मध्य प्रदेश लव जिहाद कानून पर सुनवाई से इनकार
१९ फ़रवरी २०२१सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें धर्म परिवर्तन और अंतरधार्मिक विवाह पर मध्य प्रदेश के धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी. शीर्ष अदालत ने अध्यादेश की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर रोक लगाते हुए कहा कि वह इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के विचार को देखना चाहेगा. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल ठाकरे से कहा, "मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से संपर्क करें. हम हाईकोर्ट के विचार देखना चाहेंगे." इस पीठ में जस्टिस बोबडे के साथ जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम भी हैं.
सर्वोच्च अदालत की पीठ ने कहा कि उसने पहले ही इसी तरह के मामलों को हाईकोर्ट में वापस भेज दिया था. शीर्ष अदालत ने इससे पहले इसी मुद्दे को लेकर अन्य दलीलों पर भी सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश की गई नवीनतम दलील के अनुसार, उत्तर प्रदेश द्वारा लव जिहाद के नाम पर बनाया गया इसी तरह का अध्यादेश (उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अध्यादेश 2020) व्यक्ति की निजता और पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है. अपील में कहा गया था कि इससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है.
मुस्लिम पुरुषों को परेशान किए जाने के आरोप
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को अंतरधार्मिक विवाह के कारण होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश को पक्षकार बनाने की एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को अनुमति दे दी थी. इसके साथ ही अदालत ने मुस्लिम निकाय जमीयत उलमा-ए-हिंद को भी मामले में एक पक्षकार बनने की अनुमति दी थी. मुस्लिम निकाय का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता एजाज मकबूल ने पीठ के समक्ष दलील दी कि देश के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुषों को इन कानूनों के तहत परेशान किया जा रहा है.
पिछले महीने शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के विवादास्पद कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसका उद्देश्य अंर्तजातीय विवाह के कारण धर्म परिवर्तन को विनियमित करना था. शीर्ष अदालत ने इन कानूनों को रोकने से इनकार कर दिया था और मामले में राज्य सरकारों से जवाब मांगा था. अधिवक्ता विशाल ठाकरे, गैरसरकारी संगठन सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस और अन्य ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
नागरिकों की व्यक्तिगत पसंद पर हमला
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये अध्यादेश नागरिकों के व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता पर हमला हैं. उनका कहना है कि अंतरधार्मिक विवाहों के पीछे किसी विदेशी साजिश के सबूत नहीं हैं. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि राज्यों में इस मुद्दे पर अध्यादेश जारी करने की कोई फौरी जरूरत नहीं थी. लव जिहाद पर सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है, इसलिए इस अध्यादेश लाने की स्थिति नहीं थी.
उत्तर प्रदेश का विवादास्पद अध्यादेश न केवल अंतरधार्मिक विवाहों से जुड़ा हुआ है, बल्कि सभी धर्मांतरणों और ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं का पालन निर्धारित करता है, जो किसी अन्य धर्म में शामिल होने की इच्छा रखते हैं. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपने आवेदन में मुस्लिम युवाओं के मौलिक अधिकारों का मुद्दा उठाया है, जिन्हें कथित तौर पर अध्यादेश का इस्तेमाल करके निशाना बनाया जा रहा है.
एमजे/एनआर (आईएएनएस)
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