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विज्ञानमिस्र

आप भी जानिए किस तरह बनाए जाते थे मिस्र में ममी

२ फ़रवरी २०२३

ममी कैसे बनती थी, इस बारे में आज भी जानकारी बहुत कम है. लेकिन जर्मन विशेषज्ञों को मिस्र में मिले प्राचीन बर्तनों के अध्ययन से कुछ हैरतअंगेज जानकारियां मिली हैं.

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कैसे सीखी होगी ममी बनाने की कला?
कैसे सीखी होगी ममी बनाने की कला?तस्वीर: Sahar Saleem

प्राचीन मिस्र में ममी बनाने के लिए लोग किस प्रक्रिया का इस्तेमाल करते थे, इसके बारे में हैरतअंगेज और अनूठी जानकारी हासिल हुई है. जहां ममी बनाई जाती थीं, उस जगह पर कई बीकर और कटोरे मिले हैं. बुधवार को प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि इन बर्तनों की खोज से पता चला है कि ममी बनाने में जो सामग्री इस्तेमाल होती थी वह एशिया तक से लाई जाती थी.

इस खोज में जो बर्तन मिले हैं वे 664-525 ईसा पूर्व तक जितने पुराने हैं. ये बर्तन काहिरा के पास सक्कारा में 2016 में 42 फुट गहरे एक कुएं में मिले थे. शोधकर्ता तब से इन बर्तनों का अध्ययन कर रहे थे. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को बर्तनों में एशिया की रेजिन, लेबनान से देवदार का तेल और मृत सागर का कोयला जैसी चीजें मिलीं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस खोज से पता चलता है कि ममी के लिए लेप बनाने के लिए दुनियाभर की सर्वोत्तम सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता था.

प्राचीन मिस्र के लोगों ने शवों को लेप लगाकर सुरक्षित रखने की अत्याधुनिक प्रक्रिया खोज ली थी. इस पूरी प्रक्रिया में 70 दिन तक का समय लग जाता था. इसमें पहले नमक से शव को सुखाया जाता था. उसके बाद उसके अंदर से फेफड़ों, पेट, आंत और लिवर को निकाल लिया जाता था. मस्तिष्क को भी निकाला जाता था. फिर पुजारियों की मौजूदगी में शव को नहलाकर लेप लगाया जाता था. इस लेप में कई तरह की चीजें मिलाई जाती थीं जो उसे सड़ने से बचाती थीं. हालांकि अब तक भी इस प्रक्रिया की कोई ठोस जानकारी हासिल नहीं है.

कैसे हुआ शोध?

जर्मनी के टुएबिनगेन और म्यूनिख विश्वविद्यालयों की टीमों ने काहिरा के नेशनल रिसर्च सेंटर के साथ सहयोग कर यह शोध किया है. इसके तहत सक्कारा में मिले 31 बर्तनों से अवशेष लेकर उनकी जांच की गई है. इन नमूनों की तुलना अन्य मकबरों में मिले नमूनों से की गई जिनके जरिए उन सामग्रियों को पहचानने में कामयाब रहे जो कभी इन बर्तनों में रही होंगी.

मीडिया से बातचीत में मुख्य शोधकर्ता माक्सीम रेगिओट ने बताया कि बर्तनों में मिले पदार्थों में एंटीफंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण थे जिनकी वजह से शव खराब होने से बच पाते थे उनमें दुर्गंध भी नहीं होती थी. उन्होंने कहा कि बर्तनों पर लेबल लगे हुए थे जिनसे पता चला कि किस बर्तन का क्या इस्तेमाल था. उदाहरण के लिए एक बर्तन पर लिखा था, धोने के लिए. एक अन्य पर लिखा था, उसकी गंध को खुशनुमा बनाने के लिए.

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रेगिओट ने बताया कि सिर पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता था और इसके लिए तीन अलग-अलग बर्तन थे जिनमें से एक पर लिखा था, सिर पर लगाने के लिए. टुएबिनगेन यूनिवर्सिटी की ओर जारी मिस्र विशेषज्ञ सुजाने बेक ने कहा, "जब से मिस्र के शिलालेखों की पर लिखी इबारतों को पढ़ा गया है, तब से हमें इनमें से बहुत सी सामग्रियों के नाम पता हैं लेकिन अब तक हम बस इस बात का अनुमान ही लगा सकते थे कि किस सामग्री को क्या नाम दिया गया होगा.”

हैरतअंगेज जानकारियां

नए मिले बर्तनों में पदार्थों की पहचान से शोधकर्ता बता पाए हैं कि एंटीयू शब्द शायद बहुत सी सामग्रियों के मिश्रण के लिए इस्तेमाल किया गया होगा. सक्कारा में जिस मर्तबान पर एंटीयू लिखा था, उसमें देवदार के तेल, चर्बी और साइप्रस के तेल का मिश्रण मिला.

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जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ जिओएंथ्रोपोलॉजी के फिलिप स्टोकहैमर कहते हैं कि इस खोज ने दिखाया है कि कैसे प्राचीन मिस्रवासियों ने लेपने के बारे में अथाह ज्ञान जुटा लिया था. वह उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि मिस्रवासियों को पता था कि अगर शव को नमक के मिश्रण से निकाला जाएगा तो उसमें फौरन कीड़े पड़ जाएंगे जो त्वचा को खा जाएंगे.

स्टॉकहैमर कहते हैं, "सबसे हैरतअंगेज खोजों में से एक रेजिन का मिलना है जो शायद दक्षिणपूर्व एशिया से आई होगी. साथ ही पिस्ता, साइप्रस और ओलिव ऑयल के अंश भी मिले हैं जो भूमध्य सागरीय इलाकों से आया होगा. यह दिखाता है कि लेपने के उद्योग का वैश्वीकरण हो चुका था.”

वीके/एए (एएफपी)

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