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चीन से पंगा लेकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं ट्रंप

रोडियोन एबिगहाउजेन
१३ दिसम्बर २०१६

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 'वन चाइना' पॉलिसी के साथ खेल रहे हैं, लेकिन इसका उन्हें खमियाजा ही उठाना पड़ेगा. डीडब्ल्यू के रोडियोन एबिगहाउसेन का कहना है कि ताइवान के मुद्दे पर चीन समझौता नहीं करेगा.

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Kombobild Trump und Tsai Ing-wen
तस्वीर: Getty Images/T. Wright/A. Pon

राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका और चीन के संबंधों की साझा बुनियाद पर चोट करनी शुरू कर दी है. उन्होंने बयान दिया है कि जरूरी नहीं कि अमेरिका आगे भी वन चाइना पॉलिसी को मानता रहे. इस पॉलिसी के तहत दुनिया में सिर्फ एक चीन है और बीजिंग की सरकार ही उसकी वैध प्रतिनिधि है. दुनिया का जो भी देश चीन के साथ राजनयिक संबंध कायम करना चाहता है, उसे वन चाइना पॉलिसी को मानना होता है और ताइवान के साथ अपने रिश्ते खत्म करने होते हैं. अमेरिका पिछले 37 साल से इस नीति पर चल रहा है.

लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अचंभित कर देने वाली जीत के बाद ट्रंप के बयान और रुख चीन के साथ संबंधों में तकरार का कारण बन रहे हैं. उन्होंने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन के साथ टेलीफोन पर बात की. इतना ही नहीं, इसके बाद उन्होंने एक ट्वीट भी कर दिया, "क्या चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करते समय हमसे पूछा था. क्या उसने अपने देश में हमारे उत्पादों पर भारी टैक्स लगाते हुए पूछा था या फिर साउथ चाइना सी में बड़ा सैन्य परिसर बनाते वक्त हमारी राय ली गई थी? मुझे तो नहीं लगता कि ऐसा हुआ!”

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इसके बाद फॉक्स न्यूज के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "लेकिन मैं यह नहीं जानता कि हमें वन चाइना पॉलिसी पर क्यों अमल करते ही रहना होगा, जब तक कि हम चीन के साथ व्यापार समेत बहुत से मुद्दों पर कोई समझौता न करें.”

ट्रंप का यह बयान दिखाता है कि वह दुनिया को किस नजर से देखते हैं. उनके लिए राजनीति का मतलब सिर्फ व्यापार, बड़ा बिजनेस और बड़ी डील्स हैं. लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय संबंध सिर्फ बिजनेस करने या पैसा बनाने के लिए नहीं होते.

वन चाइना पॉलिसी पर सवाल उठाकर ट्रंप ने चीन के एक अहम हित को निशाना बनाया है. जिस अहम स्तंभ पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की वैधता टिकी है, वह है चीन की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा और संरक्षण. चीन के मुताबिक हांगकांग, मकाऊ, तिब्बत, शिनचियांग और खास तौर से ताइवान ऐसे इलाके हैं जिन्हें चीन से अलग नहीं किया जा सकता.

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इनमें से किसी एक पर भी सवाल उठाने का मतलब है कि कम्युनिस्ट पार्टी की दशकों से अपनाई जा रही नीति पर सवाल उठाना. इससे उन अतिराष्ट्रवादियों की भावनाएं भड़कने का भी खतरा है, जिन्हें खास कर ताइवान के मुद्दे पर पार्टी ने गर्म रखा है. ताइवान चीन के राष्ट्रीय हितों का मूल हिस्सा है. और कोई भी देश अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा, और महज कुछ कारोबारी समझौतों के लिए तो कतई नहीं.

ट्रंप का रवैया खतरनाक हो सकता है और इससे किसी का फायदा होने की उम्मीद नहीं है. अगर अमेरिका और चीन के रिश्ते खराब होते हैं, तो इसका दुष्प्रभाव दोनों पर पड़ेगा. इसकी वजह से दो नजदीकी सहयोगियों के बीच आर्थिक युद्ध छिड़ सकता है. इसके अलावा ताइवान प्रशांत क्षेत्र की दो बड़ी ताकतों के बीच जोर आजमाइश का अखाड़ा बन जाएगा. दुनिया में पहले से ही कई अनसुलझे विवाद हैं. और समझ से बाहर है कि ट्रंप क्योंकि एक और विवाद खड़ा करना चाहते हैं जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं दिखाई देती है.