हुई थी. हत्या का आरोप तालिबान पर लगा था. परिवार के वकील ने कहा कि दानिश की हत्या के लिए जिम्मेदार तालिबान के उच्च स्तरीय कमांडरों पर कानूनी कार्रवाई के मकसद से शिकायत दर्ज कराई गई है.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
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पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.
रिपोर्ट: ऋतिका पाण्डेय